Aaspas se gujarate hue book and story is written by Jayanti Ranganathan in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Aaspas se gujarate hue is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
आसपास से गुजरते हुए - उपन्यास
Jayanti Ranganathan
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
1999, 27 साल की अनु सॉफ्टवेअर प्रोफेशनल, राजधानी में एक ऊंचे पद पर काम करती है। अकेली अपने शर्तों पर रहती है। पिता गोपालन केरल से हैं और मां निशिगंधा पुणे से। अनु की जिंदगी में माता-पिता के बीच बढ़ती दूरी, कल्चर का अलग होना बहुत प्रभाव डालता है। अपने प्रेमी से छले जाने के बाद वह विभिन्न मोर्चों से गुजरते हुए अपने लिए एक जगह बनाने की कोशिश कर रही है। उसकी जिंदगी में उस समय उथल-पुथल मच जाता है जब उसे पता चलता है कि उसके अप्पा दूसरी शादी करने जा रहे हैं और उसी समय में अपने कलीग के साथ एक रात गुजारने के एवज में वह प्रेगनेंट हो गई है। वह अपने भाई, भाभी के साल दिल्ली से केरल जा रही है अपने अप्पा से मिलने और उनकी शादी रोकने के लिए। लेकिन उसका प्रेग्नेंट होना सब पर भारी पड़ जाता है। उसे आखिरकार अनकंडीशनल सपोर्ट मिलता है अपनी आई से। पुणे में आई जिस नाटक मंडली में काम कर रही है उसके ऑनल आदित्य से मिलने के बाद उसे रिश्तों की एक नई परिभाषा का भी पता चलता है। अनु यंग है, बेसब्र है, कन्फ्यूज्ड है, जजमेंटल है और हर चीज अपने हिसाब से होते देखना चाहती है। हमारे आसपास रहने वाली एक आम, खुले सोच की करियरवूमन है अनु। उसकी जिंदगी के इस सफर में उतार-चढ़ाव के साथ, इमोशन से भरपूर वैल्यूज भी हैं और किरदार भी।
मुझे पता चल गया था कि मैं प्रेग्नेंट हूं। मैं शारीरिक रूप से पूरी तरह सामान्य थी। ना शरीर में कोई हलचल हो रही थी, ना मन में। मैं अपनी लम्बी कोचीन यात्रा के लिए सामान बांध रही थी। ...और पढ़ेदिनों बाद मैंने अटारी में से अपना सबसे बड़ा सूटकेस निकाला। झाड़-झूड़कर बैठी, तो चाय पीने की तलब हो आई। मैंने लिस्ट बना रखी है कि मुझे क्या-क्या लेकर जाना है। वरना पता नहीं कितनी चीजें मिस कर दूंगी। चाय का पानी गैस पर खौलाने रखा और मैं लिस्ट पर नजर दौड़ाने लगी। दूसरे ही नम्बर पर था सेनेटरी...।
रात के बारह बजने को थे। मैंने फुर्ती से अलमारी से वोद्का की बोतल निकाली और दोनों के लिए एक-एक पैग बना लिया, ‘नए साल का पहला जाम, मेरी तरफ से!’
शेखर ने मुझे अजीब निगाहों से देखा, ‘अनु, मुझे ...और पढ़ेजाना है। चलो, एग पैग सही!’
मैंने घूंट भरा। सामने शेखर था। मुझे अच्छी तरह पता था वह शेखर ही है, अमरीश नहीं। मेरे होंठों के कोरों पर हल्की-सी मुस्कान आकर थम-सी गई। शेखर ने एक झटके में गिलास खत्म कर दिया और मेरा हाथ थामकर कहा, ‘विश यू ए वेरी हैप्पी न्यू इयर!’
मेरी आई निशिगन्धा नाइक महाराष्ट्र की सारस्वत ब्राह्मण थीं। पुणे में उने बाबा थियेटर कम्पनी चलाते थे। आई भी थियेटर में काम करती थीं। उनका पूरा परिवार नाटक में मगन रहता था। मेरे अप्पा गोपालन स्वामी केरल के पालक्काड ...और पढ़ेके नायर सम्प्रदाय के थे। वे छोटी उम्र में घर से भागकर पहले मुम्बई आए, फिर वहां से पुणे आ गए। उस समय शायद वे दसवीं भी पास नहीं थे। टाइपिंग-शार्टहैंड सीखने के बाद वे नौकरी पर लगे और प्राइवेट बारहवीं, बी.ए. और फिर एम.ए. किया।
हॉस्टल आने के बाद भी मैं कई दिनों तक पौधों को याद करती रही। अब आई को लम्बे-लम्बे खत लिखना मेरा शगल बन गया था। विद्या दीदी और सुरेश भैया को समझ नहीं आता था कि मेरे और आई ...और पढ़ेबीच क्या चल रहा था। सुरेश भैया को मैं आई के बारे में बताती, तो उन्हें विश्वास ही नहीं होता। हालांकि मेरी वजह से उनका भी आई के प्रति रवैया बदल गया था। आई मुझसे ही कहती थीं कि सुरेश भैया को छुट्टियों में घर आने को कहूं। सुरेश भैया मन मारकर आने लगे। अब सुरेश भैया पूरे नौजवान लगने लगे थे। हल्की मूंछें, पूरी बांह की टी शर्ट, फुट पैंट, आंखों पर चश्मा। अप्पा से वे बिल्कुल नहीं बोलते थे। उनके सामने अप्पा ने एक बार आई पर हाथ उठाने की कोशिश की, तो सुरेश भैया ने लपककर उनका हाथ पकड़ लिया, उन्होंने सिर्फ इतना कहा, ‘नहीं।’ अप्पा ढीले पड़ गए।
मैंने पहली बार जब अमरीश को देखा, मुझे बड़ा अजीब लगा। तन्दुरुस्त शरीर, चिकना चेहरा, फिल्मी हीरो जैसे हाव-भाव! उसके आंखें छोटी थीं। वह जब हंसता तो आंखें पूरी तरह बंद हो जातीं। वह बहुत बोलता था। अच्छी कसी ...और पढ़ेआवाज। उसके होंठ भरे-भरे थे। गोरा रंग। धीरे-धीरे मुझे वह आकर्षित करने लगा। मैं कॉलेज के बाद रुककर कम्प्यूटर सीखती थी। अमरीश भी कम्प्यूटर सीख रहा था। वह क्लास की सभी लड़कियों से फ्लर्ट करता। मैं चुप रहती थी। कुछ दिनों बाद वह मुझे लेकर ताने कसने लगा। वह मुझसे तीन साल सीनियर था। मैं बी.एस.सी. के दूसरे वर्ष में थी, वह एम.ए. कर रहा था।