Achhut Kanya book and story is written by Ratna Pandey in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Achhut Kanya is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अछूत कन्या - उपन्यास
Ratna Pandey
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
वीरपुर गाँव ऐसी धरती पर बसा था, जिसे कई बार इंद्र देवता शायद भूल ही जाते थे कि वहाँ भी धरती प्यासी होगी। पानी के लिए तड़पती धरती में दरारें पड़ गई होंगी और वह दरारें चीख-चीख कर चिल्ला रही होंगी कि हे इन्द्र देवता हम पर भी रहम करना। यहाँ भी इंसान बसते हैं, जानवर, पशु पक्षी, रहते हैं।
गाँव के लोग टकटकी लगाए बादलों की ओर देखते रहते। पानी की एक बूंद भी उन्हें दिखाई नहीं देती। इसी तरह पूरी बारिश की ऋतु निकल जाती। कुएँ, तालाब सूख जाते थे। थोड़ा बहुत पानी जो होता वह पूरे गाँव के लिए काफ़ी नहीं होता; लेकिन वीरपुर गाँव में एक कुआँ ऐसा भी था, जिसमें पानी कभी ख़त्म नहीं होता था। ख़त्म क्या उसमें तो पानी की सतह ज़मीन की सतह से एक इंच भी नीचे खसक कर नहीं जाती थी; मानो उस कुएँ को भगवान से वरदान मिला हुआ था। शायद धरती माता उस कुएँ को अपनी कोख से पानी खींच-खींच कर गाँव की उस धरती पर रहने वाली अपनी संतानों के लिए भरती थी।
वीरपुर गाँव ऐसी धरती पर बसा था, जिसे कई बार इंद्र देवता शायद भूल ही जाते थे कि वहाँ भी धरती प्यासी होगी। पानी के लिए तड़पती धरती में दरारें पड़ गई होंगी और वह दरारें चीख-चीख कर चिल्ला ...और पढ़ेहोंगी कि हे इन्द्र देवता हम पर भी रहम करना। यहाँ भी इंसान बसते हैं, जानवर, पशु पक्षी, रहते हैं। गाँव के लोग टकटकी लगाए बादलों की ओर देखते रहते। पानी की एक बूंद भी उन्हें दिखाई नहीं देती। इसी तरह पूरी बारिश की ऋतु निकल जाती। कुएँ, तालाब सूख जाते थे। थोड़ा बहुत पानी जो होता वह पूरे गाँव
गंगा के पिता सागर पेशे से मोची का काम करते थे। परिवार का लालन-पालन सागर के ही कंधों पर था। दो वक़्त की रोटी उनके परिवार को आसानी से मिल जाती थी। सागर का काम बहुत अच्छा था। इसलिए ...और पढ़ेके बहुत से लोग अपने जूते चप्पल की मरम्मत के लिए और कभी-कभी उन्हें चमकाने के लिए भी सागर के पास ही आया करते थे। यूं तो सागर का परिवार खुश था लेकिन यमुना, वह खुश नहीं थी। बचपन से अपनी माँ को सर पर ४-४ मटकी भर कर पानी लाता देख वह हमेशा दुखी हो जाती थी। एक दिन
नर्मदा अपनी तबीयत का हाल यमुना से छुपा लेना चाहती थी। वह कुछ कहे उससे पहले ही यमुना ने कहा, “हाँ-हाँ, बोलो-बोलो, बोल दो झूठ… कि तबीयत बिल्कुल ठीक है ताकि तुम्हें पानी लाने से मैं रोक ना सकूं ...और पढ़ेफिर गंगा-अमृत का ज़िक्र ना निकल जाए।” नर्मदा ने कहा, “अरी यमुना बावरी हो गई है क्या? थोड़ा बहुत नरम-गरम तो होता ही रहता है। कोई बिस्तर से उठ ना सकूं ऐसी बीमार नहीं हूँ मैं। तब यमुना ने अपनी अम्मा का हाथ पकड़ कर कहा, “लाओ अम्मा आज पानी मैं भर लाती हूँ।” “अरे नहीं यमुना बहुत दूर जाना
यमुना के पीछे भागते-भागते अब तक नर्मदा, गंगा और सागर भी वहाँ आ गए लेकिन वह गंगा-अमृत से काफ़ी दूर खड़े होकर यमुना को पुकार रहे थे। “यमुना मेरी बच्ची ज़िद ना कर, वापस आ जा। वह पानी हमारे ...और पढ़ेनहीं है।” यमुना ने कहा, “नहीं बाबू जी इस पानी पर पूरे गाँव का हक़ है।” फिर उसने सरपंच से कहा, “काका जी हमारे पानी लेने से इस पानी का रंग तो नहीं बदल जाएगा ना?” सरपंच ने कहा, “हो सकता है ऐसा करने से गाँव के दूसरे कुओं की तरह गंगा अमृत भी सूख जाए और बाक़ी के गाँव
यमुना को कुऍं में छलांग लगाए अभी कुछ ही पल तो हुए थे, उन्हें उम्मीद थी शायद उनकी बेटी की साँसें चल रही हों लेकिन जैसा वह चाहते थे वैसा हुआ नहीं। यमुना एक लड़के की गोद में थी ...और पढ़ेलेकिन ज़िंदा नहीं लाश के रूप में। अब भी उसकी पैजन के घुंघरू मद्धम-मद्धम बज रहे थे। सागर और नर्मदा की चीख एक साथ निकल गई, “यमुना मेरी बच्ची…” लेकिन अपने माता-पिता की आवाज़ सुनने के लिए यमुना अब कहाँ थी। उसका पार्थिव शरीर उसके माता-पिता को सौंप दिया गया। वह लोग और उनकी बिरादरी के लोग मातम मनाते रोते