गंगा ने अपने अम्मा बाबूजी को समझाते हुए कहा, “आप एक बार बैठ कर विवेक की पूरी बात सुन तो लो। क्या आपको लगता है कि आपकी गंगा कभी भी कोई ग़लत निर्णय लेगी। आज यह पता चलने के बाद कि विवेक उसी गाँव के सरपंच का बेटा है; आप ही की तरह मेरी भी वही प्रतिक्रिया थी। मैं भी वहाँ से उठ कर चली जाना चाहती थी। लेकिन विवेक की सोच और उसकी बातों ने मुझे मजबूर कर दिया और मैं आपसे मिलवाने उसे यहाँ ले आई। उस दिन की वह घटना जिस तरह हमें याद है उसी तरह विवेक के मन में भी वह घटना अब तक विद्यमान है। वह भी छोटा था इसलिए तब कुछ ना कर पाया लेकिन आज वह बदलाव लाना चाहता है। हमारी यमुना के बलिदान को इंसाफ़ दिलाना चाहता है। विवेक चाहता है बाबूजी कि गंगा-अमृत का पानी सबके लिए हो। इस काम को पूरा करने के लिए उसे हमारी ज़रूरत है बाबूजी। यदि आप विवाह के लिए हाँ कह दें तब तो विवेक के बाबूजी को झुकना ही होगा, घुटने टेकने ही होंगे।”
“यह तुम क्या कह रही हो गंगा? और फिर भी यदि वह नहीं माने तब क्या होगा?”
“अंकल ऐसा हो ही नहीं सकता। मेरी शादी के बाद हो सकता है, वह नाराज़ हो जाएँ लेकिन उसके बाद उनका मन पिघलेगा ज़रूर। अपनी संतान से बड़ा इंसान के लिए और कुछ नहीं होता, यह बात तो आप भी पिता होने के नाते जानते ही हैं। अंकल मैं आपको वचन देता हूँ, मैं यमुना को इंसाफ़ दिला कर रहूँगा। गंगा-अमृत सबके लिए खुलवा कर रहूँगा। आपको मुझ पर विश्वास रखना होगा और गंगा को कभी किसी तरह की कोई तकलीफ़ नहीं होगी, यह भी मेरा आपसे वादा है।”
कुछ देर सोचने के बाद सागर ने कहा, “तुम दोनों बहुत पढ़े लिखे हो, डॉक्टर बन गए हो। तुम ने जो भी सोचा है, ठीक ही होगा। हम भी यही चाहते हैं कि इन शहरों की तरह गाँवों में भी ऊँच-नीच का भेद-भाव ख़त्म हो जाए। यदि तुम इस नेक काम को करने के लिए उनकी अनुमति के बिना विवाह करना चाहते हो तो भी हमें कोई एतराज नहीं है। क्योंकि इसमें तो पूरे गाँव के लोगों का भला छिपा है। भले ही हम वहाँ अब नहीं रहते लेकिन हमारी बिरादरी के लोग अभी भी वहाँ बसते हैं।”
सागर के मुंह से निकले यह शब्द गंगा और विवेक के कानों में मिश्री घोल गए। वे दोनों ख़ुश होकर खड़े हुए और दोनों ने मिलकर सागर और नर्मदा के पांव छुए।
विवेक ने कहा, “आशीर्वाद दीजिए इस काम में हम सफल हो जाएँ।”
सागर ने नर्मदा से कहा, “नर्मदा यह सारी बातें हमें मैडम जी को ज़रूर बताना चाहिए।”
“हाँ तुम ठीक कह रहे हो।”
नर्मदा और सागर ने यह सब अरुणा को बताया तब अरुणा ने कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है। हमें आगे बढ़ना ही चाहिए।”
उसके बाद अगले हफ़्ते गंगा और विवेक ने सागर, नर्मदा, अरुणा, सौरभ और अपने कुछ दोस्तों की उपस्थिति में मंदिर में विवाह कर लिया। उन्हें इस बात का दुःख ज़रूर था कि विवेक के पिता गजेंद्र और माँ भाग्यवंती इस विवाह का हिस्सा नहीं थे। किंतु जिस लक्ष्य के पीछे वह भाग रहे थे, उसकी सीढ़ियाँ चढ़ना आसान नहीं था। उन्हें अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे बढ़ना था।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः