अछूत कन्या - भाग ५   Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अछूत कन्या - भाग ५  

यमुना को कुऍं में छलांग लगाए अभी कुछ ही पल तो हुए थे, उन्हें उम्मीद थी शायद उनकी बेटी की साँसें चल रही हों लेकिन जैसा वह चाहते थे वैसा हुआ नहीं। यमुना एक लड़के की गोद में थी ज़रूर लेकिन ज़िंदा नहीं लाश के रूप में। अब भी उसकी पैजन के घुंघरू मद्धम-मद्धम बज रहे थे।

सागर और नर्मदा की चीख एक साथ निकल गई, “यमुना मेरी बच्ची…”

लेकिन अपने माता-पिता की आवाज़ सुनने के लिए यमुना अब कहाँ थी। उसका पार्थिव शरीर उसके माता-पिता को सौंप दिया गया। वह लोग और उनकी बिरादरी के लोग मातम मनाते रोते बिलखते घर पहुँचे। आपस में लोग बातें कर रहे थे। यमुना ने तो हमें न्याय दिलाने के वास्ते अपनी जान की बाजी लगा दी। क्या अब हमें गंगा-अमृत से पानी मिलेगा? कोई कहता क्या यमुना का बलिदान फिजूल चला जाएगा? तरह-तरह की बातें चल रही थीं।

उधर सागर के रिश्तेदारों और मित्रों ने यमुना की अंतिम विदाई की तैयारियाँ शुरू कर दीं। गंगा निढाल थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कौन ऊँची जाति, कौन छोटी जाति? उसके लिए तो यह केवल कुछ शब्द थे जिन्हें वह अक्सर सुना करती थी पर अब तक उनकी गहराई, उनका असली मतलब वह समझ नहीं पाई थी।

आँसुओं से आज अनेक आँखें भीगी जा रही थीं। एक छोटी सी बच्ची ने इतना बड़ा निर्णय कैसे ले लिया? कितना दर्द होगा उसके दिल में? नर्मदा का रोना बिलखना देखकर कई लोग उसे सांत्वना देने लगे।

गाँव के एक बुजुर्ग ने कहा, “नर्मदा बिटिया रो मत, तुम्हारी यमुना मरी कहाँ है। वह तो अब हमेशा हम सब के दिलों में ज़िंदा रहेगी।”

इन्हीं बातों के बीच अंतिम यात्रा की तैयारियाँ पूरी हो गईं।

गंगा बार-बार अपनी बहन से कहती, “जीजी वापस उठ जाओ, क्यों इतना सो रही हो? तुम मुझे छोड़कर मत जाओ।”

अब यमुना के पार्थिव शरीर को उठाने का वक़्त आ गया था। मौत भी आज यह दृश्य देखकर शायद घबरा गई होगी। आँसुओं से भीगे चेहरे लेकर सभी यमुना की अंतिम यात्रा के साथ निकले। कुछ ही दूरी पर जाकर गंगा-अमृत दिखाई देने लगा; लेकिन यह क्या? लोग देखकर हैरान थे कि गंगा-अमृत का शुद्धिकरण करने के लिए पूजा-पाठ, हवन और यज्ञ की तैयारियों के साथ पंडितों का बड़ा जमावड़ा लगा हुआ है। सभी को यमुना के त्याग की धज्जियां उड़ती हुई दिखाई देने लगीं। लोग समझ गए कि यह पानी तो अब भी उन्हें नहीं मिलेगा।

यह दृश्य भी उतना ही दुखदाई था। एक तरफ यमुना का पार्थिव शरीर अंतिम यात्रा के लिए जा रहा था और दूसरी तरफ गंगा-अमृत का शुद्धिकरण चल रहा था। लोग सोच रहे थे हे प्रभु यह कैसी विडंबना है? इस पूजा-अर्चना का मतलब तो यही निकलता है कि गंगा-अमृत को यज्ञ और हवन द्वारा शुद्ध कर दिया जाएगा।

तभी एक व्यक्ति ने बुजुर्ग बाबा से पूछा, “बाबा क्या हमें अब भी गंगा-अमृत से पानी नहीं मिलेगा?” 

बाबा ने कहा, “तुम ठीक समझे, चाहे जो भी कर लो पानी तो मिलने से रहा।”

गंगा-अमृत मानो धुल कर पवित्र हो गया। यमुना का अग्नि संस्कार करके सब वापस लौट आए। दूसरे दिन से फिर वही सब शुरु हो गया। गाँव की औरतें सर पर घड़े लेकर पानी भरने दूर दराज के गाँव की तरफ निकल जातीं और गंगा-अमृत लबालब भरा मुस्कुराता रहता।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः