Achhut Kanya - Part 9 books and stories free download online pdf in Hindi

अछूत कन्या - भाग ९  

सागर के मुँह से बुखार की बात सुनते ही नर्मदा ने उसकी बात काटते हुए कहा, “अरे कुछ नहीं कभी-कभी सर्दी खांसी के कारण बुखार आ जाता है।”

अरुणा जाने लगी तभी उसकी नज़र दीवार पर टंगी उस तस्वीर पर चली गई। उसने देखा तस्वीर में लगभग १४-१५ साल की लड़की थी और तस्वीर पर काग़ज़ के फूलों का हार डाला हुआ था।

अरुणा के क़दम वहीं रुक गए और उसने पूछा, “नर्मदा यह तस्वीर किसकी है?”

नर्मदा कुछ बोले उससे पहले गंगा बोली, “आंटी यह मेरी बड़ी बहन की फोटो है वह कु...!”

गंगा के मुंह पर उंगली रखते हुए नर्मदा ने कहा, “अरे गंगा तू चुप रहा कर, आराम कर मैं बता रही हूँ ना।”

नर्मदा ने बात को संभालते हुए कहा, “मैडम जी यह हमारी बेटी की तस्वीर है,” इतना कह कर वह चुप हो गई।

अरुणा समझ गई कुछ तो गड़बड़ है। उसने कहा, “चलो सागर में दवाई देती हूँ।”

सागर को अरुणा ने दवाई के साथ ही एक गिलास भरकर दूध देते हुए कहा, “सागर दवाई के साथ उसे यह दूध भी पिला देना।” 

“ठीक है मैडम जी।”

दवाई खाने के दो घंटे बाद ही गंगा का बुखार उतर गया और वह खेलने भी लगी। बच्चे बिस्तर पर टिकते कहाँ हैं। थोड़ा भी ठीक लगता है तो उनका खेलना कूदना शुरू हो जाता है।

उधर अरुणा ने अपने पति से कहा, “सौरभ नर्मदा के घर में कोई १४-१५ साल की छोटी लड़की की तस्वीर टंगी हुई थी और उस तस्वीर पर हार भी टंगा हुआ था। मैंने पूछा यह तस्वीर किसकी है तब नर्मदा तो कुछ नहीं बोली लेकिन गंगा ने कहा वह मेरी बड़ी बहन की तस्वीर है। वह आगे कुछ बोल रही थी पर नर्मदा ने उसे चुप करा दिया। पता नहीं उसकी बेटी के साथ क्या हुआ होगा।”

“तुम बार-बार मत पूछना अरुणा, जब उसका मन करेगा वही बताएगी।”

“हाँ तुम ठीक कह रहे हो।”

गंगा का बुखार उतरते ही नर्मदा काम करने आ गई और अरुणा से कहा, “माफ़ करना मैडम जी, आज मेरे कारण आपको काम करना पड़ा होगा।”

“अरे नर्मदा माफी क्यों मांग रही हो? तुम्हारी बच्ची बीमार थी, उसका ध्यान रखना ज़्यादा ज़रूरी था। हमने नाश्ता बाहर से मंगा लिया था। खाना भी मंगा लिया है, तुम्हारे लिए भी है। यह खाना लेकर जाओ खाना खा लो, कुछ देर आराम करके फिर काम पर आ जाना। रात के तीन बजे से जाग रही हो।” 

अरुणा के मुंह से ऐसे मीठे-मीठे शब्द सुनकर नर्मदा खुश हो गई और उसने कहा, “मैडम जी आप बहुत अच्छी हैं। काश हम बहुत पहले यहाँ आ गए होते तो हमारी यमुना भी हमारे साथ होती,” इतना कहते-कहते नर्मदा की आँखें भीग गईं।

अरुणा ने उसका हाथ पकड़कर उसे कुर्सी पर बिठाते हुए कहा, “नर्मदा रो मत, क्या बात है मुझे बता कर अपना मन हल्का कर लो।”

नर्मदा ने कहा, “मैडम जी यह बहुत लंबी कहानी है। मैडम हम एक छोटे से गाँव में रहने वाले छोटी जाति के लोग हैं। हमारे गाँव में हमें अछूत समझा जाता है। वहाँ के लोग हमारे हाथ का छुआ पानी तक नहीं पीते।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः 

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