Achhut Kanya - Part 21   books and stories free download online pdf in Hindi

अछूत कन्या - भाग २१  

विवेक के बाबूजी गजेंद्र ने विवाह की बात सुनते ही गुस्से में चिल्लाते हुए कहा, “विवाह कर लिया? क्या मज़ाक है क्या? हमको बताने की, हमसे पूछने की तुमने ज़रूरत नहीं समझी? क्या शहर जाकर अपने गाँव के संस्कार भूल कर वहाँ शहर के वातावरण में तुम भी घुल गए।”

“गाँव के संस्कार? कैसे संस्कार बाबूजी?”

विवेक आगे कुछ कह पाता उससे पहले भाग्यवंती ने धीरे से कहा, “अजी उन्हें अंदर तो आने दो, लोग देख रहे हैं।”

“यह क्या कह रही हो भाग्यवंती? अंदर आने दूँ, यह लड़की कौन है किस जाति बिरादरी की है जानने की ज़रूरत नहीं है क्या? जरा यह भी तो पूछने दो मुझे,” गजेंद्र का गुस्से में तमतमाया चेहरा देखकर भाग्यवंती शांत हो गई।

गजेंद्र ने विवेक की तरफ़ देखते हुए कहा, “अच्छा यह तो बता दो कि यह लड़की किस ख़ानदान से है?”

“बाबूजी जाति बिरादरी? आप अभी तक वहीं अटके हुए हैं? आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं? आप सिर्फ़ इतना ही मान लीजिए ना कि यह मेरी पत्नी और आपकी बहू है। हमारे परिवार की गृह लक्ष्मी है।”

“नहीं विवेक इसे अंदर लाने से पहले तुझे इसकी जाति तो बतानी ही होगी।”

“ठीक है बाबूजी तो सुनो यह गंगा है, हमारे गाँव की वह लड़की जिसकी बहन ने इस जातिवाद के भेद को मिटाने के लिए गंगा-अमृत में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी थी।”

इतना सुनते ही गजेंद्र के कान खड़े हो गए। वह सन्न रह गए कि यह क्या हो गया। यह विवेक किसे पत्नी बनाकर के ले आया। लेकिन भाग्यवंती गंगा को अंदर ले जाना चाह रही थी क्योंकि यमुना का त्याग उन्हें भी याद था।

उसके बाद ना जाने कितनी बार वह गजेंद्र से कह चुकी थी, “छोड़ो ना अपनी ज़िद, खोल दो ना गंगा-अमृत सबके लिए, हमें पुण्य मिलेगा।”

किंतु गजेंद्र ने कभी उनकी बात न मानी और आज भी वह अपनी उसी ज़िद पर अड़े नज़र आ रहे थे।

गजेंद्र ने कहा, “जैसे आए हो वैसे ही वापस चले जाओ विवेक। अब तुम्हारे लिए भी इस घर में कोई स्थान नहीं है।”

“मन में तो है ना बाबूजी? इतने वर्ष बीत गए अभी भी आपका मन नहीं बदला। हम सब एक ही तो है ना बाबूजी।”

“बस-बस मुझे तुम्हारा भाषण नहीं सुनना है विवेक।”

गाँव के काफ़ी लोग घरों से बाहर निकल आए थे। गाँव खेड़ों में बात फैलने में वक़्त कहाँ लगता है। जो कट्टरपंथी थे उन्हें सरपंच सही लग रहे थे लेकिन गाँव के अधिकतर लोगों का यमुना की मृत्यु के बाद ही मन बदल चुका था। कुछ लोगों ने जो उम्र में गजेंद्र से बड़े थे, उन्हें समझाने की कोशिश भी की किंतु विवेक और गंगा को उल्टे पाँव ही वापस लौट जाना पड़ा।

कार में बैठ कर गंगा ने विवेक के कंधे पर सर रखकर कहा, “विवेक मैंने तुमसे कहा था ना कि अगर वह नहीं माने तो तुम्हारे माता-पिता तुम से छूट जाएंगे।”

“नहीं गंगा तुम ग़लत समझ रही हो। मेरे बाबूजी मेरे बिना रह नहीं सकते। अभी एकदम से ज़ोर का झटका लगा है उन्हें। उनका गुस्सा शांत होने दो और तुम्हारी गोद में हमारा बच्चा आने दो फिर देखना सब ठीक हो जाएगा। हमारे निकलने के बाद ही उन दोनों में तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई होगी। माँ बाबूजी को मना लेंगी।” 

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः 

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