भाग्यवंती ने विवेक के पास शहर जाने के लिए अपना सामान पैक किया और ड्राइवर को आवाज़ देते हुए कहा, “रामदीन काका गाड़ी निकालो।”
उन्होंने विवेक को भी फ़ोन करके कहा, “विवेक मैं आ रही हूँ बेटा। तुम्हारे घर का पता भेज दो।”
फ़ोन पर भाग्यवंती की यह बात सुनकर विवेक और गंगा फूले नहीं समा रहे थे।
विवेक ने कहा, “माँ आप स्टेशन तक पहुँचो मैं ख़ुद आपको लेने आ जाऊंगा।”
आज गंगा को ऐसा लग रहा था कि कांटों से भरी उसकी पहली सीढ़ी पार हो गई है। अब उसे उसकी मंज़िल ज़रूर मिलेगी। यमुना को इंसाफ़ और गाँव की महिलाओं को गंगा-अमृत से पानी ज़रूर मिलेगा।
गंगा की आँखों से बहते हुए आँसू और गंगा के चेहरे के हाव-भाव बिना कुछ बोले ही, मानो दिल के अंदर की गहराई से विवेक को धन्यवाद कह रहे थे। एक दूसरे को कुछ पल देखने के बाद गंगा विवेक के सीने से लिपट गई। उसके बाद विवेक अपनी माँ भाग्यवंती को घर लेकर आया।
जैसे ही उसने दरवाज़ा खटखटाया, गंगा एक थाली में आरती लेकर आई और दरवाज़ा खोला। भाग्यवन्ती ने जैसे ही गंगा को देखा उनकी आँखें डबडबा गईं।
आँखों के आँसू पोंछते हुए उन्होंने कहा, “बेटा गंगा आरती तो मुझे तुम्हारी उतारनी चाहिए थी लेकिन माफ़ करना बेटा मैं वैसा कर ना पाई।”
गंगा ने झुककर उनके पाँव को स्पर्श करके आशीर्वाद लिया। वह कुछ बोलना चाह रही थी, भाग्यवंती से बात करना चाह रही थी लेकिन उसका गला और जीभ उसका साथ नहीं दे पा रहे थे। भाग्यवंती समझ रही थीं, उन्होंने प्यार से गंगा को अपने सीने से लगा लिया।
उसके बाद भाग्यवंती, नर्मदा और सागर से मिली और उनसे माफ़ी मांगी। अरुणा और सौरभ भी उनसे मिलने आए।
भाग्यवंती का व्यवहार देख कर नर्मदा, सागर, अरुणा और सौरभ सभी बहुत ख़ुश थे।
भाग्यवंती ने अरुणा और सौरभ से कहा, “आप जैसे लोग अब भी दुनिया में हैं। आपके विषय में गंगा ने सब कुछ बताया है।”
अरुणा ने कहा, “भाग्यवंती जी गंगा और उसका परिवार तो लाखों में एक है। आपको गंगा जैसी बहू मिली है, देखना वह आपको हमेशा ख़ुश रखेगी।”
उसके कुछ ही हफ़्तों के बाद गंगा ने एक पुत्री को जन्म दिया। आज भाग्यवंती ने गजेंद्र को फ़ोन लगाया। फ़ोन जानबूझकर स्पीकर पर रखा था। छोटी-सी बच्ची की रोने की आवाज़ गजेंद्र को साफ-साफ सुनाई दे रही थी।
बच्ची की आवाज़ सुनकर गजेंद्र ने कहा, “भाग्यवंती यह आवाज़…,” वह आगे कुछ बोल ही नहीं पाए।
भाग्यवंती समझ रही थी। उन्होंने कहा, “आप दादा बन गए हो। गंगा ने एक बहुत ही प्यारी-सी बिटिया को जन्म दिया है, लक्ष्मी आई है हमारे घर में।”
गजेंद्र की आँखों से आँसू बह निकले। उनकी प्यासी तरसी आँखें बच्ची को देखना चाह रही थीं। आज अपनी पोती के लिए उनका दिल धड़क रहा था। वह किस जाति की है, इस बात से उन्हें आज कोई मतलब नहीं था। उनकी ज़िद आज मर चुकी थी।
उन्होंने भाग्यवंती से कहा, “भाग्यवंती तुम सब कब वापस आओगे? मैं मेरी बिटिया को अपनी गोदी में उठाना चाहता हूँ। उसे प्यार करना चाहता हूँ। गंगा बेटी के अल्ता वाले पाँव की छाप घर में रखवाना चाहता हूँ। अपने गुनाहों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। इस मानसिकता को पूरा बदल देना चाहता हूँ। गंगा और उसके माता-पिता से माफ़ी मांगना चाहता हूँ। गाँव की पूरी बिरादरी के लिए गंगा-अमृत को आज़ाद कर देना चाहता हूँ। तुम कब आओगी मैं बेसब्री से तुम सब का इंतज़ार कर रहा हूँ? भाग्यवंती तुम नाराज तो नहीं हो ना?”
गंगा और विवेक भी यह सारी बातें सुन रहे थे। भाग्यवंती ने कहा, “गुस्सा कैसा मेरे सरपंच? सुबह का भूला शाम को यदि घर लौट आए, ग़लती करने के बाद, ग़लती को सुधार ले, उसका एहसास यदि उसे हो जाए, तो उसे माफ़ कर दिया जाता है। गंगा और हमारी पोती बिल्कुल स्वस्थ हैं। हम उसके बरहों का कार्यक्रम अपने गाँव में अपनी हवेली पर बहुत ही धूमधाम से करेंगे।”
“हाँ गंगा तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो। हमारी इस ख़ुशी में हमारा पूरा गाँव भी शामिल होगा, यह मेरा तुमसे वादा है।”
दसवें दिन ही वे सब नर्मदा और सागर को साथ लेकर गाँव पहुँचे।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः