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बेमेल - उपन्यास
Shwet Kumar Sinha
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
ज़िंदगी जब बदरंग और बेमेल होती है तो अपना साया तक साथ छोड़ देता है। क्या हुआ जब धनाढ्य जमींदार राजवीर सिंह की बेटियों ने अपने छोटे भाई मनोहर की मंदबुद्धि का फायदा उठाकर उसकी सारी सम्पत्ति से बेदखल कर दिया। कैसे फिर मनोहर की पत्नी श्यामा अपने पति और बच्चों का ढाल बनकर आगे आयी? ज़िंदगी की किन बेमेल परिस्थिति से उसे दो-चार होना पड़ा! क्या हुआ जब पूरे समाज से अकेले लोहा लेनेवाली श्यामा का आंचल उसके ही घर के चिराग से धू-धू कर जल उठा? पूरी कहानी जानने के लिए पढ़ें, श्वेत कुमार सिन्हा की उपन्यास – "बेमेल"
गांव का धनाध्य जमींदार राजवीर सिंह। मां लक्ष्मी की असीम कृपा थी उसपर। सैंकडों एकड जमीन और अथाह सम्पत्ति का मालिक। आकाश छुती अमीरी ने कभी भी उसके पांव जमीन से न डगमगाने दिए। ना कभी कोई घमंड किया ...और पढ़ेन ज्यादा पाने की लालच ने कभी उसे मुनाफाखोरी की दलदल में ढकेला। गरीब और बेसहारों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहता। परिणाम यह हुआ कि देखते ही देखते उसके रसुख और दरियादिली की चर्चा आस-पडोस के गांवों तक फैल गई। पर कहते हैं न कि घर को सबसे बडा खतरा घर के चिरागों से ही होती है। राजवीर
....पिता की चल और अचल सम्पत्ति पर अधिकार पाकर त्रिदेवियां- नंदा, सुगंधा, अमृता तथा उनके पतियों के पांव तो जमीन पर ही नहीं टिक रहे थे। इस बात का उन्हे तनिक भी ख्याल न रहा कि पिता ने छोटे ...और पढ़ेमनोहर की ताउम्र देखभाल और सेवा करने की जिम्मेदारी भी सौंपी है। सम्पत्ति की सुरक्षा से निश्चिंत राजवीर सिंह के दिमाग में अब बस एक ही बात कौंध रही थी वह थी बेटे का ब्याह। पर सौंपता कौन इस विक्षिप्त के हाथों में अपनी बेटी को? आखिर कौन अपनी फूल-सी बेटी की जीवनडोर पगले मनोहर के संग बांधता? पर इस
…“आइए दीदी, बिटिया को सुला रही थी!अच्छा लगा आप सबको एक साथ यहाँ देखकर। समझ में नहीं आ रहा आप सबको कहाँ बिठाऊं! देख ही रही हैं....यहाँ एक कुर्सी भी नहीं है!” – कमरे में चारो तरफ इशारा करते ...और पढ़ेश्यामा ने कहा फिर अपने पलंग पर जगह बनाते हुए बोली- “आपलोग यहाँ बैठिए! देखिए, आपकी भतीजी भी अपनी बुआ के आने के एहसास से कुलबुलाने लगी है।” नंदा, सुगंधा और अमृता आंखे गुरेड़कर श्यामा की बातें सुनती रही फिर कमरे में मौजुद अपने पगले भाई मनोहर की तरफ एक नज़र फेरा जो फर्श पर बैठा ढेर सारे खिलौने बिखेरे
…बंशी की बातें सुन श्यामा मुस्कुरायी और कहा – “काका, बचपन में माँ ने सिखाया था कि पालनहार ने जितना दिया है उसी को अपनी नियती मान ईमानदारी से आगे बढ़ने का प्रयास करती रहना। परिस्थिति चाहे कितनी भी ...और पढ़ेआए, चाहे कितना भी दु:ख सहना पड़े, कभी किसी का अनिष्ट मत करना! माँ का साथ तो बचपन में ही छूट गया! पर उसकी सीखायी बातें मैंने अभेऐ तक गांठ बांध रखी है। फिर ननद-ननदोई भी कोई पराए थोड़े ही है, वे भी तो अपने ही है न! वे जैसा भी करते हैं वो उनका स्वभाव है और मैं जो
हवेली का नौकर बंशी श्यामा से बातें कर रहा था जब कमरे से मनोहर की आवाज सुनकर वे दोनों भीतर गए और मनोहर को हाथों में सांप पकड़े खेलते देखकर उसे उससे दूर किया। वहीं पास ही उनकी नौनिहाल ...और पढ़ेबिस्तर पर पड़ी अपने हाथ-पांव मार रही थी। गनीमत था कि सांप ने उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। दिन बितते गए और श्यामा ने दो और बेटियों को जन्म दिया। अब उसकी कुल तीन संताने थी, तीनों बेटियां – सुलोचना, अभिलाषा और कामना। अपने ही ससुराल यानि हवेली में ननद-ननदोइयों और उनके परिवार की सेवा कर श्यामा अपने पति और