बेमेल - 16 Shwet Kumar Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बेमेल - 16

...“अरे रहने दो बेटा....ये चापाकल के चोंचले! एक तो इतनी दूर तक पानी भरने आओ और ऊपर से चापाकल चलाओ! अब इतनी मेहनत कौन करता है भला? और मरना-जीना तो सब भगवान के हाथ में है! जिसे इस दुनिया से जाना है वो किसी न किसी भांति चला ही जाएगा! जाने वाले को कौन रोक पाया है भला! ऐसा जान पड़ता है कि उन डॉक्टरों ने तुम्हे भी उल्टी- पुल्टी पट्टी पढ़ाई है! मैं तो कहती हूँ, कामचोर हैं वे मेडिकल कैम्प वाले! केवल मुफ्त की रोटियां तोड़ना उनकी आदत लगती है! तभी तो अपना काम हम गांववालों को सौंपना चाहते हैं!”– विमला काकी ने बेपरवाही से कहा और अपने घर की तरफ बढ़ने लगी। उनकी बातें सुन विजेंद्र को महसूस हुआ कि गांववालों को समझाना इतना भी आसान काम भी नहीं जितना वह सोच रहा था। बुझे मन से फिर वह गांव के भीतर लौटने लगा।
अभी वह थोड़ी ही दूर चला होगा जब किसी पर नज़र पड़ते ही उसके मुर्झाए चेहरे की रौनक वापस लौट आयी।
“अरे....विजेंद्र बाब्बू!! कहिए, कहाँ घूम रहे हैं? जनाब इस गांव के जमाई क्या हुए, अपने दोस्तों से ही नज़रें फेर ली! बहुत गलत बात है ये! अरे...जरा कभी यार-दोस्तों को भी याद कर लिया करो भई!” यह विजेंद्र का एक पूराना मित्र था जो गांव की गलियों में उसे यू ही मिल गया। शादी से पूर्व विजेंद्र की इस गांव में यार-दोस्तों की पूरी मंडली हुआ करती थी जिनके साथ वह सारा दिन कभी चौपड़ खेलता तो कभी आते-जाते गांव की लड़कियों और औरतो को घूरा करता। पर विवाह के पश्चात वह इस गांव का जमाई हो गया तो इधर आना-जाना बिल्कुल न के बराबर हो गया।
“ऐसी बात नहीं है रघू! असल में इधर आना कम होता है। इसलिए तुमलोगों से मुलाकात भी नहीं हो पाती! फिर हैजे की वजह से घरवाले मुझे इधर आने नहीं देते। वो तो पत्नी का मन खराब लग रहा था तो उसे साथ लेकर आ गया!”- विजेंद्र ने कहा।
“भौजाई का मन खराब लग रहा था? कोई नया मेहमान आने वाला है क्या! आं...आं??”- भौवें मटकाते हुए रघू ने पुछा और विजेंद्र के चेहरे पर मुस्कान बिखर पड़ी।
“नहीं मित्र, अभी ऐसी कोई बात नहीं!”
“अच्छा .... वो सब छोड़! तू चल मेरे साथ। तूझे सारे दोस्तों से मिलवाता हूँ! तुझसे मिलकर सब बहुत खुश होंगे!”- रघू ने कहा।
“नहीं दोस्त, अब मुझे देर हो रही है। बहुत देर से घर से निकला हूँ। पत्नी राह देखती होगी! उसे तुरंत आने का बोलकर निकला था न!”- विजेंद्र ने अपना मुंह बनाते हुए कहा।
“वाह रे जोरू का गुलाम!! शादी करते ही पाला बदल लिया! खुब समझता हूँ बेटा तेरी बातों को! ऐसे कह न कि बीवी के पल्लू से बंधे रहना तूझे अब सुहाने लगा है!”- विजेंद्र की टांग खींचते हुए रघू ने कहा।
“अच्छा बाबा.... ठीक है चल! बोल कहाँ चलना है?”- विजेंद्र ने कहा और रघू संग गली में आगे बढ़ गया।
दोनों गली में साथ-साथ बढ़ते रहे। विजेंद्र ने देखा कि हर दो-तीन घरों के बाद किसी घर में कोई न कोई बीमार पड़ा था जहाँ से किसी के जोर-जोर से खांसने की आवाज बाहर आ रही थी तो किसी घर से अपनों के खोने के गम में बिलखने की आवाज कानों में सुनाई पड़ रही थी।
“यार रघू?”
“ ह्म्म!”
“यार समूचे गांव में हैजा फैला है! तूमसब मिलकर कुछ करते क्यूं नहीं?”- विजेंद्र ने आगे बढ़ते हुए रघू से कहा।
“हम कर भी क्या सकते हैं! जो करना है डॉक्टर-वैद्य कर ही रहे हैं।”- अपना कंधा उचकाते हुए रघू ने कहा।
“क्यूं नहीं कर सकते!! तुमलोग मिलकर बीमारी की रोकथाम के बारे में गांववालों को जागरुक तो कर ही सकते हो! मैंने देखा है बहुत सारी औरतों को गांव के पनघट से गंदे-दुषित जल भरते हुए। तुम्हे पता है डॉक्टर साब कह रहे थे कि गांववालों के लिए वो जहर है! जागरूकता के अभाव में गांववाले रोज वो जहर खुद भी पी रहे हैं और अपने घरवालों को भी पिला रहे हैं। ऐसे में तुम जवान मर्दों को आगे आना चाहिए रघू ताकि उन्हे इस बारे में बता सको कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। ऐसा करने से हैजे पर कुछ हद तक तो लगाम लग ही सकता है।” – विजेंद्र ने रघू से कहा जिसके चेहरे पर अब समझ के भाव उभरने लगे थे।
“तेरा कहना तो सही है दोस्त। पर क्या हमारे घरवाले इस खतरनाक काम के लिए हमें बाहर आने देंगे?”
“बाहर तो तू अभी भी है और हम कबसे अपने घरवालों की सुनने लगे! हाँ? जरा बता मुझे? दरअसल हम खुद ही नहीं चाहते कि ऐसे किसी पचड़े में पडें! हमें आरामपसंद वाली ज़िंदगी और बेपरवाही की आदत जो पड़ चुकी है।” – विजेंद्र ने रघू से कहा। रघू उसकी बातों से सहमत था पर उसने कोई उत्तर न दिया।
बात करते-करते दोनो अपने अड्डे पर आ गए जहाँ सभी मित्र मंडली बनाकर बैठे थे।
“देखो मित्रों, आज मैं किसे साथ लेकर आया हूँ!”- रघू ने कहा और विजेंद्र मुस्कुराता हुआ सबके सामने आया। काफी दिनों के बाद विजेंद्र से मिलकर उसके सभी मित्र खुश थे।
“क्या बात है... बिल्कुल सही समय पर आया है तू विजेंद्र! आज हमलोगों की मदिरापान बैठक चल रही है! बस इसी रघू का इंतजार कर रहे थे। अब तू आ गया तो आ जा दोस्त... बहुत दिन हो गए साथ बैठकर पीये हुए!”- मंडली में मौजुद एक साथी ने कहा।
“नहीं यार…आज नहीं, फिर कभी! आज कुछ जरुरी काम है!”- विजेंद्र ने कहा।
“झूठ बोल रहा है विजेंद्र! मुझे पता है कोई जरुरी काम नहीं! घर पर पत्नी इंतजार रही है तो फिर हम मित्रों को कौन पुछता है भला!!”- विजेंद्र की बातों को बीच में ही काटते हुए रघू ने कहा और सभी मित्र ठहाके लगाकर हंसने लगे।
“अब बिना पीये तो हम तूझे जाने नहीं देंगे! पत्नी की बात तो रोज मानता है आज हम दोस्तों की बात भी तुझे माननी ही पड़ेगी!” मंडली में बैठे एक मित्र ने कहा और गिलास में मदिरा उड़ेल उसे विजेंद्र की तरफ बढ़ा दिया।
अपनी तरफ बढ़े मदिरा के प्याले को कुछ पल निहारते हुए विजेंद्र ने उसे अपने हाथो में ले लिया और अपना गला तर करने लगा। काफी देर तक फिर सभी यार-दोस्त पीते रहे और कैसे घंटों बीत गए पता भी न चला।
थोड़ी देर में लौटने को बोल घर से निकले विजेंद्र को अबतक काफी देर हो चुकी थी। नशे में धूत होकर लड़खड़ाते कदमों से वह घर की तरफ बढ़ने लगा। आंखों के सामने बीवी का चेहरा घुम रहा था। प्रतीत हो रहा था मानो पत्नी बिस्तर पर पड़ी उसे आवाज लगा रही है – “विजेंद्र, ओ विजेंद्र! आओ न.....कब से मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही हूँ! सुबह भी तुमने मेरी तड़प पूरी नहीं की! विजेंद्र.... जल्दी से आ जाओ! देखो, तुम्हारी ये पत्नी तुम्हारे लौटने का कितनी बेतब्री से इंतज़ार कर रही है विजेंद्र!”
“हं...हाँ हाँ! म म मैं आ रहा हूँ! ब ब बस्स अभी आया!!”- खुद में बड़बड़ाता हुआ विजेंद्र लड़खड़ाते कदमों से घर की तरफ बढ़ता रहा। आभाशी दुनिया में विचरण करते विजेंद्र के शरीर की ज्वाला अब धधकने लगी थी। घर के भीतर प्रवेश कर नशे में धूत विजेंद्र ने दरवाजे पर कदम रखा तो दूर से कमरे में बिस्तर पर सोयी पत्नी दिखी। साड़ी के ऊपर से झांकते उसके कटिप्रदेश विजेंद्र के बलशाली शरीर को और बलिष्ठ बना रहे थे।
मदिरा के नशे में लड़खड़ाते कदमों से उसने कमरे में प्रवेश किया और अंधेरे में सोयी पत्नी पर अपने शरीर की सारी बलिष्ठता उड़ेल डाली। यूं अचानक किसी मर्द की अनुभूति पाकर बिस्तर पर सोयी स्त्री ने काफी देर तक उसके स्पर्श का विरोध किया फिर उसकी बलिष्टता के आगे घूटने टेक उस आलींगन में निढाल होती चली गई। मालूम पड़ रहा था जैसे उसका शरीर कामक्रीड़ा के लिए सदियों से भूखा रहा हो और एक बलवान पुरुष ने अपनी बलिष्ठता से उसकी सारी भूख मिटा दी हो। रतिक्रिया में भावनाएं उच्चश्रींखल हो चुकी थी और लीन काया उद्वेलित होकर बल खा रहे थे।
तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई। घर के लिए कुछ खरीददारी करने अभिलाषा पंसारी की दुकान पर गयी थी। हाथो में थैले लिए उसने घर के भीतर प्रवेश किया। पिता के कमरे में झांका तो वह गहरी निंद्रा में लीन थे।...