बेमेल - 17 Shwet Kumar Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेमेल - 17

....तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई। घर के लिए कुछ खरीददारी करने अभिलाषा पंसारी की दुकान पर गयी थी। हाथो में थैले लिए उसने घर के भीतर प्रवेश किया। पिता के कमरे में झांका तो वह गहरी निंद्रा में लीन थे।

कदम फिर आगे बढ़े। अपने कमरे में हलचल पाकर अभिलाषा ने उधर झांका और वहीं जड़ होकर रह गई। हाथो को अब इतनी शक्ति नहीं बची थी कि थैले का बोझ उठा सके और वह वहीं गिरकर बिखर गए । आंसू खुद ही सैलाब बनकर उमड़ने लगे थे। ऐसे घिनौने दृश्य की कल्पना उसने अपने सपने में भी नहीं की थी जो अभी अपने आंखों के सामने होते देख रही थी। ऐसा देखने से पहले उसके प्राणपखेरू उड़ क्यूं नहीं गये? अब उसका इस संसार में जीने से क्या लाभ! उसकी आंखों ने उसे आज जो दृश्य दिखाए थे, अपने प्राण त्यागने के सिवाय कोई दूसरा उपाय न सूझ रहा था। अपने ही कमरे में उच्चश्रींखल भावनाओ को चरम प्रदान करते श्यामा और विजेंद्र को देख जब अभिलाषा की चीत्कार निकली तब कहीं जाकर श्यामा के होश टूटे। कामूक पलकें खुली तो जैसे वह तंद्रा से जागी हो। नज़रें द्वार पर खड़ी बेटी से टकराई तब जाकर महसुस हुआ कि उसका सबकुछ लूट चुका था। मदिरा में धूत विजेंद्र तो उसके शरीर से लूढ़ककर एक तरफ मुर्छित-सा निवस्त्र पड़ा रहा। पर श्यामा ने तो मदिरापान नहीं किया था फिर उसे क्या हुआ जो आज इंद्रियों को अपनी मर्यादा की दहलीज लांघने दी और यह घोर कुकृत्य कर डाला जिसका गवाह कोई और नहीं बल्कि उसकी बेटी अभिलाषा बन चुकी थी।
“आज मेरा सबकुछ लूट गया। अब जीवित रहने से क्या काम!! मां, तुम्हे ये सब करते तनिक भी लज्जा नहीं आयी!! क्यूं किया ये सब??”- बिलखते हुए अभिलाषा ने कहा और आंगन की तरफ पलटी।
श्यामा ने अपने निवस्त्र शरीर पर कपड़े डाले और एक नज़र विजेंद्र पर फेरा जो मदिरा के नशे में चूर गिरा पड़ा था फिर अनिष्ट के भय में कमरे से बाहर भागी। पर तबतक काफी देर हो चुकी थी। एक जोर के छपाक की आवाज आयी जैसे किसी के कुएं में छलांग लगाया हो। यह अभिलाषा थी जो अपनी इहलीला समाप्त करने के लिए कुएं में कुद चुकी थी। बेटी की चीत्कार सुनकर मनोहर बाहर आया और उसे बचाने की खातिर कुएं में छलांग लगा डाली। कुएं में पानी काफी गहरा था जिसमें कुछ देर तक दोनों जीवन से संघर्ष करते रहे फिर सबकुछ शांत पड़ गया। अब बचा था तो केवल श्यामा की चीख-पुकार, जिसे सुनकर आस-पड़ोस के लोग भागे-भागे आएं। पर कोई कुछ न कर सका। सबने मिलकर फिर बाप-बेटी के मृत शरीर को कुएं से बाहर निकाला।
श्यामा जो वहीं बूत बनी बैठी थी। आंसुओं ने भी अब उसका साथ छोड़ दिया था और शरीर तो जैसे मृत पड़ चुके थे। आंखों के सामने अपना शृंगार और गोद जो उजड़ते देखा था और यह उसे ही पता था कि इन सबकी अकेली जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ वही है। गांववालों ने उससे लाख पुछा पर उसका शरीर तो जैसे क्षीण पड़ चुका था।
तभी किसी ने कमरे से आवाज लगायी जहाँ नग्न अवस्था में विजेंद्र नशे में धूत मुर्छित पड़ा था। अब गांववाले तरह-तरह की बातें बनाने लगे। खैर.... किसी तरह से बाप-बेटी के मृत शरीर का शवदाह हुआ।
विजेंद्र जब होश में आया तो मानो काटो तो खून नहीं। अपने कुकृत्यों के कारण उसने अपनी पत्नी और ससुर को खो दिया था। एक श्यामा बची थी, जिसे उसे और उसकी मदिरा ने मिलकर तबाह कर डाला था। नज़रें मिलाना तो दूर, उसके सामने खड़े होने तक की हिम्मत न बची थी। बिना कुछ कहे-सुने उसने गृहत्याग कर दिया। कहाँ गया किसी को पता नहीं।
श्यामा की बड़ी बेटी सुलोचना को जब सारी बातें पता चली तो रोती-बिलखती पति संग अपने मायके पहुंची। असलियत से अंजान सुलोचना ने मां को जिंदा लाश बने पाया। पत्नी को खोने के गम में विजेंद्र के कहीं चले जाने का भी उसे बहुत दु:ख हुआ। किसी तरह बाप और बहन की अंतिम क्रियाक्रम से निवृत हुई तो पति विनयधर ने श्यामा को अपने साथ लेकर चलने की बात कही। पर श्यामा उसके लिए कतई तैयार न थी।
पर सच कहाँ ज्यादा दिनों तक छिपा रह सका है। हमेशा अपने पदचिन्ह छोड़कर ही जाता है। निवस्त्र विजेंद्र, अभिलाषा और मनोहर की मौत के साक्षी बने गांववाले अब तरह-तरह की बातें बनाने लगे थे जिसपर हवेली से आए ननद-ननदोईयों ने तो जैसे मुहर ही लगा डाला।
“हाय राम!! कैसी कुल्टा निकली ये श्यामा! डायन भी नौ घर छोड़कर अपना शिकार करती है। पर इस बद्चलन श्यामा ने तो अपनी बेटी के घर में ही डाका डाल दिया। शरम नहीं आयी तूझे ऐसे कुकृत्य करते!!” - ननदों के बोल एक स्वर में उभरें। पर श्यामा तो जैसे जिंदा लाश बन चुकी थी। उनकी किसी बातों का उसने कोई उत्तर न दिया और आंसू बेधड़क चेहरे से लुढ़कते रहे।
“चुप हो जाओ बुआ! बहुत हुआ!! आपने देखा है सब होते हुए?? नहीं न!! तो फिर मत लगाओ ऐसे इल्जाम!” – अपनी बुआ पर बिफरते हुए सुलोचना ने कहा।
“हुह....देखा है!! जिसने देखा, उसने तो कुएं में छलांग लगाकर अपना जीवन त्याग दिया! पति तक को तो नहीं बक्क्षा इस कुल्टा ने! अपनी देह की भूख मिटाने के खातिर उसे भी कुएं में धक्का दे डाला। अच्छा बताओ, अगर ऐसा नहीं था तो कहाँ गया अभिलाषा का पति?? क्यूं अपना मुंह छिपाकर वह भाग खड़ा हुआ? हाँ? बताओ...?? है मेरे सवालों का कोई जवाब? पुछो जरा इस श्यामा से? जो इतनी चुप होकर बैठी है!” – अपनी भौवें नचाते हुए नंदा ने सवालों के पहाड़ खड़े कर दिए जिनमें से किसी का जवाब सुलोचना के पास न था और उसकी निगाहें श्यामा पर आकर टिक गई।
“सुलोचना, तुम मां को लेकर भीतर कमरे में जाओ!”- विनयधर ने अपनी पत्नी से कहा फिर तीनों बुआसास नंदा, सुनंदा और अमृता से हाथ जोड़कर बोला – “देखिए, आपलोगों से हाथ जोड़कर मेरी विनती है घर की इज्जत को ऐसे न उछालें!”
“देखो जमाईबाबू, तुम इस घर के मेहमान हो। सुलझे हुए लगते हो इसलिए कह रही हूँ! श्यामा ने जो कुछ भी किया है उससे इस पूरे गांव की बदनामी हुई है! और हमारे बाबूजी इस गांव के जमींदार थे। इसलिए गांव की मान-प्रतिष्ठा का ख्याल रखना हमारी जिम्मेदारी बनती है। कुकृत्य करने से पहले श्यामा को सोचना चाहिए था! अब उसे यह गांव हमेशा के लिए छोड़कर जाना पड़ेगा! हम उसे इस गांव में रहने की इजाजत नहीं दे सकते!”- सुगंधा ने कहा जिसे अपने मन की भड़ास निकालने का आज भरपूर मौका मिला था। …