बेमेल - 31 Shwet Kumar Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेमेल - 31

“अब समझ में आया! ये सब इस श्यामा रानी का किया-धरा है! इसी ने इन भोले- भाले गांववालों को बहकाया है और जिसके कहने में आकर ये मुखिया हमें आंखें दिखा रहा है!” – नंदा ने आंखें तरेरते हुए कहा और कुटिल मुस्कान चेहरे पर उंकेरी।
उसकी बातें सुन उदय ने भीड़ के बीच खड़े हवेली के मुस्टंडों को आगे कर दिया जिसके हाथ-पैर बंधे हुए थे। तभी भीड़ एक तरफ छंटी और कुछ लोगों ने खुंखार कुत्तों की लाशें हवेली के दरवाजे पर लाकर रख दी जिसे देखकर हवेलीवालों के चेहरे की रंगत फीकी पड़ चुकी थी।
“क क क्या है ये?? किसने मारा इन कुत्तों को?? और इन दोनों का हाथ-पैर क्यूं बंधे हैं!! हाँ??”- नंदा ने हकलाते हुए पुछा और भीड़ के समक्ष ऐसे दिखाने की कोशिश करती रही जैसे उसे कुछ पता ही न हो।
“ये तो तुमलोग ही बेहतर बता सकते हो कि ऐसा क्यूं है??”- वहां खड़ी भीड़ ने एक सूर में कहा तो श्यामा के ननद-ननदोईयों को भीड़ के गुस्से का अंदाजा लगा।
“हमलोग?? हमलोग क्या बताएंगे!! इन्हे साथ लेकर तुम आ रहे हो तो हमसे क्या पुछते हो?”- छोटी बहन अमृता के पति ने गरजते हुए कहा।
“ओ साहब, अपनी आवाज नीची करके बात करो! अगर आज हम गांववालों की सनक गई न, तो तुम सबकी ईंट से ईंट बजा देंगे!” – भीड़ में निकलकर एक अधेड़ उम्र के ग्रामीण ने आंखें दिखाते हुए कहा और हवेलीवालों ने अपने कदम पीछे खींच लिये।
“आपने इन कुत्तों को श्यामा की जान लेने भेजा था और ये सारी बात आपके इन पहरेदारों ने क़बूल कर ली है। अब आप इससे मुकर नहीं सकते! किसी की जान लेने की इजाजत आपको किसने दी? इस गांव का मुखिया होने के नाते आज मैं इस बात का फैसला करने आया हूँ।”- मुखिया ने दृढ़ता से कहा।
“कौन फैसला देगा?? तू!! हुह्ह्ह.....!! कल तक जो हमारी रोटियों पर पल रहा था वो चला है हमें आंख दिखाने!! तेरी इतनी औकात कब से हो गई मुखिया?? ”- मंझली बहन सुगंधा के पति ने आंखें दिखाते हुए वितृष्णा भाव से कहा।
“आपलोगो ने मेरी औकात देखी ही कहाँ है! आज देखोगे एक मुखिया क्या कर सकता है!”- हवेलीवालों से नज़रें मिलाते हुए मुखिया ने कहा फिर वहीं बंधे खड़े मुस्टंडों की तरफ देख उनसे पुछा – “बताओ, क्या इनलोगों ने तुम्हे श्यामा की जान लेने भेजा था?”
मुखिया की बातों पर वहां खड़े हवेलीवाले असहज होते दिखे। जबकि हवेली के बाहर मौजुद गांववाले आज दूध का दूध, पानी का पानी करने को उतारू थे।
“सच-सच बताओ, नहीं तो आज तुमदोनों यहाँ से जिंदा नहीं बचने वाले! बोलो, जो तुमने हम सबके सामने कहा था!!”- भीड़ से किसी से मुस्टंडों से कहा।
पहले तो उन मुस्टंडों ने क़ातर भाव से अपने मालिकों की तरफ देखा फिर नज़रें नीची कर हामी में सिर हिला दिया।
“अरे सिर क्या हिलाता है!! बोलता क्यूं नहीं! ज़ुबान हलक में अटकी है क्या!!! सच-सच बताना वर्ना आज मेरे बंदूक की सारी गोलियां तुमदोनों के भेजे में उतार दुंगा! नंदा, भीतर से जाकर मेरी बंदूक ले आओ!!!”- नंदा के पति ने दांत पीसते हुए कहा।
“जो सच है वो बताओ! तुम्हे इनलोगों से डरने की कोई आवश्यकता नहीं! याद रखना कि तुम इसी गांव के वासी हो और यहाँ के लोग सच की खातिर अपनी जान गंवाने से भी नहीं डरते!”- मुखिया ने कहा।
“हाँ हाँ, जो सच है वो बताओ! हम सब हैं तुम्हारे साथ! इन हवेलीवालों से डरने की कोई जरुरत नहीं!!”- वहां खड़े गांववालों ने एकसूर में कहा तो उन मुस्टंडों की हिम्मत जगी और उन्होने अपना मुंह खोला।
“बड़े जमाईबाबू ने मुझसे कहा था श्यामा को अकेला पाकर इन कुत्तों को उसके पीछे छोड़ देना! साथ ही इस बात की तस्सली करने को भी कहा था कि श्यामा दीदी की जान चली जाए।”- हाथ जोड़कर उन मुस्टंडों ने कहा फिर भीड़ के समक्ष हाथ जोड़ते हुए अपनी मजबूरी बतायी – “मैं इनका मुलाज़िम हूँ! अगर इनकी बात नहीं मानता तो पता नहीं ये मेरे साथ क्या करते! अब आप ही बताएं?? मैं करता भी क्या! मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं! मेरे पीछे उनका देखभाल कौन करता? अभी पिछले दिनों मेरी बड़ी बेटी हैजे की बलि चढ़ गई। इनलोगों से मदद की गुहार लगाई तो इन्होने दूत्कार कर भगा दिया। बेटी की अंतिम क्रियाक्रम तक के लिए मुझे छूट्टी नहीं दी। दो दिन तक उसकी लाश घर में यूं ही पड़ी रही। ये सब इंसान नहीं जल्लाद हैं! इन्हे माफ नहीं करना! इन्हे इनके किए की सजा मिलनी ही चाहिए!!” कहते-कहते दोनों मुस्टंडे बिलख पड़े और घुटनों के बल आकर वहां खड़ी श्यामा के पैर पर गिर उससे माफी की गुहार लगाने लगे।
“कितनी चरित्रहीन निकली रे तू श्यामा!! पहले अपने दामाद को फांसा और अब इन मुस्टंडों को भी अपनी काया का लोभ दिखाकर अपनी तरफ कर लिया! अरे देह की भूख इतनी ही हिलोरे मार रहा था तो हम मर गए थे क्या!!” – छोटी बहन अमृता के पति ने श्यामा के बढ़े हुए पेट की तरफ देखकर कुटिल मुस्कान भरते हुए कहा। उसकी बातें सुन श्यामा ने कुछ न कहा और भीतर ही भीतर उसके शब्दरूपी जहर पीती रही।
“अब जबकि यह साफ हो गया है कि श्यामा की जान हवेलीवालों ने ही लेनी चाही थी तो मैं, इस गांव का मुखिया होने के नाते, इस बात की सजा तय करने का फैसला श्यामा के हाथो में ही छोड़ता हूँ। वह जो भी सजा तय करेगी वो इस गांव को मंजूर होगा!”- मुखिया ने कहा और गांववालों ने एक सूर में अपनी हामी भरी।
अब सबकी नज़रें श्यामा पर टिकी थी। दोनों मुस्टंडे वहीं उसके चरणों के पास ही हाथ जोड़े घूटने के बल बैठे थे। हवेली के फाटक पर खड़े हवेलीवाले असहज होकर एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे और श्यामा के बोलने का इंतजार कर रहे थे।…

क्रमश:...