बेमेल - 19 Shwet Kumar Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बेमेल - 19

..…कुछ महीने और बीते। अब श्यामा का उभरा हुआ पेट दिखने लगा तो गांववालों ने फिर तरह-तरह की बातें बनानी शुरु कर दी। पर इसका चुनाव तो श्यामा ने खुद किया था। वह चाहती तो पेट में ही अपने गर्भ को मार कर सकती थी। पर एक पाप करने के पश्चात महापाप करना उसे गंवारा न था। कानों में रुई डाल और दिल पर पत्थर रख वह दिन काटती रही। किसी की बातों से अब उसे कोई फर्क न पड़ता।
वहीं दूसरी तरफ गांव में हैजे से हाहाकार फैलता ही जा रहा था। लोग मर रहे थे। अनाज की कमी गांव में इस क़दर बढ़ चुकी थी कि अपने बच्चों का पेट भरने के खातिर लोग एक-दूसरे के मुंह का निवाला छीनने को भी तैयार थे। हवेली के नौकर बंशी ने यह बात श्यामा को बतायी। साथ ही यह भी बताया कि हवेली में अनाज की कहीं कोई कमी नहीं। सारे अनाज जिसे गांववालों ने खून-पसीने से उगाया था, ननदोईयों ने हवेली के भीतर गोदाम में छिपा रखे हैं ताकि उसे मर रहे गांववाले से सोने के दाम पर बेचकर अपनी तिजोरी भर सके। उसने श्यामा से गुहार लगायी कि वह गांववाले के लिए कुछ करे।
“पर मैं कर भी क्या सकती हूँ काका? इस पेट को लेकर कहाँ जाऊं? हवेलीवाले आजतक मेरी बात नहीं माने तो क्या आज मानेंगे?” – श्यामा ने पुछा।
“जिन अनाजों को हवेलीवालो ने छिपा रखा है, उसमें गांववालों का खून-पसीना लगा है श्यामा बिटिया! कितनों का हक़ मारकर उन्होने अनाज की कोठरियां भरी है। ऐसे अनाज का क्या फायदा, जब वो भूख से मर रहे गांववालों को जीवन न दे सके! हाथ जोड़कर मैं तुमसे विनती करता हूँ,अब इन लाचार गांववालों के लिए तुम ही कुछ करो!” – हाथों को जोड़कर आग्रह करता हुआ बंशी बोला और वापस लौट गया।
बंशी तो चला गया पर श्यामा के मन पर जैसे बोझ डाल गया। वह रातदिन यही सोचती रहती कि कैसे गांववालों को इस मुसीबत से उबारा जाए? कैसे वह ननद-ननदोईयों को समझाए जिससे वे अनाज के गोदाम का दरवाजा गांववालों के लिए खोल दे!
बहुत सोचविचार कर उसने कदम घर से बाहर निकाला और एक घर के बाहर आकर खड़ी हो गई। यह गांव के मुखिया भगीरथ का घर था। उसने घर का दरवाजा खटखटाया तो उसकी बीवी बाहर आयी।
“कहो, क्या काम है? क्या लेने आयी हो यहाँ!!”- श्यामा के उभरे पेट पर निगाह डाल फिर साड़ी के पल्लू से अपना मुंह ढंकते हुए मुखिया की बीवी ने वितृष्णा भाव से पुछा।
“ये कुल्टा यहाँ क्या करने आयी है!! निकाल- बाहर करो इसको! हमने इसे इस गांव में रहने दिया, इसका मतलब ये नहीं कि जहाँ मन करे मुंह उठाकर चली आए! कैसी कलयूगी मां है!! अपनी बेटी का हक़ अपने पेट में लिए फिर रही है! धक्के मारकर निकालो इसे यहाँ से और जाने के पश्चात गंगाजल से घर पवित्र करना न भुलना!!” – घर के भीतर से आकर मुखिया ने चिल्लाते हुए कहा।
“पर मुखिया जी, एकबार आप मेरी बात तो सुन लो! मैं कुछ मांगने नहीं, बल्कि गांववालों की मदद करने आयी हूँ!”- श्यामा ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
“हाँ जी, कितनी सही बात कही तुमने !!! अब तुम जैसी पापिन से ही गांववालों को मदद की उम्मीद बाकी बची है! हम मर गए हैं न! चल, भाग यहाँ से!! छिनार कहाँ की!” – मुखिया ने कहा और अपना पांव उठाकर श्यामा के पेट की तरफ बढ़ाया।
“खबरदार....मुखिया!!! इस पेट पर अपनी ओछी निगाह फेरी तो मुझसे बुरा कोई न होगा! कहे दे रही हूँ, हाँ! अगली बार ऐसा करने की सोचा भी तो ये टांग काटकर तेरे शरीर से अलग करते मुझे देर न लगेगी! एक मां के सामने उसके बच्चे पर प्रहार न करना! तूझे क्या लगा... मैं तेरे सामने हाथ फैलाने आयी हूँ! अरे.... जा रे!! तेरी क्या औकात जो मुझे कुछ देगा! गांववालों की तकलीफ सुनकर मुझसे रहा नहीं गया तब मैं तेरे दरवाजे पर आकर खड़ी हुई ताकि तूझे बता सकूं कि इस गांव में अन्न-धान्य होते हुए भी सब भूखे क्यूं मर रहे हैं?”- श्यामा ने दृढ़ता से कहा और अपना पेट पकड़कर वहीं किनारे एक ओट पर जा बैठी। उसके पेट में जोरों का दर्द उठने लगा था।
“हुह....जा यहाँ से! चल भाग!! पहले अपना पेट सम्भाल! गांव की बाद में सोचना!”- कहते हुए मुखिया की बीवी ने धड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया। कराहती हुई श्यामा फिर अपने घर को लौट आयी। सारे रास्ते लोगों की निगाहें उसके पेट पर टिकी रही जिसमें विजेंद्र का बच्चा सांसे ले रहा था।
“गांव में अन्न-धान्य की कमी नहीं।” - मुखिया के दिमाग में श्यामा की कही बातें बारम्बार गूंज रही थी। लेकिन वह भलिभांति जानता था कि उस अन्न-धान्य का रास्ता हवेली के बंद दरवाजे से होकर जाता है और जिसे खुलवाने की कुंजी उसके पास नहीं थी। वह खुद चाहे कितनी भी मिन्नते कर लेता, पर हवेलीवाले गांव की मदद को कभी भी तैयार न होते! फिर श्यामा भी तो उन हवेलीवालों के बीच की ही थी, पर वह तो गांववालों की मदद के लिए आगे आयी थी। परंतू मुखिया को कैसे गंवारा होता कि वह श्यामा जैसी बदनाम और कलंकिनी औरत का सहारा ले!
वहीं अपने प्रति गांववाले के बुरे बर्ताव को नज़रअंदाज कर श्यामा ने उनके प्राणों की रक्षा के लिए प्रण ले रखा था। पिछली सारी बातें भूलकर आज कितने वर्षों बाद उसने हवेली में कदम रखने का निर्णय लिया।…