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सबरीना - उपन्यास
Dr Shushil Upadhyay
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
होटल टाशकेंट के बाहर चारों तरफ बर्फ फैली हुई थी। सामने के पार्क में मरियल धूप का एक टुकड़ा बर्फ से लड़ने की कोशिश कर रहा था। सुशांत अभी ऊंघ रहा था। तय नहीं कर पा रहा था कि बिस्तर छोड़ा जाए या अभी सोया जाए। तभी रिसेप्शन से काॅल आई कि आपसे कोई मिलने आया है। यहां कौन मिलने आया होगा ? किसी को मिलने भी नहीं बुलाया था।
‘मेरे रूम में भेज दीजिए’
‘माफ कीजिएगा सर, लेडी गेस्ट हैं, रूम में नहीं भेज सकते है। यदि आप खुद नीचे आएं तो दस डाॅलर की गेस्ट-फी के बाद साथ ले जा सकते हैं।’
होटल टाशकेंट के बाहर चारों तरफ बर्फ फैली हुई थी। सामने के पार्क में मरियल धूप का एक टुकड़ा बर्फ से लड़ने की कोशिश कर रहा था। सुशांत अभी ऊंघ रहा था। तय नहीं कर पा रहा था कि ...और पढ़ेछोड़ा जाए या अभी सोया जाए। तभी रिसेप्शन से काॅल आई कि आपसे कोई मिलने आया है। यहां कौन मिलने आया होगा ? किसी को मिलने भी नहीं बुलाया था।
‘मेरे रूम में भेज दीजिए’
‘माफ कीजिएगा सर, लेडी गेस्ट हैं, रूम में नहीं भेज सकते है। यदि आप खुद नीचे आएं तो दस डाॅलर की गेस्ट-फी के बाद साथ ले जा सकते हैं।’
पुलिस अंदर आ गई और सीधे सबरीना से मुखातिब हुई। सबरीना घुटनों के बल बैठ गई और हाथ ऊपर कर लिए। सुशांत कुछ भी समझने की स्थिति में नहीं था। उसने भी सबरीना को दोहराया और इंतजार करने लगा ...और पढ़ेआगे क्या होगा ? दो पुलिस वालों ने सबरीना और सुशांत की तलाशी ली और दीवार की ओर मुंह करके खड़ा होने को कहा। पुलिस टीम को लीड कर रहे अधिकारी ने सबरीना से पूछताछ शुरू की। ऐसा लग रहा था, जैसे रशियन में बात हो रही है। उसे सबरीना, जोदेफ, हंगरी, स्लोवाकिया, मजलिस, उल्फीत्सरोवा जैसे शब्द समझ में आए, लेकिन इन शब्दों से कुछ भी साफ नहीं हुआ।
सुशांत हांफता हुआ रिसेप्शन पहुंचा। उसने दूतावास फोन मिलाने को कहा, लेकिन रिसेप्शनिस्ट ने मना कर दिया। सुशांत ने चीख-चीखकर बात करने की पुरानी ट्रिक का इस्तेमाल किया और ये काम कर गई। क्यांेंकि हंगामे से होटल के दूसरे ...और पढ़ेपरेशान हो रहे थे। दूतावास में काफी देर बाद फोन रिसीव हुआ।
‘मैं सुशांत बोल रहा हूं, इंडोलाॅजी का प्रोफेसर हूं और कुछ दिन पहले ही शहरदागी इन्हा यूनिवर्सिटी पहुंचा हूं। मुझे यहां से समरकंद दवलात यूनिवर्सिटी जाना था। लेकिन, सुबह...’
मुसीबतों के हिचकोले खा रहे सुशांत को समझ नहीं आया कि वो अपनी हालत पर रो दे या रेशमी लबादा पहनकर बेहद खुशी का इहजार करे। कुछ घंटों में सब कुछ इतनी तेजी से घटित हुआ था कि वो ...और पढ़ेतक सोते वक्त पहने गए कपड़ों में ही घूम रहा था। उसकी उलझने अभी सुलझी नहीं थी। पर, प्रोफेसर नाजिफ तारीकबी के आने से थोड़ी राहत जरूर महसूस हुई थी। उसके विचार-क्रम को प्रोफेसर तारीकबी ने भंग किया।
सुशांत को लग रहा था कि ड्राइवर जरूरत से ज्यादा तेज गाड़ी चला रहा है। ताशंकद की सड़कें काफी चैड़ी और शांत लग रही थीं। सड़क के किनारों पर बर्फ की मोटी तह मौजूद थी। लेकिन सड़क के बीच ...और पढ़ेगाड़ियों ने बर्फ को रौंदने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। किनारे के भवन काफी ऊंचे थे और वे उदास लग रहे थे। भवनों का डिजाइन एकरसता पैदा कर रहा था। उन्हें देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि किसी भी तरह से उज्बेक कल्चर का कोई संकेत दे रहे हों। सड़क के दोनों ओर के पेड़ बर्फ से लदे थे। फल आने पर झुक जाने का पेड़ों का अनुभव अब उनके काम आ रहा था। भारत में ऐसी सूनी सड़के देखना आमतौर से संभव नहीं होता। सुशांत ने पूछा-