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सबरीना - 3

सबरीना

(3)

‘बेख्तामीर पुलिस स्टेशन चलूं ?

सुशांत हांफता हुआ रिसेप्शन पहुंचा। उसने दूतावास फोन मिलाने को कहा, लेकिन रिसेप्शनिस्ट ने मना कर दिया। सुशांत ने चीख-चीखकर बात करने की पुरानी ट्रिक का इस्तेमाल किया और ये काम कर गई। क्यांेंकि हंगामे से होटल के दूसरे गेस्ट परेशान हो रहे थे। दूतावास में काफी देर बाद फोन रिसीव हुआ।

‘मैं सुशांत बोल रहा हूं, इंडोलाॅजी का प्रोफेसर हूं और कुछ दिन पहले ही शहरदागी इन्हा यूनिवर्सिटी पहुंचा हूं। मुझे यहां से समरकंद दवलात यूनिवर्सिटी जाना था। लेकिन, सुबह...’

‘आप धीरे बोलिये, ताकि आपकी बात को नोट कर सकूं’ दूतावास के कर्मचारी ने कहा।

पर सुशांत को सामने खड़ी मुसीबत दिख रही थी-‘देखिए, आप किसी सक्षम व्यक्ति को होटल टाशकेंट भेलिये, मैं रूम नंबर 419 में हूं। मुझे खतरा महसूस हो रहा है, प्लीज, जल्दी कीजिएगा।’

‘आप चिंतित न हों, जल्द ही मदद मिल जाएगी। रिसेप्शनिस्ट से बात कराइये।’

सुशांत ने फोन रिसेप्शनिस्ट को फोन पकड़ाया और मदद की इंतजार करने लगा।

मदद आने से पहले ही शैतानी हवा की तरह सबरीना फिर हाजिर हो गई। इस बार उसकी मुस्कान बहुत कुटिल और डरावनी लगी।

‘अरे, आप तो काफी घबराए हुए लग रहे हैं।’

‘हां, तो ऐसे में और क्या किया जा सकता है ?’

‘जरा, आपको मेरे साथ बेख्तामीर पुलिस स्टेशन चलना होगा, वे लोग एक बार फिर आपसे बात करना चाहते हैं।‘

‘बात करना चाहते हैं ! पर क्यों ? आप मुसीबत बनकर आ गई मेरे लिए, मुझे यूनिवर्सिटी पहुंचना था, मेरा फोन भी ले लिया गया। और अब मैं बेख्तामीर पुलिस स्टेशन चलूं ? नहीं जाऊंगा!’

‘जाना तो आपको पड़ेगा।‘

‘नहीं, जाऊंगा‘ सुशांत ने चिल्लाकर जवाब दिया।

‘जाना पड़ेगा प्रोफेसर, जाना पड़ेगा। आपका पासपोर्ट भी पुलिस के पास है।‘

‘पासपोर्ट !’

‘जी, वो मैंने आपके रूम में ही पुलिस को दे दिया था, अब चलिये, सारी इंडोलाॅजी बेख्तामीर में ही पढ़ाइयेगा।’

सुशांत का सिर चकराने लगा, उसने एक बार फिर दूसावास फोन करने की कोशिश की, लेकिन सबरीना ने रिसेप्शनिस्ट को मना कर दिया।

मुश्किल हालात में दिमाग काफी तेजी से काम करने लगता है। सुशांत के दिगाम में कई प्लान एक साथ आए और फिर उसने लिफ्ट की ओर दौड़ लगा दी। सबरीना ने उसके पैरों को निशाना बनाकर पर्स फेंका ताकि उलझकर गिर पड़े, लेकिन वो कूदकर आगे निकल गया। वक्त ने साथ दिया और लिफ्ट तुरंत मिल गई। सबरीना के पास ऐसा कोई तरीका नहीं था कि वो उससे पहले उसके रूम तक पहुंच जाए। दिल बेहद तेजी से धड़क रहा था, शरीर कंपकपी की गिरफ्त में था। जल्दी से कमरा खोलने की कोशिश में चाबी उल्टी फंस गई थी। कुछ ही कदम की दूरी पर सबरीना दिखी, लेकिन तब तक दरवाजा खुल गया और सुशांत ने अंदर पहुंचकर सारी सिटकनियां लगा दी। बाहर सबरीना दरवाजा पीट रही थी और पुलिस का डर दिखा रही थी। और कमरे के अंदर बंद सुशांत दूतावास से मदद मिलने की प्रार्थना कर रहा था। दरवाजे के बाहर लोगों की संख्या और शोर दोनों बढ़ रहा था।

अचानक शोर कुछ कम हुआ, बाहर से आवाज आई-

‘ दरवाजा खोलिए प्रोफेसर, मैं प्रोफेसर नाजिफ तारीकबी हूं, आपको यूनिवर्सिटी के लिए लेने आया हूं ’ सुशांत ने कोई जवाब नहीं दिया।

‘ प्रोफेसर, कोई खतरा नहीं है, दरवाजा खोलिए......’ प्रोफेसर तारीकबी ने दरवाजे के लिए नीचे से अपना कार्ड अंदर खिसकाया। सुशांत ने दरवाजे पर लगी सिक्योरिटी-आई से बाहर देखा तो प्रोफेसर प्रोफेसर नाजिफ तारीकबी ही खड़े थे। कुछ और लोग उनके पीछे थे। सुशांत ने मन ही मन सोचा, जो होगा देखा जाएगा और दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खुलते ही प्रोफेसर नाजिफ तारीकबी ने उन्हें गले लगा लिया। सबरीना भी पीछे की ओर खड़ी थी, प्रोफेसर ने बुखारा से लाया गया रेशमी लबादा सुशांत को ओढ़ा दिया....

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