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सबरीना - 8

सबरीना

(8)

मैं उस मुल्क से आया हूं...

सुशांत ने अपनी बात शुरू करने के लिए स्वामी विवेकानंद से शब्द उधार लिए जो उन्होंने शिकागो धर्म सम्मेलन में अमेरिकियों को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किए गए थे। सभागर में शून्य अपने पूरे विस्तार में मौजूद था, लेकिन ज्ञान की आभार और उसे पाने की चाहत की ऊर्जा से हर कोना दीप्त हो रहा था। सभागार का आकार भले ही बहुत बड़ा था, लेकिन उसे इस तरह बनाया गया था कि किसी भी वक्ता को ये अहसास हो कि वो किसी कक्षा में पढ़ा रहा है। उज्बेकी संस्कृति वहां मौजूद रंगों से लेकर चेहरों तक दमक रही थी। सुशांत ने हल्की मुस्कुराहट के साथ पूरे सभागार को देखा, असल में वो ये मैसेज देना चाह रहा था कि उसके मन में किसी प्रकार की घबराहट और संकोच नहीं है। उसने बात शुरू की-

‘ मैं जिस मुल्क से आया हूं, उस मुल्क पर आपकी संस्कृति का गहरा असर है। भले ही, उस असर की जड़ में एक आक्रमण है। उज्बेक योद्धाओं ने हिन्दुस्तान पर कई सौ साल राज किया। वे वक्त के साथ हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए। राजनैतिक तौर पर हिन्दुस्तान हमेशा ही खुले ख्यालों और खुली सीमाओं का देश रहा है इसलिए पश्चिम की ओर से बहुत से हमलावरों ने इस देश पर आक्रमण किया और कुछ वहीं पर बस भी गए। हमारी हजारों साल की परंपरा किसी बादशाह और उसकी ताकत से प्रभावित नहीं हुई और न ही कोई शाहंशाह उसे खत्म कर पाया। हिन्दुस्तान एक हजार साल से ज्यादा वक्त तक ऐसे लोगों की अधीनता में रहा जो नस्ल और तहजीब के लिहाज से हिन्दुस्तानी नहीं थे, लेकिन भारत की ज्ञान-परंपरा को उनमें से कोई भी खत्म नहीं कर पाया और उस धरती पर आज भी बौद्धिक विमर्शाें का यह सिलसिला चल रहा है......’

सुशांत बोलता गया। कई ऐसे पल आए जब उसने खुद को भावुक महसूस किया और कई बार वो गर्व से भर गया। वो जब भी अपने देश से बाहर होता है, उस मिट्टी और उसकी महक को पहले से ज्यादा महसूस करता है। देश में रहकर कभी अहसास नहीं होता कि उसका मोल क्या है। पर, देश के बाहर अपने मुल्क के वजूद और उस वजूद का हिस्सा होने का अहसास बहुत गहरा हो जाता है। कौन है हिन्दुस्तान ? क्या है ये मिट्टी ? कौन बताता है हमें कि हमारा वजूद किससे है ? सुशांत ने बहुत कुछ कहा ओर कहता गया। दो घंटे के लेक्चर में कई बार तालियां बजीं और हर बार उसे लगा कि ये तालियां उसके लिए नहीं, बल्कि उसके मुल्क के लिए हैं। लेक्चर सुनने आए छात्र-छात्राओं और प्रोफेसरों की ओर से जितनी सुखद प्रतिक्रिया मिली थी, वो सुशांत के लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थी। अपने लेक्चर के आखिर में जब उसने आभार जताना शुरू किया तो डाॅ. साकिब मिर्जाएव लगभग दौड़ते हुए आए और एक बार फिर उसे दम घुटने की हद तक बाहों में दबोच लिया। उन्होंने बीच में थोड़ी-थोड़ी ढील दी और दबोचने की प्रक्रिया कई बार दोहराई। ऐसे में, सुशांत को आभार जताने की बजाय अपनी सांसों को उखड़ने से बचाने पर ध्यान देना पड़ा। सुशांत को उम्मीद थी कि लेक्चर के बाद प्रश्नों का दौर शुरू होगा, लेकिन डाॅ. साकिब मिर्जाएव ने ऐलान कर दिया कि अब बहुत देर हो गई है इसलिए किसी का कोई सवाल हो तो वो निजी तौर पर प्रोफेसर सुशांत से बात कर सकता है या अगले दिनों के व्याख्यानों में आ सकता है, ये सिलसिला अभी सप्ताह भर चलेगा।

सुबह के घटना क्रम और लंबे व्याख्यान के बाद सुशांत को थकान महसूस हो रही थी। अब वो जल्द से जल्द होटल पहुंचना चाह रहा था। पासपोर्ट और पुलिस का मामला अब भी दिमाग में बना हुआ था। वो प्रोफेसर तारीकबी की मौजूदगी में पुलिस वाले मामले को हल करना चाहता था, उसे अब भी सबरीना पर यकीन नहीं हो रहा था। सभागार से भीड़ छंट गई थी, प्रोफेसर तारीकबी अपनी लहराती हुई सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए पास आ गए थे। डाॅ. मिर्जाएव चाह रहे थे कि अभी डिपार्टमेंट में चलकर बातें की जाएं, लेकिन प्रोफेसर तारीकबी ने सुझाव दिया कि आज रहने दिया, अभी तो पूरा हफ्ता पड़ा है। डिपार्टमेंट में कल या उसके अगले दिन चल सकते हैं। सुशांत ने प्रोफेसर तारीकबी के सुझाव पर सहमति जताई। तय हुआ कि सबरीना सुशांत को होटल छोड़कर आएगी, लेकिन सुशांत ने प्रोफेसर तारीकबी के साथ चलने पर जोर दिया और वो तैयार भी हो गए। सुशांत डाॅ. मिर्जाएव के सामने से तेजी से आगे निकला, उसे आशंका थी जाते वक्त भी डाॅ. मिर्जाएव उसी दम घोटने वाले तेवर में गले मिलेंगे। जितने लोग सुशांत को रिसीव करने के लिए सुबह आए थे, उससे कहीं ज्यादा लोग उसे गाड़ी तक बैठाने आए। इस बार सबरीना लपककर अगली सीट पर बैठ गई। ऐसे में सुशांत को प्रोफेसर तारीकबी के साथ बीच की सीट पर बैठना पड़ा। प्रोफेसर तारीकबी सुशांत की परेशानी और बेचैनी को महसूस कर रहे थे। उन्होंने बिना देर किए सबरीना से कहा-

‘अब वो पंुलिस वाला मामला निपटाओ सबरीना, प्रोफेसर सुशांत को बेवजह परेशानी में ना डालो।‘

‘ठीक है सर, फिर होटल की बजाय बख्तामीर पुलिस स्टेशन चलते हैं, वहां से फिर होटल चले चलेंगे।‘ सबरीना ने सहजता से जवाब दिया।

एक बार सुशांत को लगा कि पुलिस स्टेशन जाने से मना कर देना चाहिए, लेकिन फिर उसने सोचा कि मुसीबत को लंबा खींचने की बजाय इसका समाधान जरूरी है। उसने प्रोफेसर तारीकबी से पूछा-

‘क्या भारतीय दूतावास को सूचित कर दूं ?‘

‘नहीं, नहीं, उसकी जरूरत नहीं है। मैं संभाल लूंगा, आप परेशान न हों‘ प्रोफेसर तारीकबी ने जवाब दिया।

गाड़ी अमीर तैमूर मार्ग पर दौड़ रही थी। गूगल पर देखा तो कुछ ही मिनट की दूरी पर बंजामीर डिस्ट्रिक्ट पुलिस मुख्यालय था, बख्तामीर उसी डिस्ट्रिक्ट में था। उसे याद आया कि ये सड़क इसलाम करीमोव इंटरनेशनल एयरपोर्ट की ओर भी जाती थी। सुबह से ही विचारों का क्रम टूटने का नाम नहीं ले रहा था और ये विचार डर को कम करने की बजाय और बढ़ा रहे थे। गाड़ी एक बिल्डिंग में घुसी, बिल्डिंग पर सभी नाम उज्बेकी और काराकल्पक भाषा में लिखे हुए थे। सभी नाम रूसी और पर्सियन, दोनों लिपियों में लिखे थे, लेकिन उनको पढ़कर समझना मुश्किल हो रहा था। बिल्डिंग के अहाते में आते ही समझ में आ गया कि ये बख्तामीर पुलिस स्टेशन है। सुशांत ने प्रोफेसर तारीकबी से कहा, ‘ मेहरबानी करके किसी स्थानीय बोली में बात मत कीजिएगा, मुझे पता ही नहीं चलता कि क्या बात हो रही है!‘ इस वाक्य के साथ सुशांत का डर एक बार फिर सामने आ खड़ा हुआ और सबरीना खिलखिला कर हंस पड़ी।

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