सबरीना
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प्रोफेसर तारीकबी सुबगने लगे...
सुशांत को लग रहा था कि ड्राइवर जरूरत से ज्यादा तेज गाड़ी चला रहा है। ताशंकद की सड़कें काफी चैड़ी और शांत लग रही थीं। सड़क के किनारों पर बर्फ की मोटी तह मौजूद थी। लेकिन सड़क के बीच में गाड़ियों ने बर्फ को रौंदने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। किनारे के भवन काफी ऊंचे थे और वे उदास लग रहे थे। भवनों का डिजाइन एकरसता पैदा कर रहा था। उन्हें देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि किसी भी तरह से उज्बेक कल्चर का कोई संकेत दे रहे हों। सड़क के दोनों ओर के पेड़ बर्फ से लदे थे। फल आने पर झुक जाने का पेड़ों का अनुभव अब उनके काम आ रहा था। भारत में ऐसी सूनी सड़के देखना आमतौर से संभव नहीं होता। सुशांत ने पूछा-
‘शहर, हमेशा ही इतना खामोश रहता है ?’
प्रोफेसर तारीकबी को मेरी चुप्पी चुभ रही थी। उन्होंने इतनी जल्दी जवाब देना शुरू किया कि इस बात को भूल गए कि सबरीना भी जवाब दे रहे थी। सुशांत ने टोका, ‘दोनों लोग एकसाथ बोलेंगे तो मुझे कुछ समझ नहीं आएगा।‘
प्रोफेसर तारीकबी ने सबरीना को मौका नहीं दिया।
‘बेहद जिंदा शहर है, खामोशी इसका किरदार नहीं है। ये ढाई हजार साल से अपने होने का सबूत दे रहा है।’ प्रोफेसर तारीकबी अपनी बात पूरी करते इससे पहले ही सबरीना बेालने लगीं।
‘आज अजनबी हैं प्रोफेसर। शहर की खामोशी को इतनी जल्द ताड़ गए! ये शहर रात में जगता है। इसे तड़के सोने की आदत है। ये जिंदा शहर है। ये उज्बेक कौम के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक है। हिन्दुस्तान में ऐसे शहर हैं ?‘
सुशांत समझ गया कि आखिरी शब्दों में उसे निशाना बनाया गया है। सुबह की कुढ़न अब भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी।
‘आपको क्या लगता है, हिन्दुस्तान का जन्म कुछ दशक पहले ही हुआ है ?, जब दुनिया के लोगों के सामने खाना और जिंदा रहना ही मकसद था, उस वक्त से हिन्दुस्तान कला, साहित्य, संस्कृति और विज्ञान का बड़ा केंद्र रहा है। आपने भारत पर रिसर्च की है तो थोड़ा इतिहास भी पढ़ना चाहिए!’ सुशांत ने तल्ख टिप्पणी के साथ अपनी बात खत्म की और वो सबरीना को चुभ भी गई।
‘हां, मुझे पता है। मुझे पता है। आर्याें के हमले से लेकर आज तक का पता है। आपको भी पता होना चाहिए, इसी धरती से होकर आर्य गए थे, इसी उज्बेक धरती से।’ सबरीना के कहने के अंदाज में भावुकता दिख रही थी। सुशांत को अहसास हुआ कि उसने जरूरत से ज्यादा कड़वे ढंग से अपनी बात कही है। प्रोफेसर तारीकबी ने इस बात को ताड़ लिया। वो अपने मेहमान को भी नाराज नहीं करना चाहते थे। उन्होंने बात का रुख मोड़ने के लिए कहा, ‘सबरीना हिन्दुस्तानी लोगों की बहुत तारीफ करती है। उसे हैरत होती है वे अपने कुनबे, समाज और मुल्क को लेकर कितने संजीदा होते हैं। उज्बेकिस्तान में पिछले 30-40 साल में हालात काफी खराब हुए हैं। अब तो ऐसे लगता है कि सोवियत हुकूूमत ही ठीक थी ?‘
‘ऐसा क्यों कह रहे हैं, आजादी बहुत बड़ी चीज होती है!’ सुशांत ने प्रोफेसर तारीकबी को टोका।
‘हां, वो तो ठीक है, लेकिन जिस मुल्क की हर चैथी लड़की नाइट-लाइफ का बहाना लेकर अपना शरीर बेचने को मजबूर हो जाए। शहरों में अमीरों की रंगरलियों के अड्डे उज्बेक तहजीब को चिढ़ाने लगें तो फिर क्या कहा जाए! सोवियतों के राज में ऐसा तो नहीं था।’
सुशांत को इन बातों पर उतनी हैरत नहीं हुई, जितनी की प्रोफेसर तारीकबी के चेहरे को देखकर तकलीफ हुई। 70 बरस का एक विद्वान आदमी अपने समाज के नैतिक पतन और राज व्यवस्था की नंगी सच्चाई बयान कर रहा था। प्रोफेसर तारीकबी का दुख फूट पड़ा।
‘आपको क्या बताऊं प्रोफेसर, कुछ साल पहले सरकार ने कांट्रैक्ट-मैरिज को अनुमति दे दी। अब कोई भी देशी-विदेशी साल भर के लिए शादी कर सकता है और फिर लड़की को छोड़कर अपने मुल्क लौट सकता है, कितना शर्मनाक है!’
सुशांत को यकीन नहीं हुआ, लेकिन प्रोफेसर तारीकबी की जुबान की गंभीरता उसे समझ में आ रही थी।
‘बीते सालों में यमनी, पाकिस्तानी, सीरियाई, इराकी और यहां तक यूरोपीय लोग भी कांट्रैक्ट-मैरिज के लिए लड़कियों को ले जा रहे हैं या फिर यहीं रहकर उनका दैहिक शोषण कर रहे हैं। जो अमीर हैं, वे हर साल लड़कियां बदल रहे हैं। उज्बेक लोग ऐसे हो जाएंगे, यकीन करना मुश्किल है।‘ ये बातें कहते हुए प्रोफेसर तारीकबी भावुक हो गए। उनकी आंखों में सूनापन गहरा हो गया और सुर ज्यादा तीखा लगने लगा।
‘सबरीना, इस सबरीना को देखो। इसने सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी में इंडोलाॅजी पढ़ी है। ये सोवियत राज की आखिरी पीढ़ी है, इन्हें दुनिया बदलनी थी और ये पीढ़ी कहां कैद थी ? जब ये नौकरी गंवाकर उज्बेकिस्तान आई तो हमारे पास ऐसे हुनरमंद लोगों के लिए कोई काम नहीं था। बस आजादी थी! और वो आजादी रात में देह बेचने की थी।’
माहौल बेहद बोझिल हो गया। जैसे, शब्दों की सत्ता समाप्त हो गई हो। प्रोफेसर तारीकबी सुबकने लगे। सुशांत शून्य में ताक रहा था। पीछे की ओर देखा तो सबरीना अपने आंसुओं को पोंछ रही थी।
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