सबरीना - 4 Dr Shushil Upadhyay द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सबरीना - 4

सबरीना

(4)

ठंडी हवा-सी चुभती सबरीना

मुसीबतों के हिचकोले खा रहे सुशांत को समझ नहीं आया कि वो अपनी हालत पर रो दे या रेशमी लबादा पहनकर बेहद खुशी का इहजार करे। कुछ घंटों में सब कुछ इतनी तेजी से घटित हुआ था कि वो अभी तक सोते वक्त पहने गए कपड़ों में ही घूम रहा था। उसकी उलझने अभी सुलझी नहीं थी। पर, प्रोफेसर नाजिफ तारीकबी के आने से थोड़ी राहत जरूर महसूस हुई थी। उसके विचार-क्रम को प्रोफेसर तारीकबी ने भंग किया।

‘चलिए, अब तैयार हो जाइये, जल्द यूनिवर्सिटी पहुंचना है। प्रोफेसर तारीकबी उसी सोफे पर पसर गए, जिस पर सुबह सबरीना बैठ गई थी। सबरीना ने जैसे ही अंदर आने के लिए पहला कदम बढ़ाया, सुशांत ने उसे बाहर की ओर ठेल दिया और दरवाजा बंद कर लिया। प्रोफेसर तारीकबी ने कोशिश की कि सबरीना भी अंदर आ जाए, लेकिन सुशांत उसे लेकर बेहद गुस्से और घृणा से भरा हुआ था।

‘प्रोफेसर, ये सब क्या हो रहा है ?’

‘आप, बेवजह फिक्रमंद हो रहे हैं, जल्दी से तैयार हो जाइये, रास्ते में आपकी परेशानी भी सुनूंगा और उसका हल भी बताऊंगा।’ प्रोफेसर तारीकबी के जवाब से सुशांत को कोई राहत नहीं मिली। वो कुछ देर में तैयार होकर आ गया। बीती रात उसने सोचा था कि धोती-कुर्ता पहनकर यूनिवर्सिटी चलेगा, पर सुबह से जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर धोती पहनने का ख्याल छोड़ दिया। कमरे के बाहर सबरीना मौजूद है। फिर कहीं, बख्तामीर पुलिस स्टेशन चलने की नौबत आ गई तो धोती में सहजता नहीं रहेगी। इसी उधेड़बुन में वो तैयार हो गया और प्रोफेसर तारीकबी अपने स्काॅलर्स के बारे में बताने लगे। ‘ज्यादार स्काॅलर फरगाना वादी से आते हैं। बहुत खूबसूरत वादी है। अगले हफ्ते जुमेरात के रोज वहां चलने का प्रोगा्रम रखा है। आपको अच्छा लगेगा। इतनी खूबसूरत वादी को देखकर आप कश्मीर को भूल जाएंगे।’

प्रोफेसर तारीकबी अपनी धुन में बताते रहे, और सुशांत ने एक-दो बार ‘जी, जी’ कहकर जवाब दिया। उसका ध्यान पीछे चल रही सबरीना पर लगा हुआ था। पता नहीं, ये मुसीबत कब पीछा छोड़ेगा। सुशांत ने बराबर से देखा तो सबरीना के चेहरे पर विजेता-सी कुटिल मुस्कान तैर रही थी। जैसे, कह रही हो, ‘ अब तो फंस गए प्रोफेसर, अब आगे देखो, होता है क्या-क्या।’ प्रोफेसर तारीकबी रिकाॅर्ड किए हुए टेप की तरह बज रहे थे।

‘आपको मैं बताऊं, फरगाना वादी के लोग बहुत खूबसूरत होते हैं। लड़कियां तो बहुत खूबसूरत होती हैं।‘ ये बात कहकर प्रोफेसर कुछ देर रुके और फिर जैसे अतीत से निकल आए।

‘मेरी बीवी भी फरगाना की है। इस वादी में यहां ताजिक, उज्बेक और कज्जाख लोग भी रहते हैं। कज्जाख बड़े योद्धा होते हैं। बहुत बड़े। कज्जाखों ने आधी सदी तक सोवियत सेनाओं के साथ लड़ाई की। आखिर तक हार नहीं मानी।’

‘और कज्जाख ही नहीं, उज्बेक भी गजब के योद्धा हैं। अब, जैसे जहीररूद्दीन बाबर को ही ले लो.....’

‘हां, उस आदमी के कारण हिन्दुस्तान ने बड़ी मुसीबतें झेलीं, मुल्क की कई तकलीकों की जड़ में आज भी वो ही है।’ सुशांत ने तल्खी से जवाब दिया। लेकिन, प्रोफेसर तारीकबी ने ऐतराज जताया।

‘नहीं, ऐसा नहीं है। आप लोगों ने बाबर को ठीक से समझा नहीं। यहां बुखारा में और फरगाना में उसे बहुत इज्जत दी जाती है। वो हिन्दुस्तान में उज्बेक कला, संगीत, संस्कृति और भाषा को लेकर गया। वो लुटेरा नहीं था। वो वहीं का होकर रह गया। पता नहीं, हिन्दुस्तानी ऐसा क्यों सोचते हैं कि वो लुटेरा था ?’

‘जी, वो लुटेरा था। उसकी फौज ने काबुल से लेकर दिल्ली तक तबाही मचाही। उसने अफगानिस्तान में बौद्ध मंदिरों को खत्म कर दिया, उसके रास्ते में जो भी हिन्दू और बौद्ध प्रतीक आए उन सभी को खत्म करता गया। हिन्दुस्तान में किसी से पूछ लीजिए, वो एक बुरा आदमी थी, उसने कत्लो-गारत मचाई, उसने हिन्दुओं को अपना दुश्मन माना और हिन्दुस्तान के पूरे ताने-बाने तहस-नहस कर दिया।’ सुशांत के इस जवाब से प्रोफेसर तारीकबी भौचक्के थे।

‘आप क्या रहे हैं! क्या किसी प्रोफेसर को धारणाओं पर बात करनी चाहिए। आपको उसकी आत्मकथा ’बाबरनामा’ पढ़नी चाहिए। उसने अपनी विफलताओं का भी वैसे ही जिक्र किया है, जैसे अपनी सफलताओं का। उसे समरकंद में भी हमलावर माना जाता है। तीन बार समरकंद जीता और तीनों बार उसे समरी योद्धाओं ने यहां से भगा दिया।’

सुशांत थोड़ा चैंका, समरकंद ने तीन बार बाबर को हराकर भगाया! ये कुछ नई बात थी।

प्रोफेसर तारीकबी फिर टेपरिकाॅर्ड की तरह बजने लगे।

‘यदि वो समरकंद का बादशाह बन जाता तो फिर काबुल और दिल्ली की तरफ न जाता। जब वो हिन्दुस्तान का बादशाह बन गया तो उज्बेक लोगों ने अपनी अस्मिता को उसके साथ जोड़ लिया। आप हिन्दुस्तान में सम्राट अशोक और विक्रमादित्य को जो सम्मान देते हैं, वही सम्मान बाबर को उज्बेकिस्तान में मिलता है।’

प्रोफेसर तारीकबी की बातें अब खीझ पैदा करने लगी थीं। होटल के बाहर गाड़ी खड़ी थी। सुशांत ड्राइवर के बगल की सीट पर बैठ गया। जब भी वो कहीं विदेश में होता है तो आगे की सीट पर बैठने की कोशिश करता है ताकि उस देश को और नजदीक से देख सके। हालांकि, प्रोफेसर तारीकबी उम्मीद कर रहे थे कि सुशांत उनके साथ बैठेंगे। सबरीना अभी तक साथ थी और सुशांत को आश्चर्य हुआ कि वो गाड़ी में प्रोफेसर तारीकबी के साथ बैठ गई। उसके मन में पहला सवाल आया कि प्रोफेसर तारीकबी और सबरीना कहीं आपस में मिले हुए तो नहीं हैं ?

‘प्रोफेसर तारीकबी मैं आज सुबह की घटना और सबरीना के बारे में आपसे बात करना चाहता हूं।‘

‘हां, हां कीजिए, ये भी कई दिन से आपके बारे में बात करना चाहती थी।’ प्रोफेसर तारीकबी ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा। वे काफी खुश और सहज लग रहे थे।

‘कई दिन से बात करना चाहती थी ? मतलब! मैं समझा नहीं ?‘

‘सुशांत, मैं आपको बताना भूल गया था, सबरीना मेरी रिसर्च स्कॅालर है। अब तो ‘थी’ हो गई है। इसने उज्बेक लोगों की जिंदगी पर हिन्दुस्तानी असरात को लेकर बेहद जरूरी और काबीले तारीफ रिसर्च की है।’

एक बार फिर सुशांत को लगा कि उसकी सोचने-समझने की जो भी काबिलियत थी, उसका हरण हो गया है। वो शून्य में खड़ा है और सबरीना हवा-सी लहराती हुई उसके चारों तरफ बह रही है। ठंडी और चुभने वाली हवा की तरह.....

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