सबरीना - 32 - अंतिम भाग Dr Shushil Upadhyay द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सबरीना - 32 - अंतिम भाग

सबरीना

(32)

‘कभी लौटकर आओगे प्रोफेसर!’

सबरीना, डाॅ. मिर्जाएव, छोटा चारी एयरपोर्ट पर सुशांत को छोड़ने आए थे। जारीना नहीं आई थी। दानिश आया था, उसे देखकर सुशांत को अच्छा लगा। अभी वो पूरी तरह ठीक नहीं था, लेकिन तब भी आया था। सुशांत उम्मीद कर रहा था कि डाॅ. मिर्जाएव आज फिर उसी उत्साह से मिलेंगे, जैसे कि यूनिवर्सिटी में पहले दिन मिले थे, लेकिन उन्होंने धीरे से गले लगाया और सुशांत की पीठ पर दोस्तों की तरह थपकी दी। छोटा जारी नमकीन मक्खन लेकर आया था जो उसकी दादी भेड़ों के दूध से बनाती है। छोटा चारी बहुत देर तक सुशांत का हाथ पकड़े रहा, जैसे मना कर रहा, लौट कर न जाओ। चारों लोग उसे एयरपोर्ट के मेन गेट तक छोड़ने आए। सुशांत काफी देर तक कांच के बड़े दरवाजे के पास खड़ा रहा। कोई था, जो उसे पीछे खींच रहा था, लेकिन वक्त कहां ठहरता है! वो आगे खींचकर ले ही जाता है, चाहे कितना भी ठिठकने की कोशिश करो। सबरीना दरवाजे तक आई। हैंडबैग में बहुत संभालकर रखा काला गुलाब निकाला और सुशांत के कोट की जेब पर लगा दिया। गुलाब की पंखुड़ियों के बीच पानी की एक बड़ी बंदू मोती की तरह चमक रही थी।

‘कभी लौटकर आओगे प्रोफेसर!’ उसने डबडबाती आंखों को संभालकर पूछा।

‘ पता नहीं।’ सुशांत आगे बढ़ गया।

पीछे, सबरीना ने चिल्लाकर कहा, ‘ सुनो प्रोफेसर, मैं आऊंगी। बस, तुम बुलाने का वादा याद रखना।’

बादलों को चीरकर आसमान में उड़ते जहाज से सुशांत उज्बेकिस्तान की धरती को देख रहा था, जो छोटी, और छोटी होती जा रही थी। एक पल में उसे लगा, उज्बेक धरती सबरीना में तब्दील हो गई और जिस वक्त वो सबरीना में तब्दील हुई उसी वक्त आंखों से ओझल हो गई। उसने कई बार देखा, बस एक छोटा-सा बिंदू था जो दूर कहीं दिख रहा था, जिसका कोई वजूद ही नहीं था।

तभी उद्घोषणा में बताया गया, ‘ हमारा विमान अब से ठीक दो घंटे 35 मिनट बाद नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर लैंड करेंगा। इंडियन एयरलाइंस आपकी सुखद यात्रा की कामना करती है।’

सुशील उपाध्याय

समाप्त