Sabreena - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

सबरीना - 22

सबरीना

(22)

प्रोफेसर तारीकबी चले गए.....

प्रोफेसर तारीकबी की हालत काफी खराब थी। उनकी सांसें रुक-रुक कर चल रही थीं। दानिश को अभी होश नहीं आया था और डाॅ. मिर्जाएव वैसे तो ठीक थे, लेकिन अभी सदमे से बाहर नहीं आए थे और लगातार शून्य में ताक रहे थे। सबरीना की हालत अच्छी नहीं थी, वो अनाप-शनाप बोले जा रही थी। अब जो भी निर्णय लेना था, वो जारीना और सुशांत को लेना था।

आसपास कोई मेडिकल सुविधा उपलब्ध नहीं थीं और यहां तक राहत पहुुंचने में कई घंटे का वक्त लग सकता था। जारीना ने सुशांत की ओर देखा और बोली, ‘ ताशकंद ही चलना चाहिए सर। वहां से पहले कोई मेडिकल हायर सेंटर नहीं है।‘ सुशांत ने सहमति जताई। गाड़ी की सीटें टू-बाई-टू स्टाइल की थी इसलिए दानिश और प्रोफेसर तारीकबी को सीटों पर लेटा पाना संभव नहीं था। उन्हें सीटों के बीच मौजूद जगह में नीचे ही लेटाना पड़ा। कई स्टूडेंट्स ने अपने लबादे और गर्म कोट नीचे बिछाने के लिए दे दिया। आगे की सीट पर डाॅ. मिर्जाएव को बैठाया गया, वे बैठ गए और फिर शून्य में ताकने लगे। जारीना ने ड्राइवर से कहा, फराबाई रोड पर ताशकंद मेडिकल एकेडमी चलना है। वहां प्रोफेसर तारीकबी के दोस्त हैं डाॅ. मोरसात, उनसे बेहतर मदद नहीं मिल सकेगी।’ गाड़ी तेजी से ताशकंद की ओर बढ़ चली।

प्रोफेसर तारीकबी की गर्दन को सहारा देकर सीधा किया गया, लेकिन गर्दन हर बार लुढ़क जाती थी। सुशांत ने उनकी नब्ज टटोली, लेकिन कुछ अंदाज नहीं लग पा रहा था। जारीना ने सुशांत से प्रोफेसर तारीकबी का सिर पकड़ने को कहा और फिर उसने मुंह से सांस देने की कोशिश की, वो काफी देर तक जूझती रही और फिर सुशांत ने ये जिम्मा संभाला। फिर एक-एक करके स्टूडैंट उठे और मेडिकल एकेडमी पहुंचने तक उन्होंने ये सिलसिला जारी रखा। उन्हें नहीं पता था कि मेडिकल के लिहाज से ये तरीका कितना कारगार है, लेकिन वे प्रोफेसर तारीकबी को जिंदा रखना चाहते थे। कुछ स्टूडैंट ने दानिश के पैरों की मालिश की, उनके कपड़ों से बर्फ निकाली। दानिश ने एक-दो बार कराहने की आवाज निकाली तो सभी ने इसे राहत का संकेत समझा। सबरीना अब भी लगातार बोले जा रही थी। सुशांत ने उसे चुप रहने को कहा, इस पर वो भड़क गई। जारीना अपनी जगह से उठी और उसने सबरीना तो तड़-तड़ दो-तीन थप्पड़ जड़ दिए। हर कोई भौचक्का होकर देख रहा था। सबरीना रो पड़ी और फिर घुटनों के बल प्रोफेसर तारीकबी के पास बैठ गई। उसने प्रोफसर तारीकबी के हाथ अपने हाथों में ले लिए। उसके आंसू प्रोफेसर तारीकबी के चेहरे पर गिरते रहे और लुढ़कते रहे। बराबर में खड़ी हुई जारीना बार-बार अपने जज्बातों पर काबू पाने की कोशिश करती रही। सुशांत ने जारीना की कमर पर हाथ रखा और हौसला रखने को कहा। जारीना ने सबरीना का हाथ पकड़ा और उसे वहां से उठकर सीट पर बैठने को कहा। सबरीना उठी और जारीना के गले लगकर रोने लगी। हर कोई भावुक था, रात होने से पहले गाड़ी ताशकंद आ गई और कुछ ही देर में मेडिकल एकेडमी की इमरजेंसी के बाहर पहुंच गई।

जारीना उतरी गाड़ी से उतरी और सीधे डाॅ. मोरसात के कक्ष की और दौड़ी, लेकिन तब तक वो घर जा चुके थे। इमरजेंसी स्टाफ ने अपना काम शुरू कर दिया था, प्रोफेसर तारीकबी को स्ट्रेचर पर लेटाया गया और ट्रामा सेंटर ले जाया गया। उनके पीछे-पीछे दानिश और डाॅ. मिर्जाएव को भी लाया गया। तभी किसी ने पहचाना, ‘ अरे, ये तो प्रोफेसर तारीकबी हैं।’ कुछ ही देर में शोर जैसा मच गया कि प्रोफेसर तारीकबी गंभीर रूप से घायल हैं, लगभग मरणासन्न स्थिति में। डाॅ. मोरसात को फोन किया गया। कई डाॅक्टरों की टीम प्रोफसर तारीकबी को देखने में जुट गई, लेकिन डाॅक्टरों के चेहरों पर कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही थी। बस, इस बीच इतनी राहत जरूर रही कि डाॅक्टरों ने दानिश और डाॅ. मिर्जाएव को कोई गंभीर चोट न लगने की बात कही। उन्हें जल्द ही सामान्य वार्ड में भेज दिया गया। इस बीच डाॅ. मोरसात भी पहुंच गए। डाॅ. मोरसात सोवियत संघ में प्रोफसर तारीकबी के साथ काम कर चुके थे। दोनों में गहरा याराना था, कई लोग उन्हें सगा भाई मानते थे। डाॅ. मोरसात ने काफी देर तक प्रोफेसर तारीकबी को देखा, साथ खड़े डाॅक्टरों से बात की। उनका शरीर कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रहा था, लेकिन सांसें जरूर चल रही थी। जारीना उनके पास ही खड़ी थी, डाॅ. मोरसात ने अपनी आंखों के कोयों के गीलेपन को बाहर नहीं आने दिया। उन्होंने निराशा और नाउम्मीदी से जारीना की तरफ देखा, ‘प्रोफेसर तारीकबी की गर्दन टूट चुकी है, उनके मस्तिष्क का शरीर पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। अब भले ही वे दो-चार दिन जिंदा रह जाएं, लेकिन उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता।’

जारीना को लगा डाॅ. मोरसात ने बहुत बुरे शब्दों का चयन किया है, जबकि डाॅ. मोरसात को लगा कि उन्होंने हरसंभव सकारात्मक शब्दों का चयन किया है, वरना उनकी हालत और भी ज्यादा खराब है। जारीना घुटनों के बल बैठ गई और सुबकने लगी। डाॅ. मोरसात कुछ देर खड़े रहे और फिर प्रोफेसर तारीकबी की दाढ़ी पर हाथ फेरने लगे। जैसे उन्हें याद दिला रहे हों, उठो और सच्चे साम्यवादी की तरह दाढ़ी पर हाथ फेरकर अपने अब्बा को चिढ़ाओ। डाॅ. मोरसात को पता ही नहीं चला कि कब वो कि डाॅक्टर से बदलकर दोस्त हो गए और फिर उनके भीतर का इंसान अपने दोस्त की हालत पर गमजदा हो गया। वे बैड के एक कोने पर बैठ गए और शायद मेडिकल की सीमाओं से परे किसी चमत्कार की उम्मीद में उनके सीने पर हाथ फेरने लगे।

डाॅक्टरों और मेडिकल स्टाफ की भीड़ में मौजूद सुशांत को याद आया कि शायद सबरीना गाड़ी से उतरी ही नहीं। वो दौड़ कर वहां पहुंचा तो सबरीना इमरजेंसी वार्ड के सामने की बेंचों पर बेसुध-सी बैठी थी, उसे ख्याल ही नहीं रहा था कि बर्फ दोबारा गिरने लगी है। अब वो शांत थी, शायद जो कुछ हुआ उसको स्वीकारने की कोशिश कर रही थी। वो सुशांत को देखकर उठ खड़ी हुई और एक भी शब्द बोले बिना उसके पीछे चल पड़ी। ट्रामा सेंटर में प्रोफेसर तारीकबी लेटे थे, डाॅ. मोरसात उनके बैड के कोने पर बैठे थे और जारीना नीचे बैठी सुबक रही थी। सबरीना धीरे-धीरे प्रोफेसर तारीकबी के पास गई, जैसे वो किसी आहट को सुनकर नींद से न लग जाएं। प्रोफेसर तारीकबी का गोरा चेहरा और भी सफेद हो गया था, उनकी लंबी उंगलिया और ज्यादा लंबी लग रही थी। उनके चेहरे से नहीं लग रहा था कि वे बेहद पीड़ा में हैं। सबरीना ने उनका हाथ छुआ तो पहले से ज्यादा ठंडा था। डाॅ. मोरसात कमरे से बाहर निकल गए और सबरीना बहुत गौर से प्रोफेसर तारीकबी का चेहरा देखती रही। उसने अपने कान प्रोफेसर तारीकबी के साथ सीने पर रख दिए। शायद प्रोफेसर तारीकबी इसी पल का इंतजार कर रहे थे, सबरीना के कानों ने अचानक धक्क-सी आवाज सुनी और सांसों का सिलसिला बंद हो गया। प्रोफेसर तारीकबी चले गए।

सबरीना ने जारीना की ओर देखा। जरीना बाहर की ओर दौड़ी, ‘ डाॅ. मोरसात, डाॅ. मोरसात.....।’ डाॅक्टरों का समूह और मेडिकल स्टाफ फिर जुट गया। डाॅ. मोरसात ने प्रोफेसर तारीकबी की गर्दन पर देर तक हाथ रखे रखा। फिर उन्होंने अपना सफेद कोट उतारकर तारीकबी को ओढ़ा दिया, उनका माथा चूमा, दोनों हाथ उठाकर सीने पर रख लिए बिखरी हुई दाढ़ी को एक ओर कर दिया, जैसे प्रोफेसर तारीकबी ने खुद अपने हाथों से संवारा हो। कमरे के बारे स्टूडैंट्स रो रहे थे और दूसरे कमरे में डाॅक्टर बमुश्किल डाॅ. मिर्जाएव को रोक पा रहे थे। डाॅ. मोरसात डाॅ. मिर्जाएव के कमरे तक गए और उन्हें अपने साथ लेकर आए। उन्होंने प्रोफेसर तारीकबी को देखा, उनके हाथ इबादत के अंदाज में ऊपर की ओर उठ गए। उन्होंने डाॅ. मोरसात से पूछा, ‘क्या मैं प्रोफेसर तारीकबी के गले मिल लूं ?’ उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही वे प्रोफेसर तारीकबी से लिपट गए और उसी अंदाज में उनकी गालों से गाल मिलाने लगे, जैसे बरसों से मिलाते थे।

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