Kalvachi-Pretni Rahashy - S2 book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Kalvachi-Pretni Rahashy - S2 is also popular in डरावनी कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२ - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
अब सभी सकुशल अपना अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे,सबसे पहले त्रिलोचना और कौत्रेय के यहाँ पुत्र का जन्म हुआ,इसी मध्य भैरवी ने भी एक पुत्री को जन्म दिया,उस बालिका के आने से समूचे राजमहल में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई,अचलराज भी अपनी पुष्प सी पुत्री को देखकर फूला ना समा रहा था ,त्रिलोचना भैरवी के पास उसकी पुत्री से भेंट करने आई तब भैरवी ने प्रसन्नतापूर्वक त्रिलोचना से कहा....
"त्रिलोचना! आज से मेरी पुत्री तुम्हारी पुत्रवधू हुई,जब दोनों बालक एवं बालिका वयस्क हो जाऐगें तो तब हम इनका विवाह कर देगें"
"हाँ! मुझे कोई आपत्ति नहीं ,किन्तु तुम पहले महाराज अचलराज से तो पूछ लो, भला वे अपनी पुत्री को मेरी पुत्रवधू बनाऐगे या नहीं"त्रिलोचना बोली....
"मुझे कोई आपत्ति नहीं है त्रिलोचना! मैं तो कब से यही विचार बना रहा था और कौत्रेय तो मेरा मित्र है,मुझे तो प्रसन्नता होगी यदि हम सम्बन्धी बन गए तो",अचलराज बोला....
"मित्र! ये तो तुम्हारी महानता है जो तुम महाराज होकर भी अपनी पुत्री को मेरी पुत्रवधू बनाकर मुझे सौंपना चाहते हो", कौत्रेय बोला...
अब सभी सकुशल अपना अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे,सबसे पहले त्रिलोचना और कौत्रेय के यहाँ पुत्र का जन्म हुआ,इसी मध्य भैरवी ने भी एक पुत्री को जन्म दिया,उस बालिका के आने से समूचे राजमहल में प्रसन्नता की लहर ...और पढ़ेगई,अचलराज भी अपनी पुष्प सी पुत्री को देखकर फूला ना समा रहा था ,त्रिलोचना भैरवी के पास उसकी पुत्री से भेंट करने आई तब भैरवी ने प्रसन्नतापूर्वक त्रिलोचना से कहा.... "त्रिलोचना! आज से मेरी पुत्री तुम्हारी पुत्रवधू हुई,जब दोनों बालक एवं बालिका वयस्क हो जाऐगें तो तब हम इनका विवाह कर देगें" "हाँ! मुझे कोई आपत्ति नहीं ,किन्तु तुम पहले
दाईमाँ को देखते ही भूतेश्वर बोला.... "दाईमाँ! आप गईं नहीं" "नहीं! मुझे कुछ संदेह सा हो रहा था क्योंकि तुम्हारी पुत्री के जन्म लेते ही उसके मुँख में दाँत थे,जो कि ऐसा असम्भव है किसी भी नवजात बालक या ...और पढ़ेके दाँत नहीं होते,जो प्रेत योनि का होता है उसी नवजात शिशु के दाँत जन्म के समय से ही होते हैं"दाईमाँ बोली..... "तो अब आपका क्या विचार है?",भूतेश्वर ने पूछा.... "मैंने तुम्हारे और कालवाची के मध्य हो रहे वार्तालाप को सुन लिया है,इसलिए अब मुझे सब ज्ञात हो चुका है,तुम्हारा अपनी पत्नी और पुत्री के संग चामुण्डा पर्वत जाना अति
अब भूतेश्वर ने इस विषय पर बहुत सोचा और कालवाची एवं महातंत्रेश्वर के विचारों के पश्चात वो इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि कालवाची सत्य कह रही है,यदि उसकी पुत्री जीवित रही तो उसे भी अपना जीवन जीने हेतु कालवाची ...और पढ़ेभाँति ही संघर्ष करना पड़ेगा जो कि उचित नहीं है और उसने वही किया जैसा कि कालवाची ने कहा था,दोनों ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर उस शिशु कन्या को एक काली अँधेरी कन्दरा में छोड़कर दिया और कन्दरा के द्वार पर एक बड़ा सा पत्थर लगा दिया जिससे वो शिशु कन्या वहाँ से निकल ना सके और वे अपने
विराटज्योति ने राजमहल के बाहर आकर अपने सेनापति दिग्विजय सिंह को आदेश दिया कि वो सैनिकों को टुकड़ियों में विभाजित करना होगा तभी हम उस स्थान को सरलता से चारों ओर से घेर सकते हैं,जहाँ पर वे सभी दस्यु ...और पढ़ेरहे हैं... "जी! महाराज! सारा कार्य योजनानुसार ही होगा,आप तनिक भी चिन्ता ना करें,हम सभी की विजय निश्चित है",सेनापति दिग्विजय सिंह बोले.... "जी! आप सभी से मैं ऐसी ही आशा रखता हूँ",विराटज्योति बोला... "जी! महाराज! हम आपकी आशा को निराशा में कदापि नहीं बदलेगें" सेनापति दिग्विजय सिंह बोले.... "तो चलिए! इस कार्य को सफल बनाने हेतु प्रस्थान करते हैं",विराटज्योति बोला....
विराटज्योति विजयी होकर लौटा था इसलिए राजमहल में हर्षोल्लास का वातावरण छा गया,विराटज्योति को सफलता प्राप्त हुई है,ये सूचना समूचे राजमहल में बिसरित हो चुकी थी,किन्तु अभी तक विराटज्योति राजमहल ना पहुँचा था क्योंकि वो सेनापति दिग्विजय सिंह के ...और पढ़ेउन नवयुवतियों को उनके यथास्थान पहुँचाने गया था,जब उसने सभी युवतियों को उनके परिजनों तक पहुँचा दिया तो तब वो राजमहल पहुँचा, जहाँ विराटज्योति की पत्नी चारुचित्रा आरती का थाल सजाकर उसकी प्रतीक्षा कर रही थी,विराटज्योति जब चारुचित्रा के समक्ष पहुँचा तो चारुचित्रा की प्रसन्नता का पार ना रहा और वो प्रसन्नतापूर्वक उसकी आरती उतारने लगी,आरती उतरवाने के पश्चात विराटज्योति