कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(२१) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(२१)

विराटज्योति को चिन्तित देखकर मनोज्ञा बनी कालबाह्यी उसके पास जाकर बोली....
"इतने चिन्तित ना हों महाराज! मैं आपकी व्यथा भलीभाँति समझ सकती हूँ,जब कोई हमारे साथ विश्वासघात करता है तो ऐसा ही प्रतीत होता है"
"मनोज्ञा! अभी तुमसे मेरा वार्तालाप करने का मन नहीं है,तुम शीघ्रतापूर्वक अतिथि कक्ष से बाहर चली जाओ एवं रानी चारुचित्रा को भी अपने संग ले जाओ,मैं अभी एकान्त चाहता हूँ"
इसके पश्चात् मनोज्ञा उस स्थान से उठकर चारुचित्रा के समीप आकर बोली...
"रानी चारुचित्रा! चलिए आप अपने कक्ष में चलकर विश्राम कीजिए",
चारुचित्रा का भी मन नहीं था विराटज्योति से वार्तालाप करने का इसलिए वो वहाँ से उठी और मनोज्ञा के साथ ही अतिथिगृह से बाहर निकलकर अपने कक्ष में जाने लगी तो मनोज्ञा उससे बोली...
"मैं मनोज्ञा नहीं हूँ रानी चारुचित्रा! मैं कोई दूसरी दासी हूँ"
"ये मुझे ज्ञात है",चारुचित्रा बोली...
"तो आप ये नहीं पूछेगीं कि मैं कौन हूँ",मनोज्ञा बनी दासी बोली...
"नहीं! मुझे ये जानने में कोई रुचि है नहीं है कि तुम कौन हो,तुम छलावे के अलावा और कोई नहीं हो सकती",
और ऐसा कहकर रानी चारुचित्रा अपने कक्ष में चली गई,जब रानी चारुचित्रा अपने कक्ष में चली गई तो मनोज्ञा उस दासी के पास आकर बोली...
"एकान्त में चलो,अब हम दोनों अपना रुप बदल लेते हैं",
उसके पश्चात् वो दासी मनोज्ञा के संग किसी एकान्त स्थान पर चली गई और उसके संग जो हुआ होगा वो बताने की आवश्यकता नहीं है,क्योंकि मनोज्ञा ने उसकी हत्या कर दी और उसके हृदय को आहार स्वरूप ग्रहण कर लिया,इसके पश्चात् वो राजमहल लौट आई,वो अपने कक्ष में पहुँची तो धवलचन्द्र उसकी प्रतीक्षा कर रहा था,तब धवलचन्द्र उससे बोला....
"तुम ये क्या कर रही हो कालबाह्यी! मैंने तुम्हें जिस कार्य के लिए यहाँ भेजा था वो तो तुम कर ही नहीं रही हो,कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम राजा विराटज्योति से प्रेम करने लगी हो",
"नहीं! ऐसा कुछ नहीं है राजकुमार धवलचन्द्र! मैं तो केवल रानी चारुचित्रा की आँखों में अश्रु देखना चाहती हूँ,इसलिए मैं ऐसा कर रही हूँ",कालबाह्यी ने झूठ बोलते हुए कहा...
"क्यों? तुम्हारी ऐसी कौन सी निजी शत्रुता हो गई चारुचित्रा से",धवलचन्द्र ने पूछा...
"मैं चाहती थी कि विराटज्योति मेरे रुप पर मुग्ध हो जाए,किन्तु ऐसा होता ही नहीं है,वो चारुचित्रा से अत्यधिक प्रेम करता है,मेरे इतने प्रयासों के पश्चात् भी उसका प्रेम चारुचित्रा के लिए कम नहीं हुआ,इसलिए मुझे चारुचित्रा पसंद नहीं है",कालबाह्यी बोली...
"तो तुम ऐसा कुछ क्यों नहीं करती जिससे विराटज्योति चारुचित्रा से घृणा करने लगे",धवलचन्द्र बोला....
"ये कार्य तो आप ही कर सकते हैं,ये कार्य मेरे वश का नहीं है",कालबाह्यी बोली....
"वो भला कैंसे"?,धवलचन्द्र ने पूछा....
इसके पश्चात् कालबाह्यी ने मद्धम स्वर में अपनी योजना धवलचन्द्र को बताई,योजना सुनकर धवलचन्द्र प्रसन्न हो उठा और कालबाह्यी से बोला...
"तुम चिन्ता मत करो कालबाह्यी! आज रात्रि ही ये कार्य हो जाएगा",धवलचन्द्र बोला....
"मैं इस कार्य में तुम्हारी सहायता करूँगीं,हम साथ साथ ही इस महल से बाहर निकलेगें,तब तक तुम मेरे कक्ष में ही रहो",कालबाह्यी बोली...
इसके पश्चात् दोनों ही अपनी योजना के विषय में बात करते रहे....
इधर अतिथिगृह में विराटज्योति चिन्तित सा अभी भी धरती पर ही बैठा ये सोच रहा था कि ये कैंसा भाग्य पाया है मैंने कि मेरी पत्नी मुझसे कहीं अधिक किसी परपुरुष की चिन्ता करती है,किन्तु इसमें चारुचित्रा का भी क्या दोष,उसने मुझे नहीं मैंने उसे चुना था और जो अभी मेरे पास है वो सब उसके पिता का दिया हुआ ही तो है,मैं साधारण पिता का साधारण पुत्र था ,मुझे तो इस बात की प्रसन्नता होनी चाहिए जो मुझे मेरी योग्यता के अनुसार उससे अधिक मिला है,मेरा चारुचित्रा के प्रति ऐसा व्यवहार अनुचित था,मुझे उस पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था,कुछ भी हो वो तो अभी भी मेरी पत्नी है,वो यशवर्धन से प्रेम नहीं करती किन्तु उसकी चिन्ता करना उसका अधिकार है क्योंकि वो बाल्यकाल से उसकी मित्र थी,इसलिए मुझे अपने ऐसे व्यवहार के लिए चारुचित्रा से क्षमा माँगनी चाहिए.....
और यही सब सोचकर विराटज्योति चारुचित्रा के कक्ष में क्षमा माँगने चल पड़ा,वो कक्ष में पहुँचा तो चारुचित्रा अभी भी बिछौने पर लेटी सिसक रही थी,वो उसके समीप जाकर उससे बोला...
"मुझे क्षमा कर दो चारुचित्रा! मुझे तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था",
"आप मुझसे क्षमा मत माँगिए महाराज!",चारुचित्रा बोली...
"नहीं! चारुचित्रा! मैं कपटी हूँ,मेरे मन में यशवर्धन और तुम्हारे लिए कपट था,तभी ये सब हुआ,यदि मेरे हृदय में पाप ना होता तो बात इतनी बढ़ती ही नहीं",विराटज्योति बोला...
"नहीं !महाराज! मैं आपके विषय में ऐसा नहीं सोचती,किसी भी पति को ये स्वीकार नहीं होगा कि उसकी पत्नी किसी परपुरुष की इतनी चिन्ता करे,आपको इस बात पर क्रोध आना ,ये तो स्वाभाविक सी बात है, मैं क्रोधित नहीं हूँ,मैं तो ये सोचकर विलाप कर रही थी कि हमारे जीवन को इतनी जटिलताएंँ ने घेर रखा है,ना जाने कब ये समस्याएंँ समाप्त होगीं",चारुचित्रा बोली...
"हाँ! सच कहा,तुम चिन्ता मत करो,ये सब शीघ्र ही समाप्त हो जाऐगा", विराटज्योति ने चारुचित्रा को अपने हृदय से लगाते हुए कहा...
"मैं आपसे सदैव ऐसा ही प्रेम करती रहूँगीं महाराज! आप कभी भी ये मत सोचिएगा कि आपका स्थान कोई और ले सकता है",चारुचित्रा बोली...
"मुझे ज्ञात है प्रिऐ!",विराटज्योति बोला...
"हमारे मध्य कोई भी नहीं आ सकता महाराज! चाहे कोई कितना भी प्रयास कर ले",चारुचित्रा बोली...
दोनों ऐसे ही कुछ देर तक वार्तालाप करते रहे,इसके पश्चात् विराटज्योति चारुचित्रा से बोला कि...
"अब मुझे राज्य भ्रमण हेतु जाना होगा,क्योंकि राज्य की सुरक्षा मेरे लिए सर्वोपरि है"
"जी! महाराज! अब आप जाइए",चारुचित्रा बोली...
और इसके पश्चात् विराटज्योति चारुचित्रा के कक्ष से बाहर आया,उसने अपना मुकुट और अस्त्र धारण किए,उसने उस रात्रि कवच धारण नहीं किया था एवं वो अपने सैनिकों के संग राज्य भ्रमण हेतु राजमहल से बाहर निकल गया,उसी समय कालबाह्यी एवं धवलचन्द्र भी वायु में उड़ते हुए अपना रुप बदलकर राजमहल से बाहर निकले,अभी विराटज्योति को राज्य भ्रमण करते कुछ ही समय बीता था कि तभी वहाँ पर ना जाने कहाँ से यशवर्धन वायु वेग से अपने हाथ में खड्ग लेकर आया और उसने विराटज्योति के उदर में अपनी खड्ग घोंप दी और वायु वेग से ही उड़कर कहीं अन्तर्धान हो गया,सभी सैनिकों ने ठीक से देखा था कि वो यशवर्धन ही था,यहाँ तक कि विराटज्योति ने भी उसे पहचान लिया था कि वो यशवर्धन ही है,खड्ग उदर में घुपते ही विराटज्योति अचेत होकर धरती पर गिर पड़ा.....
अब चहुँ ओर हाहाकार मच गया कि महाराज मूर्क्षित हो गए एवं उन्हें शीघ्रतापूर्वक उपचार हेतु लाया गया,शीघ्र ही राजवैद्य ने विराटज्योति का उपचार प्रारम्भ कर दिया,किन्तु अब सबको ये संदेह हो चुका था कि राज्य में हो रही उन सभी हत्याओं का कारण यशवर्धन ही है,क्योंकि आज तो सबके समक्ष प्रमाण था कि महाराज पर आक्रमण उनके पूर्व मित्र यशवर्धन ने ही किया है,किन्तु ये बात चारुचित्रा को स्वीकार ना थी,वो भली प्रकार से जानती थी कि उसका कारण कालबाह्यी है,किन्तु उस समय वो मौन रही क्योंकि उसे अपने पति के प्राणों की चिन्ता थी,इसलिए वो ईश्वर के समक्ष जाकर अपने पति के लिए प्रार्थना करने लगी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....