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  • सर्कस - 17

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सर्कस By Madhavi Marathe

हम लोग हमेशा सर्कस से जुडे हुए लोगों के जीवन के बारे में, जानने के लिए बहुत उत्सुक रहते है। उनका खानाबदोशजीवन, मंच पर अभिनय, साहसिक खेल, जानवरों की दुनिया, रोज की तालियाँ, लेकिन जि...

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Love Contract By Manshi K

घड़ी की सुइयों के साथ भागता ये वक़्त कितना जल्दी - जल्दी ख़तम हो गया , हमें तो पता भी नहीं चला कब छुट्टियां ख़तम हो गई थी

उन बगीचों में फूलों का खुशबू , तितलियों के साथ खेलना वो...

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महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? By Captain Dharnidhar

आपने एक खेल कभी अपने बचपन मे खेला होगा दो दल बच्चो के बनाये जाते है एक दल घोड़ी बन जाता है दूसरे दल वाले उनकी पीठ पर बैठ जाते हैं फिर एक बच्चा पूछता है "धींगा ऊपर कौन चढ़ा ? चढ...

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम.. By रितेश एम. भटनागर... शब्दकार

हर तरफ बस एंबुलेंस के सायरन का शोर सुनायी दे रहा था,लोग बदहवास से होकर इधर उधर अपने अपनों को बचाने के लिये भाग रहे थे, पूरी पूरी रात लाइनों मे लगने के बाद भी बहुत से ऐसे लोग रह जात...

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द्वारावती By Vrajesh Shashikant Dave

उस क्षण जो उद्विग्न मन से भरे थे उस में एक था अरबी समुद्र, दूसरा था पिछली रात्रि का चन्द्र और तीसरा था एक युवक।

समुद्र इतना अशांत था कि वह अपने अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहता...

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तेरा मेरा ये रिश्ता By Saloni Agarwal

यह कहानी है अंश और सौम्या की। एक तरफ है हमारे कहानी के हीरो अंश सिंघानिया जो है सिंघानिया ग्रुप ऑफ कंपनी के सीईओ और साथ में माफिया वर्ल्ड के बादशाह जिन्हे सब डेविल के नाम से जानते...

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फागुन के मौसम By शिखा श्रीवास्तव

राघव और तारा, बचपन के पक्के दोस्त जिनकी दोस्ती का आधार बनी गेम पार्लर में खेली जाने वाली वीडियो गेम्स जिसके वो दोनों ही दीवाने थे। बचपन बीता और खेल की जगह ली कैरियर के प्रति उनकी च...

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हॉंटेल होन्टेड By Prem Rathod

कहानी शुरू करने से पहले मैं बता दू की इस कहानी के Plot का Credit मैं Harshit को देना चाहता हू,उसी plot के साथ मैं अपने point of view के साथ हॉरर,suspence,प्यार और दोस्ती को एक कहान...

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लागा चुनरी में दाग By Saroj Verma

शहर का सबसे बड़ा वृद्धाश्रम जिसका नाम कुटुम्ब है,जहाँ बहुत से वृद्धजन रहते हैं,उनमें महिलाएंँ और पुरुष दोनों ही शामिल हैं,सभी हँसी खुशी उस आश्रम में रहते हैं,किसी वृद्ध महिला को उसक...

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प्रेम गली अति साँकरी By Pranava Bharti

बादलों से टपकता पानी, धूप -छाँव की आँख मिचौली और जीवन की आँख मिचौली कभी-कभी एक सी ही तो लगती है | जब जी चाहा धूप-छाँह और जब मन किया मन के आसमान से बौछारों का सिलसिला कुछ ऐसा ही हो...

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