Kalvachi-Pretni Rahashy - S2 - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(७)

यशवर्धन का कथन सुनकर चारुचित्रा ने उसकी ओर ध्यान देखा,इसके पश्चात उससे बोली....
"हाँ! मैं ही हूँ,किन्तु तुम कहाँ थे इतने समय से"?
"मैं...मेरे विषय में तुम ना ही जानो तो ही अच्छा रहेगा",यशवर्धन बोला....
"ऐसा क्या हो गया यशवर्धन! जो तुम ऐसीं बात़ें कर रहे हो",चारुचित्रा ने यशवर्धन से पूछा....
"ये तो तुम्हें भलीभाँति ज्ञात है चारुचित्रा! कि मैं क्या कहना चाहता हूँ"यशवर्धन बोला...
"तुम अभी तक मुझसे क्रोधित हो उस बात को लेकर",चारुचित्रा ने पूछा...
"मैं भला तुमसे क्यों क्रोधित होने लगा,तुम्हारा जीवन है एवं तुम्हें इस बात की पूर्ण स्वतन्त्रता है कि तुम किसे चुनो, तुम्हारे लिए क्या उचित है और क्या अनुचित इसकी समझ तुम्हें मुझसे अधिक है", यशवर्धन बोला....
"इसका तात्पर्य है कि तुम्हारा क्रोध अब तक गया नहीं",यशवर्धन बोला...
"मेरे क्रोध या मेरी प्रसन्नता से तुम्हें क्या लेना देना चारुचित्रा! वो तुम्हारा जीवन था,वो तुम्हारी इच्छा थी और तुमने वही चुना जिसमें तुम्हारी प्रसन्नता थी,इसलिए यहाँ पर मेरे प्रसन्न या दुखी रहने का प्रश्न ही नहीं उठता", यशवर्धन बोला....
"मुझे क्षमा नहीं करोगे,सदैव यूँ ही अपने मन में कड़वाहट भर कर जीते रहोगे",चारुचित्रा बोली...
"मेरे मन में कोई कड़वाहट नहीं है चारुचित्रा! मैं प्रसन्न हूँ,तुम ऐसी निर्रथक बातें अपने मस्तिष्क से निकाल दो",यशवर्धन बोला...
"यदि तुम्हारे मन में मेरे लिए कोई कड़वाहट नहीं थी, तो तुम अपने कुटुम्ब और हम सभी जनों को छोड़कर कहाँ चले गए थे",चारुचित्रा ने पूछा....
"शान्ति की खोज में गया था चारुचित्रा!",यशवर्धन बोला....
"तो तुम्हें शान्ति मिली?",चारुचित्रा ने पूछा....
"कदाचित नहीं! इसलिए तो वापस लौट आया",यशवर्धन बोला....
"अब तुम लौट आए हो तो तुम अब से यही रहोगे और एक सुन्दर सी कन्या देखकर मैं तुम्हारा विवाह करवा दूँगीं",चारुचित्रा बोली....
"कदाचित ये सम्भव नहीं है",यशवर्धन बोला...
"क्या सम्भव नहीं है? तुम्हारा यहाँ रहना या विवाह करना",चारुचित्रा ने पूछा...
"दोनों ही",यशवर्धन बोला....
"परन्तु क्यों"?,चारुचित्रा बोली....
"क्योंकि? मैं तुम्हें सदैव प्रसन्न देखना चाहता हूँ",यशवर्धन बोला....
इस प्रकार यशवर्धन और चारुचित्रा के मध्य वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी मनोज्ञा वहाँ आकर बोली....
"तो आप सचेत हो गए महाशय?",
"जी! आप कौन हैं देवी? मैंने आपको पहचाना नहीं",यशवर्धन ने मनोज्ञा से पूछा...
"जी! मैं रानी चारुचित्रा की सखी हूँ,अनाथ हूँ इसलिए महाराज विराटज्योति मुझे इस राजमहल में ले आए",मनोज्ञा बोली...
"ओह...ये तो अत्यन्त ही प्रसन्नता वाली बात है कि रानी चारुचित्रा को आप जैसी सखी मिल गईं हैं",यशवर्धन बोला...
"जी! अब तो रानी चारुचित्रा ही जाने कि वो मेरे यहाँ आने से प्रसन्न हैं या नहीं,मैं तो यहाँ इसलिए आई थी कि महाराज की आज्ञा थी कि आपके सचेत होते ही मैं आपको ये औषधियांँ दे दूँ,इसलिए आपको यहाँ देखने चली आई",मनोज्ञा बोली....
"मनोज्ञा! तुम औषधियांँ यहीं रख दो ,मैं इन्हें खिला दूँगीं",चारुचित्रा बोली...
"जी! रानी ! जैसी आपकी इच्छा",
और ऐसा कहकर मनोज्ञा वहाँ से चली गई,तब उसके जाते ही यशवर्धन चारुचित्रा से बोला....
"ये तुम्हारी सखी कम यहाँ की रानी अधिक दिखाई देती है",
"हाँ! ठीक कहा तुमने",चारुचित्रा बोली...
"तुम्हारे कहने का आशय ये है कि विराटज्योति ने इसे राजमहल में विशेष स्थान दे रखा है",यशवर्धन बोला...
तब चारुचित्रा बोली...
"उन्होंने इसे स्थान नहीं दे रखा है,इसने यहाँ पर आकर सबके हृदय को जीत लिया है,इसलिए सभी दासियाँ इसकी ही आज्ञा मानती हैं,ना जाने ऐसी कौन सी मोहिनी डाल दी है इसने उन सभी पर कि सभी अब मनोज्ञा...मनोज्ञा ही पुकारने लगें हैं,राजसी पाकशाला पर भी इसने अधिकार पा लिया है,राजसी रसोइया भी वही पकाता है जो मनोज्ञा कहती है,मैं इसे बहुत दिनों से समझने का प्रयास कर रही हूँ परन्तु इसे समझ नहीं पा रही हूँ,उस पर राज्य पर इतनी बड़ी समस्या आन पड़ी है इसलिए मैं महाराज से भी अपने मन की दुविधा नहीं कह सकती, नहीं तो वे और अधिक चिन्ता में डूब जाऐगें",
तब विराटज्योति बोला...
"हाँ! उसी विषय में सुनकर तो मैं भी इस राज्य में विराटज्योति की सहायता हेतु यहाँ आया था,कल रात्रि मैंने एक अद्भुत प्राणी देखा जो वायु वेग से उड़ रहा था,ना जाने वो क्या था,मैंने उसका पीछा किया किन्तु उस तक नहीं पहुँच पाया,इसके पश्चात मैं थककर एक वृक्ष के तले जा बैठा तो तब मुझ पर किसी ने आक्रमण किया,मैंने स्वयं को बचाने का पूर्ण प्रयास किया,इसके पश्चात मैं अचेत हो गया,जब मैं कुछ सचेत हुआ तो मैंने सोचा मुझे राज्य में जाकर ये सूचना बतानी होगी और इसके पश्चात मैं राज्य के मुख्य द्वार पर आ पहुँचा और इसके पश्चात जो कुछ भी हुआ वो तो सभी को ज्ञात है",
"ये बात तो महाराज को भी ज्ञात होनी चाहिए,उनके यहाँ आने पर तुम उनसे सब कह देना",चारुचित्रा बोली...
"क्या कह देना,तनिक मुझे भी तो बताओ",विराटज्योति ने यशवर्धन के कक्ष में प्रवेश करते हुए कहा...
"आप आ गए महाराज!",यशवर्धन बोला....
"महाराज....महाराज नहीं ,मुझे मित्र कहो यशवर्धन! क्या तुम भूल गए कि हम दोनों कभी सच्चे मित्र हुआ करते थे",विराटज्योति बोला...
"नहीं मित्र! कुछ नहीं भूला,बस किसी को भूलने का प्रयास कर रहा हूँ",यशवर्धन ने चारुचित्रा की ओर दृष्टि डालते हुए कहा....
"हाँ! मैं वही सब तो ज्ञात करने आया हूँ कि ऐसा क्या हुआ था जो तुम हम सभी को छोड़कर चले गए थे,तुम्हारे बिछोह में तुम्हारे माता पिता भी इस संसार को छोड़कर चले गए,परन्तु तुम तब भी नहीं लौटे" विराटज्योति बोला...
"बस मित्र! जीवन में कभी कुछ ऐसा हो जाता है जिससे जीवन व्यर्थ सा लगने लगता है और इसके पश्चात ये मन सभी को त्यागना चाहता है",यशवर्धन बोला....
"इस संसार से तुम्हारी विरक्ति का क्या कारण हो सकता है मित्र!,क्या मैं इस योग्य भी नहीं हूँ कि तुम अपनी समस्या मुझसे साँझा कर सको",विराटज्योति बोला...
"नहीं मित्र! ऐसी कोई बात नहीं एवं यहाँ पर योग्यता की बात कैंसे उठ गई,कुछ बातें ऐसी होतीं हैं जो स्वयं तक सीमित रहें तो ही अच्छा,हो सकता है उन बातों के रहस्य बने रहने में ही सबकी भलाई हो",यशवर्धन बोला...
"यदि तुम्हारी इच्छा नहीं है मुझसे अपनी समस्या कहने की तो मैं तुम पर कोई भी दबाव नहीं डालूँगा,किन्तु इतना अवश्य कहूँगा कि तुम अब अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखो"विराटज्योति बोला...
"मेरे स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए तुम हो ना मित्र! तो मुझे अपने स्वास्थ्य की चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है",यशवर्धन बोला...
"हाँ! तुम्हारे स्वास्थ्य से मुझे ध्यान आया कि तुम्हें कल रात्रि हुआ क्या था"?विराटज्योति ने पूछा...
"मैंने कोई अद्भुत प्राणी देखा था,जो वायु में उड़ रहा था,उसी ने मुझ पर आक्रमण किया था,मैं विस्तार से सारी घटना चारुचित्रा को बता चुका हूँ",यशवर्धन बोला...
"तो ये वही होगा,जिसने समूछे राज्य पर आतंक फैला रखा है,उसी खोज में मैं और मेरे सैनिक रात्रिभर राज्य में भ्रमण कर रहे हैं किन्तु तब भी हम उसे आज तक बंदी नहीं बना सके",विराटज्योति बोला....
"मैं ने ये बात सुनी थी तभी तो मैं तुम्हारी सहायता हेतु यहाँ आया था",यशवर्धन बोला...
"इसका तात्पर्य है कि तुम्हें अब भी हम सभी की चिन्ता है",विराटज्योति बोला...
"ऐसा ही कुछ समझ लो मित्र!"यशवर्धन बोला....
उन सभी के मध्य यूँ ही वार्तालाप चलता रहा,दोनों मित्र वर्षों के पश्चात एक दूसरे से मिलकर अत्यधिक प्रसन्न थे,आज के दिवस विराटज्योति ने राज्य के सभी आवश्यक कार्य सेनापति दिग्विजय सिंह को सौंप दिए,क्योंकि वो अपना समय अपने मित्र यशवर्धन के संग बिताना चाहता था,सम्पूर्ण दिवस वो यशवर्धन के संग ही रहा एवं रात्रि का भोजन वो यशवर्धन के संग करने के पश्चात अपने सैनिकों और सेनापति दिग्विजय सिंह के संग वैतालिक राज्य का भ्रमण करने चल पड़ा.....
अब रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था,समूचा वैतालिक राज्य गहरी निंद्रा में लीन था,मनोज्ञा भी अपने बिछौने पर शान्तिपूर्वक सो रही थी,तभी उसके बिछौने पर एक आकृति प्रकट हुई और उसने मद्धम स्वर में पुकारा....
"कालबाह्यी.....ओ....कालबाह्यी सो गई क्या"?
वो स्वर सुनकर कालबाह्यी शीघ्रता से उठी और उस आकृति को देखकर बोली....
"तुम...तुम यहाँ क्यों आए हो"?

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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