Kalvachi-Pretni Rahashy - S2 - 17 books and stories free download online pdf in Hindi

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२--भाग(१७)

प्रातःकाल होते ही विराटज्योति राजमहल वापस लौट आया और आते ही वो अपने कक्ष की ओर बढ़ चला तो मनोज्ञा बनी कालबाह्यी उसके पास आकर बोली....
"महाराज! कृपया! मेरी भूल क्षमा करें,किन्तु अभी आप अपने कक्ष में ना जाकर यदि किसी और कक्ष में जाकर विश्राम कर लें तो उचित होगा",
"किसी और कक्ष में,वो भला क्यों?",विराटज्योति ने चिन्तित होकर मनोज्ञा से पूछा...
"क्योंकि महारानी चारुचित्रा उस कक्ष में विश्राम कर रहीं है,उनकी निंद्रा में विघ्न पड़ेगा,क्योंकि वो रात्रिभर जागतीं रहीं हैं",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"वो यूँ ही मेरी चिन्ता करके रात्रि रात्रि भर जागतीं रहतीं,रानी चारुचित्रा को मेरी इतनी चिन्ता नहीं करनी चाहिए"विराटज्योति मुस्कुराते हुए मनोज्ञा से बोला...
"उनकी अनिंद्रा का कारण आप नहीं हैं महाराज!",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली...
"तो उनकी अनिंद्रा का कारण क्या हो सकता है मनोज्ञा! क्या तुम्हें वो कारण ज्ञात है", विराटज्योति ने मनोज्ञा से पूछा...
"नहीं महाराज! मुझे उसका कारण तो नहीं ज्ञात किन्तु अर्द्धरात्रि के पश्चात् राजकुमार यशवर्धन रानी चारुचित्रा से भेंट करने आए थे,अतिथिगृह में ना जाने दोनों के मध्य क्या वार्तालाप हुआ,इसके पश्चात् राजकुमार यशवर्धन राजमहल से चले गए और जाते हुए ये बोले कि वो यहाँ आए थे ये बात महाराज को ज्ञात नहीं होनी चाहिए",मनोज्ञा ने झूठ बोलते हुए कहा....
"तुम्हें कैंसे ज्ञात है कि राजकुमार यशवर्धन यहाँ आए थे,",विराटज्योति ने पूछा....
"क्योंकि उस समय जागकर मैं वातायन के समीप खड़ी होकर आपके आने की प्रतीक्षा कर रही थी और तभी मैंने वातायन से राजकुमार यशवर्धन को आते हुए देखा"मनोज्ञा ने झूठ बोलते हुए कहा...
"ओह...तो वो मेरी अनुपस्थिति में रानी चारुचित्रा से मिलने आया था",विराटज्योति बोला...
"हो सकता है उन्हें रानी से कोई आवश्यक कार्य रहा हो",मनोज्ञा बोली...
"हाँ! ये हो सकता है,तो ठीक है! मैं अब अपने कक्ष में विश्राम करने जा रहा हूँ"
और ऐसा कहकर विराटज्योति ने अपने कक्ष में आया,जैसे ही विराटज्योति कक्ष में पहुँचा तो उसी समय चारुचित्रा जाग उठी और उसने विराटज्योति से कहा...
"आप आ गए महाराज!",
"हाँ! आ गया,तुम्हारी नींद पूरी ना हुई तो तुम तनिक देर के लिए और सो सकती हो,क्योंकि तुम्हें किसी की प्रतीक्षा में रात्रि रात्रि भर जागना जो पड़ता है,उसके आने पर तुम उसके संग अतिथिगृह में वार्तालाप करती हो,तो भला तुम्हारी नींद पूरी कैंसे हो सकती है",विराटज्योति क्रोधवश बोला....
"ये आप क्या कह रहे हैं महाराज! मैं आपके कहने का आशय नहीं समझी",चारुचित्रा बोली...
"तुम्हें मेरी बात का आशय समझने की आवश्यकता नहीं रानी चारुचित्रा! तुम्हारे व्यवहार को समझने का प्रयास तो मैं कर रहा हूँ"विराटज्योति बोला...
"मैं कुछ समझी नहीं महाराज!",चारुचित्रा बोली....
"किन्तु मैं सब समझ चुका हूँ,तभी तो कोई परपुरुष अर्द्धरात्रि को तुमसे मिलने आता है",विराटज्योति बोला...
"आप मुझ पर लांछन लगा रहे हैं",चारुचित्रा क्रोधित होकर बोली...
"यही सत्य है",विराटज्योति बोला....
"आपसे ये बात किसने कही",चारुचित्रा ने विराटज्योति से पूछा...
"मनोज्ञा ने मुझे ये बात बताई है"विराटज्योति बोला....
"जो स्वयं ऐसी है,वो मेरे विषय में भला क्या कहेगी",चारुचित्रा बोली...
"ये तुम क्या कह रही हो"?,विराटज्योति ने पूछा....
"हाँ! ये सत्य है कि वो एक प्रेतनी है,उसने ही राजपुरोहित जी की हत्या की थी और तो और राज्य में फैली हुई हत्याओं का कारण भी वो ही है",चारुचित्रा बोली...
"ऐसा नहीं हो सकता,मनोज्ञा प्रेतनी नहीं हो सकती",विराटज्योति बोला...
"यदि मैं आपको ये बात सिद्ध करके दिखा दूँ तो",चारुचित्रा बोली...
"यदि तुम ये सिद्ध करके दिखा दोगी कि मनोज्ञा एक प्रेतनी है तो उसी समय मैं मनोज्ञा को मृत्युदण्ड दे दूँँगा",विराटज्योति बोला....
"तो ठीक है,अभी स्नान करने के पश्चात हम दोंनो मंदिर चलते हैं और हमारे साथ आज मनोज्ञा भी मंदिर चलेगी,यदि उसने हमारे साथ मंदिर के भीतर आने से मना कर दिया तो समझ लीजिएगा कि वो एक प्रेतनी है",चारुचित्रा बोली...
"हाँ! मुझे तुम्हारी ये चुनौती स्वीकार है",विराटज्योति बोला....
"तो ठीक है यही तय रहा",
और ऐसा कहकर चारुचित्रा कक्ष छोड़कर स्नान करने चली गई,कुछ समय पश्चात् दोनों मंदिर जाने के लिए तत्पर थे,तब चारुचित्रा ने विराटज्योति से कहा...
"महाराज! अब आप मनोज्ञा से कहिए कि हम दोनों के साथ मंदिर चले"
"तुम ही क्यों नहीं पुकार लेती उसे",विराटज्योति बोला...
"वो आपकी आज्ञा सुनेगी,मेरी नहीं",चारुचित्रा बोली...
"तो ठीक है! मैं ही बुला लाता हूँ उसे,
और ऐसा कहकर विराटज्योति उस स्थान पर गया,जहाँ सभी दासियाँ कुछ कार्य कर रहीं थीं और उसने मनोज्ञा से कहा...
"मनोज्ञा! आज तुम भी हम दोनों के संग मंदिर चलोगी",
"जी! महाराज! जैसी आपकी आज्ञा"
और ऐसा कहकर वो अपना कार्य छोड़कर विराटज्योति के साथ चल पड़ी,तीनों मंदिर पहुँचे,मनोज्ञा मंदिर के भीतर भी गई,परन्तु उसके क्रियाकलाप देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि सब समान्य है और जब तीनों राजमहल वापस लौटें तो तब विराटज्योति ने चारुचित्रा से कहा...
"चारुचित्रा! तुमने तो संदेह की सारी सीमाएंँ लाँघकर रख दीं हैं,तुम एक तुच्छ सी दासी पर संदेह कर रही हो,उसे प्रेतनी बता रही हो,मुझे ज्ञात है कि तुम ऐसा क्यों कर रही हो, तुम मनोज्ञा को मेरे समक्ष नीचा गिराना चाहती हो,क्योंकि वो तुमसे अधिक सुन्दर है,तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं उस पर मोहित होकर उससे प्रेम करने लगूँगा"
"ऐसा कुछ भी नहीं है महाराज! वो प्रेतनी ही है",चारुचित्रा बोली...
"किन्तु! तुम ये बात सिद्ध करने में सफल नहीं हुई ना!",विराटज्योति बोला...
"हाँ! मैं ये बात सिद्ध करने में सफल ना हो सकी,ये मेरा दुर्भाग्य है,किन्तु मैं ये भविष्य में अवश्य सिद्ध करके रहूँगी कि वो प्रेतनी है", चारुचित्रा बोली...
"तुम अपना पाप छुपाने के लिए मनोज्ञा पर उँगली उठा रही हो",विराटज्योति बोला...
"कैसा पाप",चारुचित्रा ने पूछा....
"यही कि यशवर्धन तुम्हें अब भी पसंद करता है और अब तुम्हारे मन में भी उसके प्रति प्रेम उमड़ आया है", विराटज्योति बोला....
"आप क्या जानते हैं मेरे और यशवर्धन के अतीत के विषय में",चारुचित्रा ने पूछा....
तब विराटज्योति ने उत्तर दिया...
"यही कि वो तुम्हारे प्रेम में असफल होकर सांसारिक जीवन त्यागकर चला गया था,क्योंकि तुमने मुझे चुना था,मुझे ये पहले से ज्ञात था कि वो तुम्हें प्रेम करता है,मुझे उसके कक्ष में वो प्रेमपत्र मिला था,जो उसने तुम्हारे लिए लिखा था, किन्तु यशवर्धन वो प्रेमपत्र तुम्हें कभी दे नहीं पाया,उसके पत्र देने से पहले ही मैंने उसके समक्ष ये बात स्वीकार कर ली थी कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ"
"आपने ऐसा क्यों किया था"?चारुचित्रा ने पूछा....
"क्योंकि मैं साधारण जीवन नहीं जीना चाहता था,मुझे राजा बनना था,मेरे माता पिता साधारण थे जो मुझे राजसी जीवन नहीं दे सकते थे और इसका केवल एक ही मार्ग था कि मैं किसी राजा की इकलौती पुत्री से विवाह करके उस राज्य का राजा बन सकूँ",विराटज्योति बोला....
"ओह...इतना बड़ा छल किया आपने मेरे साथ",चारुचित्रा बोली...
"हाँ! मैं राजा बनने के लिए कुछ भी कर सकता था",विराटज्योति बोला....
"ओह....मुझे अब आपसे घृणा है,चले जाइए मेरे सामने से",चारुचित्रा क्रोधित होकर बोली....
"हाँ...हाँ...मुझसे तो अब तुम्हें घृणा होगी ही,क्योंकि अब तो तुम्हारे हृदय में वो यशवर्धन जो बस चुका है",विराटज्योति बोला...
"मुझे आपसे और अधिक कुछ नहीं कहना,बस अब आप यहाँ से चले जाइए",चारुचित्रा बोली...
और चारुचित्रा की बात सुनकर विराटज्योति वहाँ से चला गया...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...


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