कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१६) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१६)

राजमहल के बाहर प्रतीक्षा करते करते यशवर्धन ने मान्धात्री से कहा....
"अब आप मुझे धवलचन्द्र के विषय में बताए कि उसका मनोज्ञा बनी कालबाह्यी के संग क्या सम्बन्ध है"?
तब मान्धात्री बोली...
"तनिक धैर्य धरे,मैं आपको सब बताती हूँ उसके विषय में",
ऐसा कहकर मान्धात्री ने यशवर्धन को धवलचन्द्र के विषय में बताना प्रारम्भ कर दिया,वो बोली...
"धवलचन्द्र मगधीरा राज्य के राजा विपल्व चन्द्र का पुत्र है,उसकी माता का नाम हिरणमयी था,कालवाची ने ही विपल्व चन्द्र की हत्या की थी,कालवाची विपल्व चन्द्र के रचे हुए षणयन्त्र से सभी को बचाना चाहती थी,वो विपल्व चन्द्र की हत्या तो नहीं करना चाहती थी,किन्तु यदि वो ऐसा ना करती तो विपल्व अचलराज और उसके मित्रों की हत्या करवा देता,विपल्व चन्द्र की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए उसकी पत्नी हिरणमयी ने ही कालवाची की पुत्री को उस कन्दरा से बाहर निकाला था और उसने उसका नाम कालबाह्यी रखा,हिरणमयी ने ही कालबाह्यी का लालन पालन किया और उसने धवलचन्द्र को तंत्रविद्या सीखने हेतु प्रेरित किया,हिरणमयी के कहने पर ही धवलचन्द्र घगअनंग के पास तंत्रविद्या सीखने गया,वैसे तो धवलचन्द्र कालबाह्यी से आयु में बड़ा है,किन्तु उसने अपनी तंत्रविद्या के माध्यम से स्वयं को युवा बना रखा है और हिरणमयी वृद्ध होकर अब मृत्यु को प्राप्त हो चुकी है"
"तो ये है धवलचन्द्र की कहानी"यशवर्धन बोला...
"हाँ! यही है धवलचन्द्र की कहानी और उसने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने हेतु कालबाह्यी को उसका माध्यम बना रखा है,क्योंकि कालबाह्यी को ज्ञात ही नहीं है कि वो कौन है और उसके माता पिता कौन हैं",मान्धात्री बोली....
"तो ये बात मैं कालबाह्यी को बताऊँगा कि वो किसकी पुत्री है",यशवर्धन बोला....
"नहीं! अभी नहीं! क्योंकि वो तुम पर विश्वास नहीं करेगी",मान्धात्री बोली...
"क्यों विश्वास नहीं करेगी मुझ पर,उसे मुझ पर विश्वास करना ही होगा",यशवर्धन बोला...
"ये सम्भव नहीं है राजकुमार यशवर्धन",मान्धात्री बोली....
"क्यों सम्भव नहीं है"?,यशवर्धन ने पूछा...
"क्योंकि? वो धवलचन्द्र को ही अपना सबसे बड़ा हितैषी मानती है,क्योंकि उसकी माँ ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया है,इसलिए वो उन दोनों का उपकार मानती है और कभी भी वो धवलचन्द्र से विश्वासघात नहीं करना चाहेगी",मान्धात्री बोली...
"वो इसलिए कि उसे ज्ञात नहीं है कि उसके माता पिता जीवित हैं,जिस दिन उसे ज्ञात हो जाएगा कि उसके माता पिता जीवित हैं तो इसके पश्चात् वो कभी भी धवलचन्द्र का साथ नहीं देगी",यशवर्धन बोला....
"और जब उसे ये ज्ञात होगा कि उसके माता पिता ने उसका त्याग करके उसे किसी अँधेरी कन्दरा में मृत्यु के मुँख में धकेल दिया था तो तब उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी,ये सोचा है कभी आपने",मान्धात्री ने यशवर्धन से पूछा...
"हाँ! ये तो मैंने सोचा ही नहीं,"यशवर्धन बोला...
"तब वो अपने माता पिता से घृणा करने लगेगी"मान्धात्री बोली...
"आपका कथन सत्य है",यशवर्धन बोला...
"और उस घृणा के चलते वो निर्दयी होकर लोगों का सर्वनाश करने लगेगी",मान्धात्री बोली...
"तो अब इसका क्या उपाय है"?,यशवर्धन ने पूछा...
"वही तो मैं भी समझ नहीं पा रही हूँ कि मैं कैंसे कालबाह्यी को ऐसा अनर्थ करने से रोक सकती हूँ",मान्धात्री बोली...
"तो क्या मैं ये सच्चाई महाराज विराटज्योति को बता दूँ?"यशवर्धन ने पूछा....
"अभी नहीं,जब तक हमारे पास कोई ठोस परिमाण नहीं आ जाता तब हम उन्हें कुछ नहीं बता सकते,बिना परिमाण के वो आप पर विश्वास नहीं करेगें",मान्धात्री बोली....
दोनों के मध्य अभी वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी उन दोनों ने राजमहल के किसी कक्ष के वातायन से उस आकृति को बाहर आते हुए देखा, वो आकृति वातायन से बाहर निकली और वायु के वेग से गगन की ओर चली गई और दोनों उस आकृति को जाते हुए देखते रहे....
तब यशवर्धन मान्धात्री से बोला....
"मुझे ये सभी बातें चारुचित्रा को तो बतानी ही होगीं,क्योंकि इस समय वो बड़ी चिन्तित है और मैं उसे कदापि चिन्तित नहीं देख सकता",
"ऐसा प्रतीत होता है कि महाराज विराटज्योति से कहीं अधिक आपकी मित्रता रानी चारुचित्रा से है" मान्धात्री बोली...
"ऐसा ही कुछ समझ लीजिए",यशवर्धन बोला...
"किन्तु! मुझे तो आपकी आँखों में कुछ और ही दिखाई देता है",मान्धात्री बोली...
"हाँ! मैं चारुचित्रा से कभी प्रेम किया करता था",यशवर्धन बोला...
"और अब?",मान्धात्री ने पूछा...
"अब उसका विवाह हो चुका है",यशवर्धन बोला...
इसके पश्चात् मान्धात्री ने यशवर्धन से कुछ नहीं पूछा और वो उससे बोली....
"अब हमें यहाँ से चलना चाहिए,यदि मनोज्ञा ने हमें यहाँ देख लिया तो हम पर संकट आ सकता है"
"हाँ! कदाचित यही उचित होगा",यशवर्धन बोला....
और दोनों राजमहल से वापस आ गए,इसके पश्चात् यशवर्धन मान्धात्री को अपने निवासस्थान ले गया,मान्धात्री उसके संग जाना तो नहीं चाहती थी,परन्तु वो उसके साथ जाने के लिए तत्पर हो गई,घर पहुँचकर यशवर्धन ने मान्धात्री से कहा....
"अब आप विश्राम कर लीजिए"
"और आप?",मान्धात्री ने पूछा...
"मैं राज्य भ्रमण हेतु जा रहा हूँ",यशवर्धन ने उत्तर दिया...
यशवर्धन मान्धात्री को अपने घर छोड़कर पुनः बाहर चला गया और अब उसने ये सोच लिया था कि वो मान्धात्री की बताईं हुईं सारी बातें चारुचित्रा को बता देगा और यही सोचकर वो पुनः राजमहल की ओर चल पड़ा,राजमहल पहुँचकर उसने द्वारपालों से कहा कि वो रानी चारुचित्रा से भेंट करना चाहता है,वो उन्हें कोई आवश्यक बात बताना चाहता है,इसके पश्चात् उनमें से एक द्वारपाल राजमहल के भीतर गया और उसने किसी दासी से ये बात रानी चारुचित्रा तक पहुँचाने के लिए कहा,दासी चारुचित्रा के कक्ष के द्वार पर पहुँची और उसने ये सूचना रानी चारुचित्रा को दी कि राजकुमार यशवर्धन आपसे मिलने आए हैं,दासी की बात सुनकर चारुचित्रा ने अपनी ओढ़नी डाली और दासी से बोली....
"उन्हें अतिथिकक्ष में बैठाओ और उनसे कहो कि मैं अभी आती हूँ"
चारुचित्रा का संदेश लेकर दासी द्वारपाल के पास पहुँची और चारुचित्रा के आदेशानुसार यशवर्धन को अतिथिगृह में बैठने को कहा गया,यशवर्धन अतिथिगृह में जाकर बैठ गया और चारुचित्रा की प्रतीक्षा करने लगा,कुछ समय पश्चात् चारुचित्रा वहाँ पहुँची और यशवर्धन से बोली....
"तुम यहाँ इतनी रात्रि को क्यों आए हो"?
"आवश्यक बात बतानी थी",यशवर्धन बोला...
"ऐसी भी क्या आवश्यक बात थी जो तुम प्रातःकाल तक प्रतीक्षा नहीं कर सकते थे",चारुचित्रा बोली...
"मेरे पास समय नहीं है,बस तुम मेरी बात सुन लो",यशवर्धन बोला...
"हाँ! कहो कि क्या कहना चाहते हो",चारुचित्रा बोली....
तब यशवर्धन ने तनिक ही समय में चारुचित्रा को सारी बात बता दी,यशवर्धन की बात सुनकर चारुचित्रा बोली...
"तो इसका तात्पर्य है कि माता और पिताश्री चामुण्डा पर्वत पर गए हैं",
"हाँ! मैं तुम्हें सावधान करने आया हूँ,तुम मनोज्ञा से सावधान रहना,वो किसी भी सीमा तक जा सकती है",यशवर्धन बोला...
"ठीक है !अब तुम यहाँ से जाओ,कहीं मनोज्ञा को राजमहल में तुम्हारी उपस्थित ज्ञात ना हो जाए",चारुचित्रा बोली...
"ठीक है! तो मैं अब चलता हूँ,अपना और विराटज्योति का ध्यान रखना",यशवर्धन बोला...
"हाँ! और तुम भी अपना ध्यान रखना"चारुचित्रा बोली....
इसके पश्चात् यशवर्धन राजमहल से वापस आ गया....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...