Kalvachi-Pretni Rahashy - S2 - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२-भाग(१२)

यशवर्धन के राजमहल से चले जाने के पश्चात् चारुचित्रा और विराटज्योति अपने कक्ष में वापस आए और विराटज्योति चारुचित्रा से बोला....
"प्रिऐ! यशवर्धन चला क्यूँ गया,तुम्हें कुछ अनुमान है कि क्या कारण हो सकता है उसके यहाँ से जाने का"
"मुझे इस विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है स्वामी!",चारुचित्रा ने झूठ बोलते हुए कहा....
"हाँ! तुम्हें भी इस विषय में कैंसे ज्ञात हो सकता है,इतने वर्षों के पश्चात् यशवर्धन लौटकर आया है,किसी को इसका कारण ज्ञात नहीं कि वो हम सभी को छोड़कर क्यों चला गया था",विराटज्योति बोला...
"जी! और आज वो पुनः यहाँ से चला गया",चारुचित्रा बोली...
"हाँ! वही तो सोच रहा हूँ मैं कि ऐसा कौन सा आवश्यक कार्य आन पड़ा उसे",विराटज्योति बोला...
"कदाचित!वो अपनी निजी बातें हम दोनों से साँझा ना करना चाहता हो",चारुचित्रा बोली...
"हाँ! ऐसा भी हो सकता है,किन्तु वो पहले ऐसा नहीं था",विराटज्योति बोला...
"समय के साथ साथ हर व्यक्ति बदल जाता है महाराज! आप को इस विषय में और अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं है",चारुचित्रा बोली...
"कैंसे ना सोचूँ प्रिऐ! वो मेरा परम मित्र था और अब भी है, मित्र होने के नाते उसकी चिन्ता करना मेरा कर्तव्य है",विराटज्योति बोला....
"जब वो अपनी समस्या आपसे कहना ही नहीं चाहता तो आप क्यों उसकी समस्या का समाधान खोजना चाहते हैं,जब आपको समस्या ही नहीं ज्ञात तो आप उसका समाधान कैंसे खोजेगे भला!",चारुचित्रा बोला...
"कदाचित! तुम ठीक कहती हो",विराटज्योति बोला...
"अब ये सब निर्रथक बातें आप अपने मस्तिष्क से निकाल दीजिए, मैं स्नान हेतु जा रही हूँ,पूजा अर्चना के पश्चात् आपसे वार्तालाप करूँगीं",
ऐसा कहकर चारुचित्रा कक्ष से बाहर चली गई और विराटज्योति पुनः अपने बिछौने पर आकर लेट गया...
उधर यशवर्धन समूचे राज्य का भ्रमण करने लगा,किन्तु उसने ये किसी से भी नहीं कहा कि वो यहाँ के राजा विराटज्योति का मित्र है,उसने राज्य के निवासियों से उन सभी समस्याओं को ज्ञात करने का प्रयास किया जिससे वे सभी पीड़ित थे और सभी ने एक ही उत्तर दिया और वो ये था कि राज्य में जो निर्मम हत्याएँ हो रहीं हैं,वे उन सभी से भयभीत हैं,जिस भी प्राणी की हत्या होती है तो उसके शव की दशा इतनी विदीर्ण होती है कि उसे देखकर हम सभी भयभीत हो जाते हैं और सबसे बड़े आश्चर्य की बात है कि उन सभी मृत प्राणियों के हृदय को निकाल लिया जाता है,ना जाने ऐसे कौन से प्रेत,प्रेतनी या मायावी शक्ति ने इस राज्य में प्रवेश पा लिया है कि प्रायः इस प्रकार प्राणियों की हत्याएंँ हो रहीं हैं,महाराज भी रात्रि के समय राज्य का भ्रमण करते हैं किन्तु तब भी कोई लाभ नहीं हो रहा है,हत्याएंँ तो उसी प्रकार से अब भी निरन्तर हो रहीं हैं....
नगरवासियों की बात सुनकर यशवर्धन चिन्तित सा हो उठा और उसने अपने मित्र की सहायता करने का निर्णय लिया ,इसलिए वो वैतालिक राज्य के एक व्यापारी के यहाँ दास बन गया,वो व्यापारी वस्त्रों का व्यापार करता था,वो दूर दूर के राज्यों से सुन्दर सुन्दर वस्त्र लाकर वैतालिक राज्य में बेंचा करता था,तब यशवर्धन ने सोचा कि यदि वो इस वस्त्रों के व्यापारी के यहाँ रह कर कार्य करेगा तो उस पर किसी को भी संदेह नहीं होगा और यही सब सोचकर वो वहाँ कार्य करने लगा....
एक दिवस जब रानी चारुचित्रा उस व्यापारी के यहाँ वस्त्र खरीदने आई तो उसने वहाँ पर यशवर्धन को उस व्यापारी का दास बने हुए देखा,यशवर्धन को वहाँ देखकर चारुचित्रा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी,उसने सोचा यदि उसने इस समय यशवर्धन को पहचान लिया तो कुछ अनहित ना हो जाए,ना जाने किस कारण यशवर्धन ने यहाँ पर रहने का निर्णय लिया है,इसलिए उसने चुपचाप वस्त्र खरीदे और वस्त्रों के व्यापारी से यशवर्धन की ओर संकेत करते हुए बोली...
"यदि आपको कोई आपत्ति ना हो आप अपने इस दास को वस्त्र लेकर राजमहल में भिजवा दीजिए"
"जैसी आपकी इच्छा महारानी जी!",व्यापारी बोला....
इसके पश्चात् व्यापारी ने यशवर्धन को आदेश दिया कि वो उन वस्त्रों को राजमहल ले जाए,कुछ समय पश्चात् वेष बदलकर यशवर्धन वस्त्रों को लेकर राजमहल पहुँचा,ये सूचना रानी चारुचित्रा तक पहुँची तो उसने यशवर्धन को अपने कक्ष में बुलवाकर उन वस्त्रों का मूल्य चुकाया और उसके हाथों में चुपके से एक पत्र पकड़ा दिया और सांकेतिक भाषा में उससे कहा कि अब तुम जाओ.....
वस्त्रों का मूल्य और वो पत्र लेकर यशवर्धन राजमहल के बाहर आया,पहले तो वो व्यापारी के यहाँ पहुँचा,उसने वस्त्रों का मूल्य व्यापारी को दिया और व्यापारी से बोला....
"स्वामी! यदि आपको कोई आपत्ति ना हो तो मैं अपने निवासस्थान जा सकता हूँ,क्योंकि आज मुझे अपना स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं लग रहा"
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,तुम यहाँ इतने परिश्रम के साथ कार्य करते हो,आज तक तुमने यहाँ रहकर कोई भूल नहीं की और यदि आज तुम्हें अवकाश की आवश्यकता है तो तुम विश्राम हेतु अपने निवासस्थान जा सकते हो,अपना ध्यान रखना और मार्ग में ही वैद्य जी की औषधिशाला पड़ती है वहाँ से औषधि लेते जाना",व्यापारी बोला...
"जी! स्वामी जैसी आपकी आज्ञा"
और ऐसा कहकर यशवर्धन वहाँ से चला आया,अपने निवासस्थान आकर उसने वो पत्र पढ़ा,जिसमें लिखा था....
"यशवर्धन! मुझे तुम्हारा सहायता की अत्यधिक आवश्यकता है,मैं अत्यधिक चिन्ता में हूँ,ना जाने राजमहल और राज्य पर कैसी विपदा आन पड़ी है,महाराज का व्यवहार मेरे प्रति बदलता जा रहा है,राजमहल के दास दासियाँ भी मेरी आज्ञा नहीं मानते,जब से महाराज उस मनोज्ञा को राजमहल में लेकर आए हैं,तब से राजमहल का वातावरण ही बदल गया है,मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मनोज्ञा कोई मायाविनी है,उसके पास कोई तो ऐसी शक्ति है जिससे वो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है,राजमहल के सभी दास दासियाँ उसके मोह में आकर उसकी ही आज्ञा का पालन करते हैं,शनैः शनैः वो मेरा स्थान लेती जा रही है,मुझे भय है कि कहीं वो महाराज को भी मुझसे दूर ना कर दे,क्योंकि मैंने देखा है कि वो महाराज को आकर्षित करने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ती,यदि ऐसा कुछ हुआ तो मेरा गृहस्थ जीवन उजड़ जाएगा,हो सके तो इस समस्या का शीघ्र से शीघ्र कोई समाधान निकालो,तुमसे मैं सहायता इसलिए माँग रही हूँ कि मुझे तुम पर पूर्ण विश्वास है और तुम राजमहल के बाहर रहते हो इसलिए मनोज्ञा की मायावी शक्तियों का तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा,मैं कल सायंकाल राज्य के बाहर जो मंदिर है वहाँ आऊँगी,तुम भी मुझसे वहीं आकर मिलो,मुझे तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है"
तुम्हारी मित्र चारुचित्रा...

जब यशवर्धन ने चारुचित्रा का पत्र पढ़ा तो वो चिन्ता में डूब गया और उसने सोचा उसे मनोज्ञा को देखकर ऐसा ही कुछ लगा था,इसलिए तो वो राजमहल में रहना नहीं चाहता था,वो राजमहल से बाहर इसलिए तो आया है कि वो उन मायावी लोगों के विषय में जानकारी प्राप्त कर सके,जो इस राज्य और राजमहल हेतु घातक हैं,मुझे चारुचित्रा की सहायता करनी ही होगी और यही सब सोचकर उसने चारुचित्रा से मिलने का निर्णय लिया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...



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