Bhuli Bisri Khatti Mithi Yaadey book and story is written by Kishanlal Sharma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Bhuli Bisri Khatti Mithi Yaadey is also popular in जीवनी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - उपन्यास
Kishanlal Sharma
द्वारा
हिंदी जीवनी
"क्या देख रही हो?"
उन दिनों मैं साल 1966 की बात कर रहा हूँ।तब कालेज आज की तरह जगह जगह नही हुआ करते थे।मेरे पिता रेलवे में थे और उनके ट्रांसफर होते रहते थे।इसलिए मेरी शिक्षा टुकड़ो में हुई। जामनगर, राजकोट,बांदीकुई, अछनेरा और ब्यावर के बाद मैने हायर सेकंडरी की परीक्षा आबूरोड से पास की थी। तब मेरे पिता आबूरोड में इनेपेक्टर थे। आबूरोड के पास फालना और सिरोही में कालेज थे और फिर जोधपुर में।आगे की पढ़ाई के लिए मैने सन 1966 में जोधपुर यूनिवर्सिटी में एड्मिसन ले लिया।पहली बार घर से निकलना था। पिताजी ने एक सिपाही श्याम सिंह को मेरे साथ भेजा था।-उसने मुझे एड्मिसन दिलाया और हाई कोर्ट रोड़ पर मुरलीधर जोशी भवन में किराए पर कमरा दिलाया था।वही नीचे फ़ोटो ग्राफर का स्टूडियो था और दूसरी मंजिल से कोई पत्रिका निकलती थी।नाम अब ध्यान नही है।तीसरी मंजिल पर कई कमरे थे।जिनमें स्टूडेंट रहते थे।कुछ नाम याद है।मकराना का असलम और नागौर के शिव चंद जोशी और रामप्रकाश थे।बाकी नाम याद नही।
"क्या देख रही हो?"उन दिनों मैं साल 1966 की बात कर रहा हूँ।तब कालेज आज की तरह जगह जगह नही हुआ करते थे।मेरे पिता रेलवे में थे और उनके ट्रांसफर होते रहते थे।इसलिए मेरी शिक्षा टुकड़ो में हुई।जामनगर, राजकोट,बांदीकुई, ...और पढ़ेऔर ब्यावर के बाद मैने हायर सेकंडरी की परीक्षा आबूरोड से पास की थी।तब मेरे पिता आबूरोड में इनेपेक्टर थे।आबूरोड के पास फालना और सिरोही में कालेज थे और फिर जोधपुर में।आगे की पढ़ाई के लिए मैने सन 1966 में जोधपुर यूनिवर्सिटी में एड्मिसन ले लिया।पहली बार घर से निकलना था।पिताजी ने एक सिपाही श्याम सिंह को मेरे साथ भेजा
जोधपुर का जिक्र हो और कचोड़ी की बात न हो।वहाँ की मावे की और प्याज की कचोड़ी मशहूर थी।आजकल तो कई जगह मिल जाएगी लेकिन वहां का जवाब नही था।उन दिनों 40 पैसे की कही पर 30 पैसे की ...और पढ़ेथी।ज्यादा से ज्यादा 2 मावे की कचोड़ी में आदमी का पेट भर जाता था।प्याज की कचोड़ी शनिवार को ही बनती थी।कालेज की छुट्टी होने पर मैं जोधपुर से आबूरोड जाता था।उसके लिए मारवाड़ आना पड़ता और मारवाड़ से दूसरी ट्रेन बदलनी पड़ती।तब छोटी लाइन थी।रास्ते मे लूनी जंक्सन पड़ता।यहाँ के सफेद रसगुल्ले मसहूर थे।उन दिनों दो रु किलो मिलते थे।उस
मुझे जो गुरु पढ़ाते उनका नाम था दीक्षित। पांचवी पास करने के बाद पिताजी का ट्रांसफर बांदीकुई हो गया था।यहां पर मेरी छठी और सातवी की पढ़ाई हुईं थी।पिताजी को गार्ड लाइन में क्वाटर मिला था।मेरे ताऊजी रेलव में ...और पढ़ेथे।उन्हें बंगला मिला हुआ था।पास वाले बंगले में लोको फोरमैन रहते थे जो मुसलमान थे।सामने और बगल के बंगलो में अंग्रेज ड्राइवर भी रहते थे।उनमें से दो रिटायर होने के बाद इंगलेंड चले गए थे।उसी समय 1962 का युद्ध हुआ था।जब चीन ने भारत पर हमला कर दिया था।अभी तक याद है ब्लेक आउट और लोगो का चन्दा इकट्ठा करना।उस
और यहाँ पर एक शादी का जिक्र जरूरी है।जैसा मैं पहले कह चुका हूँ। मेरे तीन ताऊजी थे।कन्हैया लाल सबसे बड़े।यह रेलवे में ड्राइवर थे।दूसरे देवी सहाय जो खेती करते और अविवाहित थे।तीसरे गणेश प्रशाद और यह मास्टर थे।मेरे ...और पढ़ेरेलवे में आर पी एफ में इंस्पेटर थे।गणेश प्रशाद के बड़े बेटे और मेरे चचेरे जगदीश भाई की शादी थी।उन दिनों पांच या छः दिन की शादी होती थी।इनकी शादी मेहसरा गांव से हुई थी।जैसा मैं पहले बता चुका हूँ।उन दिनों न इतनी ट्रेन थी और न ही हर जगह बस जाती थी।बारात भी सौ से ऊपर हो जाती क्योकि
ताऊजी और मामा बेटिकट।ताऊजी उन दोनों को लेकर झांसी पहुंच गए थे।रास्ते मे ताऊजी ने टी टी ई से बात की थी।वह बोला बाकी स्टाफ तो सही है लेकिन हमारे यहां राम सिंह टी टी ई है।वह स्टाफ को ...और पढ़ेनही छोड़ता है।"ताऊजी को कलकत्ता जाना था।झांसी आने पर वह गेट पर खड़े टी सी के पास गये।टी सी किसी से बात कर रहा था।उन्होंने जाकर टी सी से बात की और बोले,"मुझे बताया है कि बाकी स्टाफ तो सही है लेकिन राम सिंह किसी को नही छोड़ता।"ताऊजी की बात सुनकर टी सी से बात कर रहा आदमी बोला,"मैं ही