तेहरवीं तक रिश्तेदार रुके और फिर चले गए।दोनो ताऊजी अपने बेटों इन्द्र और रमेश को साथ ले गए।दोनो नौकरी कर रहे थे।पर उन्होंने सोचा होगा अब इनकी तनखाह यहां खर्च होगी।तरहवी के बाद हम बाजार गए तब मेरे साथ राम अवतार जीजाजी साथ थे।वह बोले कमजोर हो गया है।वजन तौल ले।वजन के साथ जो टिकट आया उस पर लिखा था--आपका जीवन साथी सुंदर होगा लेकिन उसके साथ जीवन काटना आसान नही होगा।
हमारी कॉलोनी में अग्रवालजी रहते थे।वह रेलवे में पी डब्लू आई थे।उन्हें जब पता चला में नौकरी करना चाहता हूं तो उन्होंने मुझे बुलाकर अपने आफिस में केजुल लेबर में लगा लिया।मैं शिक्षित था इसलिए उन्होंने मुझे आफिस में रख लिया।सुबह 8 बजे घर से जाता दोपहर में लंच को आता।फिर शाम को पांच बजे आता।मैने तो पढ़ाई छोड़ दी थी।लेकिन भाई बहन पढ़ रहे थे और अभी कम से कम छः महीने तक हमे आबूरोड में ही रहना था।जब तक परीक्षाएं न हो जाती।क्वाटर खाली न करना पड़े इसलिए पिताजी के अधिकारियों ने पिताजी की जगह आर एन शर्मा की पोस्टिंग आबूरोड में पिताजी की जगह कर दी थी।उनका परिवार इंदौर में रहता था।वह अकेले रहते थे।उनकी पोस्टिंग होने पर क्वाटर उनके नाम हो गया लेकिन हम ही रहे।वह किसी सिपाही के क्वाटर में रहने लगे।मेरा नियम था।मैं शाम को आर पी एफ आफिस जाता था।यह सिलसिला पिताजी की मौत के बाद भी नही टूटा।जैसा सम्मान मुझे पिताजी के समय वहा मिलता था वैसा ही मुझे पिताजी की जगह आये इंस्पेक्टर के समय भी मिला।अब भी याद है रूप राम यादव जो पिताजी के समय राजकोट में हवलदार थे और यहां सूबेदार होकर आए थे।उनसे मेरी अच्छी पटती थी।
पिताजी के देहांत के बाद में जोधपुर नही गया।एक सिपाही श्याम सिंह को जो सोजत रोड जा रहने वाला था।उसे भेजा गया।वो ही कमरा क खाली करके मेरा सामान लाया था।
उस समय डीजल शेड में यू वी एस पंवार डी एम ई के पद पर कार्य कर रहे थे।बाद में वह कोटा के डी। आर एम होकर भी गए थे।उनके पिताजी से अच्छे सम्बन्ध ही नही थे।एक मामले में उन्हें पिताजी ने बचाया भी था।उनके पास स्कूटर था।उनके स्कूटर पर डीजल वर्क शॉप में रंग रोगन हो रहा था।उस समय आर पी एफ की इंटेलिजेंस का इंसपकेटर अजमेर में होता था।लेकिन एक हेड कांस्टेबल की पोस्टिंग आबूरोड में भी थी।इस पद पर बिशन सिंह की पोस्टिंग थी।उसने इस केस को पकड़ा था।रिपोर्ट तभी आगे बढ़ सकती थी।जब पिताजी उस पर दस्खत कर दे।पंवार साहिब ने पिताजी से माफी मांगी और विनती की।पिताजी ने स्कूटर वहां से निकलवा दिया।इस बात की रिपोर्ट बिशन सिंह ने अपने इंस्पेक्टर को कर दी।पिताजी को चार्ज शीट मिली जिसे मैंने भी काफी समय सम्भाल कर रखा।पंवार साहब को रंगे हाथ पकड़ने से पिताजी ने बचा किया था।पर रेल प्रशासन ने पंवार साहब के हाथ से केजुल लेबर की भर्ती का अधिकार छीन लिया था।
जब पंवार साहब को मेरे बारे में पता चला तो उन्होंने पिताजी की जगह आये शर्माजी को खबर करी और शर्माजी ने एक सिपाही के साथ मुझे भेजा।मुझ से एक अर्जी लिखाई गयी।