भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 8 Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 8

माया के दीवानों की कमी नही थी।माया मोडर्न और फ्रेंक थी।वह लड़को से बात करने में न शर्माती न झिझकती थी।उसे तंग करने में भी लोगो को मजा आता था।लड़के वैसे भी शैतान होते है।एक घटना का जिक्र
हिंदी हमे शास्त्रीजी पढ़ाते थे।किसी लड़के ने एक दिन शरारत की।पंखे की पंखड़ी पर सूंघने वाली तमाकू न जाने कब रख दी।पहला पीरियड हिंदी का होता था।प्रार्थना के बाद लड़के क्लास में आकर बैठ गए।उसके बाद शास्त्रीजी आये।वह जैसे ही हाजरी लेने लगे।किसी लड़के ने पंखा चला दिया।पंखा चलते ही तम्बाकू ज्यो ही उड़ी लड़को का छींकते छींकते बुरा हॉल हो गया।
माया कई लड़को को घास नही डालती थी।और उनमें से किसी लड़के ने माया को बदनाम करने के लिए स्कूल में उसके किसी लड़के के साथ सम्बन्ध को लेकर पोस्टर चिपका दिए।माया की बदनामी हुई।घर पर उसके भाई भाभी ने उससे क्या कहा यह तो पता नही।और इस तरह खट्टे मीठे अनुभव के साथ 11वी की परीक्षा राजस्थान बोर्ड से मैने पास कर ली।
पहले भी बता चुका हूँ।11वी के बाद मैने जोधपुर में एड्मिसन ले लिया था।
अब फिर से मैं दूसरे भाग में बताई बात पर आता हूँ।जैसा मैं पहले बता चुका हूँ।मैं माउंट आबू में एन सी सी के केम्प को करके आबूरोड आ गया था।पिताजी दिखने में सामान्य थे।लगता नही था बीमार है।
आबूरोड में मेरे दो कजिन रमेश जो छोटे ताऊजी गणेश प्रशाद के तीसरे नम्बर के बेटे थे और इन्द्र जो बड़े ताऊजी कन्हैया लाल के सबसे बड़े बेटे थे।हमारे साथ रहते थे।पिताजी ने रमेश की डीज़ल शेड में और इन्द्र की लोको में केजुअल में नौकरी लगवा दी थी।
जैसा मैं पहले भी कह चुका हूँ।सपने ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा था।जागते और सोते में मुझे पिताजी की लाश साफ दिखाई देती और मैं पसीने पसीने हो जाता।
और दिवाली का दिन।सन 1969।उस साल दिवाली 10 नवम्बर की थी।दिवाली को मेरा मन बहुत व्यथित था।सपना मेरा पीछा ही नही छोड़ रहा था।पिताजी रोज की तरह 8 बजे ऑफिस चले गए थे।11 बजे के करीब मैं तैयार होकर घर से निकला।प्लेटफॉर्म से होकर बाजार जाना पड़ता था।पिताजी का चेम्बर प्लेट फॉर्म से दिखता था।मैं देखता हुआ गया कि पिताजी अपनी कुर्सी पर बैठे थे।करीब एक घण्टे बाद मैं वापस लौटा तब पिताजी ऑफिस के बाहर खड़े थे।मैं उन्हें देखता हुआ चला आया।
घर पर माँ खाने की तैयारी कर रही थी।कुछ देर बाद ही पिताजी चले आये।आते ही बोले,"मेरे पेट मे दर्द हो रहा है।"
मा बोली,"दवा क्यो नही लाये?"
"बिशन सिंह को अस्पताल भेजा है।लेकर आता होगा।"उन दिनों आज की तरह मेडिकल सुविधा उपलब्ध नही थी।बिशन सिंह पिताजी के पास हेड कांस्टेबल था।वह फिरोजाबाद के पास का रहने वाला था।आबूरोड में रेलवे अस्पताल था।कोई सीनियर डॉक्टर उस दिन नही मिला।बिशन सिंह जूनियर नए आये डॉक्टर को साथ ले आया।डॉक्टर ने चेक करने के बाद इंजेक्शन लगाया और दवाई देकर चला गया।
करीब घण्टे भर बाद पिताजी को आराम पड़ा तब खाना बना और हम सबने खाया।शाम को सात बजे के आस पास फिर दर्द उठा।मैं बिशन सिंह के पास गया और फिर वो ही डॉक्टर ने आकर पिताजी को इंजेक्शन लगाया और चला गया।