भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 18 Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 18

मेहताजी एक्स सर्विस मेन थे।सेकंड वर्ल्ड वॉर में वह मिश्र में लड़ाई में भाग ले आये थे। वह अनुशासन प्रिय और सख्त स्वभाब के थे।उनके पास जाने से सभी घबराते थे।और मैं सबसे जूनियर था।छोटी लाइन बुकिंग में कोई एल आर नही था।इसलिए मुझे भेज दिया गया।यहां से ही मुझे जमुना ब्रिज भेजा गया था।
यह सन 1971 की बात है।उन दिनों में 15 सी एल और 39 पी एल लिव मिलती थी।उन दिनों पी एल जुड़ती नही थी ।अब तो 10 महीने तक की पी एल जुड़ती है और रिटायरमेंट के समय इसका पैसा मिलता है।पहले पी एल छुट्टी को उसी साल में लेकर खत्म करनी पड़ती थी।
मेरी नौकरी लगते ही मेरी शादी के लिए रिश्ते आने लगे थे।करता धर्ता मेरे तीसरे नम्बर के ताऊजी गणेश प्रशाद थे।हमारे परिवार के रिश्ते,शादी ब्याह के काम वो ही करते थे। मेरा परिवार जैसा मैंने बताया पहले आबूरोड से बांदीकुई आया था।मेरी माँ ही चाहती थी बांदीकुई रहना।पर एक साल बाद ही मन भर गया और बसवा आ गयी।यहाँ पैतृक मकान था।बड़े ताऊजी सपरिवार बांदीकुई मे ही रहते थे।दूसरे नम्बर के ताऊजी देवी सहाय अविवाहित थे और उन्होंने खेत पर ही कमरा बनवा रखा था।वे वही रहते थे।खेती अपने हाथों से करते थे।इसलिए बैल भी पाल रखे थे।
मैं जब भी रेस्ट में या छुट्टी मे मैं गांव जाता तो ताऊजी किसी ने किसी लड़की का जिक्र कर देते या मेरे सामने कोई लड़की की फ़ोटो रख देते।मैं बिना देखें ही रिश्ते से मना कर देता।वजह यह थी कि बापू की मृत्यु को ज्यादा समय नही हुआ था।मैं अभी शादी करना नही चाहता था।इसलिए मना कर देता।इससे मेरी गांव में ऐसी छवि बन गयी कि न जाने यह कैसी लडकी चाहता है।
एक बात और।अभी तक हमारे परिवार में रिश्ते हुए मैं उन्हें बेमेल मानता था।4चचेरे भाई और 4 ही बहनों के रिश्ते हो चुके थे।ये सब मेरे ताऊजी गनेस प्रसाद ने तय किये थे। रिशता तय करने से पहले न भाई बहनों की मर्जी पूछी गयी न लड़का लड़की ने रिश्ते से पहले एक दूसरे को देखा था।मैं इस तरह रिश्ता करने के लिए तैयार नही था।मुझे डर था कही मुझे भी गांव की या अनपढ़ लड़की के साथ न बांध दिया जाए। मैं बिना लड़की देखे रिश्ता
करने के लिये तैयार नही था।इसलिए मैं रिश्ते से मना कर रहा था।
जमुना ब्रिज स्टेसन से मैं 15 दिन बाद वापस आगरा फोर्ट लौट आया था।चीफ मेहताजी से ज्यादा बात नही होती थी।उस समय बुकिंग में बाबूलाल झा,ओ पी मंगला,शांतिलाल,डी एस वर्मा,एस एस डोगरा,जे सी शर्मा, काम करते थे,बाद में मंगला का ट्रांसफर भरतपुर हो गया और रघु राज सिंह आ गया था।
मैं जिस मकान में रहता उसमे एक कमरा सबसे ऊपर था।वह कमरा मकान मालकिन के पास था।वैसे वे सबसे नीचे रहते पर गर्मियों में रात को छत पर सोते थे।दलमोर सिंह का ट्रांसफर होने के बाद मैं उस मकान में पेइंग गेस्ट बन गया था।मकान मालकिन की बड़ी लड़की मेरे से छोटी थी।मैं उनके परिवार के साथ एक सदस्य की तरह रहता था। अक्सर पति पत्नी में झगड़ा होता रहता वजह पति के अनेक औरतो से सम्बन्ध।मैं मकान मालकिन का पक्ष लेता इसलिए आत्मीयता हो गयी।