भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 22 Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 22

और करीब सात बजे हमारे लिए खाना लगाया गया।हलवा,पूड़ी,सब्जी और खाना खाने के बाद भाई बाबूजी से बोला था,"कोई साधन हो तो हम चले जाएं।"
कुछ देर बाद एक मालगाड़ी से हमे भेज दिया।रास्ते मे भाई मुझसे बोला,"लड़की कैसी है?"
"मुझे शादी करनी ही नही है"
"लड़की मे क्या कमी है।खाना कितना स्वादिष्ठ बनाया था।मुझे तो पसन्द है।मैं हॉ कर देता हूँ।"
"तू करे तो कर दे"मैने भाई को जवाब दिया था।
और ताऊजी हमारा इन्तजार कर रहे थे।जब उन्होंने मेरी राय पूछी तब जगदीश भाई ने हां कर दी।और इस तरह रिश्ते वाली बात हुई।
उधर लड़की का नाम इंद्रा ।जब हम वहाँ से आ गए।तब उन्होंने मेरे बारे में बताया और लड़की से राय ली थी।उसने भी हा कर दी थी।
छुट्टी खत्म होने पर मैं आ गया।
सन 71 में दशहरे के दिन रोकने की तारीख तय हुई थी।जब मैं छुट्टी खत्म होने पर आगरा जाने लगा।तब ताऊजी बोले,"दशहरे पर आ जाना।"
"छुट्टी मिली तो मैं आ जाऊंगा।"
उस समय आगरा फोर्ट पर एस एस आर के वर्मा थे।वह मेरे भावी श्वसुर के पास सहायक स्टेशन मास्टर रह चुके थे।मीणा होने की वजह से जल्दी प्रमोट हो गए थे।ताऊजी ने मेरे होनेवाले श्वसुर से कहा था।उन्होंने आर के वर्मा को फोन किया। वर्माजी मुझे बुलाकर बोले ,"तुम्हारा रिश्ता होने वाला है।गए नही।"
और मैं अपने गांव आ गया।दशहरे के दिन मेरा रिश्ता तय हो गया।आज तो मोबाइल का जमाना है।नेट का जमाना है।तब हमारे देश मे यह सब कहा सुलभ था।लेंड लाइन भी हर जगह नही थे।आजकल रिश्ता होते ही लड़का लड़की फोन पर बात करने लगते है।चैट करने लगते है।मिलने लगते है।तब ऐसा कुछ नही था।
रिश्ता हुआ सन 71 में दशहरे के दिन।लेकिन शादी का मुहर्त 18 महीने बाद था।
मेरे श्वसुर बांदीकुई आते रहते थे।कभी अकेले कभी बेटी भी साथ आती।मेरे बहनोई जय भगवान बांदीकुई में टी सी थे।इसलिए उनसे मुलाकात होती और वह बताते रहते।
मेरे साले कमल कुमार की 72 में शादी थी।मुझे भी बुलाया गया।हमारे यहां शादी से पहले लड़का लड़की के घर नही जा सकता।मतलब कुंवारे मांडे।
फिर यह तय हुआ मैं सीधा बरात में शामिल होऊंगा।शादी 17 फरवरी की थी।मैं 17 को नही गया।18 तारीख को विदा वाले दिन गया था।बरात खान भांकरी से बांदीकुई आयी थी।मैं तो वहाँ किसी को भी नही जानता था।महावीर भाई साहब जो मेरी मंगेतर के कजिन थे।मेरे ताऊजी के सहकर्मी और दोस्त भी थे।सिर्फ उन्हीं को जानता था।मुझे पता चला था।मेरी मंगेतर यानी मेरे होने वाले साले साहब की बहन भी आएगी।इसलिए मैं गया था।बारात विदा होने से पहले मैं पहुंचा था।पहली बार मेरे होने वाले चार सालों कमल,विमल, अशोक,विजय से मुलाकात हो रही थी।सबसे छोटा मैं लड़की देखने गया तब मौजूद था।और भी रिश्तेदारों से पहली बार मिल रहा था।महावीर भाई साहब ने मेरा सब से परिचय करवाया था।
बात मेरी होने वाली पत्नी की आयी।मैं उससे मिलने या उसकी एक झलक देखने के इरादे से आया था।लेकिन महावीर भाई साहब ने पता किया।वह बारात में आई ही नही थी।निराश तो होनी ही थी।मैं शादी से पहले एक बार और उसे देखना चाहता था।पर वह आयी ही नही थी।और मै बरात विदा होने से पहले ही आ गया था