Achchaaiyan book and story is written by Dr Vishnu Prajapati in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Achchaaiyan is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अच्छाईयाँ - उपन्यास
Dr Vishnu Prajapati
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
लेखांक – १ मुंबई से रात को निकली बस की ये सवारी सुबह की पहली किरन के साथ अपने आखरी मुकाम तक पहुच चुकी थी शहर की भीड़ में बसने अपनी रफ़्तार कम कर ली थी सुबह की धुप के साथ ये शहर मानो फिर से सजने लगा था मुंबई से भले ये छोटा शहर हो मगर यहाँ पर भी लोग सुबह में लोग घर छोड़कर रास्तो पर निकल आये थे, कोई दौड़ रहा था तो कई लोग मिलके सुबह की चाय का आनंद ले रहे थे घर में बीबी के हाथ की चाय भले ही
लेखांक – १ मुंबई से रात को निकली बस की ये सवारी सुबह की पहली किरन के साथ अपने आखरी मुकाम तक पहुच चुकी थी शहर की भीड़ में बसने अपनी रफ़्तार कम कर ली थी ...और पढ़े सुबह की धुप के साथ ये शहर मानो फिर से सजने लगा था मुंबई से भले ये छोटा शहर हो मगर यहाँ पर भी लोग सुबह में लोग घर छोड़कर रास्तो पर निकल आये थे, कोई दौड़ रहा था तो कई लोग मिलके सुबह की चाय का आनंद ले रहे थे घर में बीबी के हाथ की चाय भले ही
भाग – २ सूरजने सालो बाद अपने कोलेज आया | वे अपनी उम्मीदे लेकर और सालो बाद सबसे मिल पायेगा वो सोचकर जल्दी सबसे मिलाना चाहता था... मगर सूरज नहीं जानता था की अब उनकी जिन्दगी बदल चुकी है.... ...और पढ़ेसूरज को अपना पुराना प्यार मिल पायेगा ? क्या सूरज फिर से वैसी ही जिंदगी जी पायेगा जो वो पहले जीता था ? और क्या उसका बिता हुआ कल आज भी उनके आनेवाले भविष्य को प्रभावित करेगा?
भाग – ३ सूरजने सालो बाद उनका पहला कदम कोलेज के अंदर रखा | काफी छोटा था जब वो इस कोलेज में पहलीबार आया था, आज फिर उन्हें वो दिन याद आये | उसवक्त दादाजी उसे यहाँ ले के ...और पढ़ेथे, उन्होंने ही मुझे सड़को की दुनिया से मुक्त किया था, उसवक्त मेरी इतनी समझ थी की दुनिया के लोग जहा भी ले चले वहा चलते जाना है | मेरे बाबा हाथमें एकतारा लेके वो प्यारा सा गीत गाते थे और वो धून मुझे भी शिखाते थे | आज तेरा कोई न हो तो कल तेरा जहाँ होगा तुझे बस
भाग – ४ सूरज अब अपने काम में खो गया | कोलेज में कुछ कुछ छात्र आ रहे थे, वे सूरज को देख रहे थे मगर वो कोई पियानो ठीक करनेवाला होगा ऐसा सोच के अपने अपने क्लास की ...और पढ़ेचले जाते थे | करीब दो घंटे निकल गए... सूरज वो पियानो में फिरसे जान भर देना चाहता था, वो हरएक सूर को सही करके अपना कम कर रहा था.... और आखिरकार उनको सफलता मिल ही गई | दूरसे एक छोटी लड़की सूरज को ही देख रही थी... वो करीब चार-पांच साल की होगी... उनके हाथोमें छोटी सी बांसुरी थी,
भाग – ५ सूरज की आँखे विश्वास नही कर पाई की ये आवाज उनकी हो सकती है ? सूरज उनकी ओर देख के हैरान हो गया...!! सूरज को लगा की उनकी आँखोंमें जो आजतक प्यार ही प्यार था ...और पढ़ेसे आज अंगारे उगल रहे थे | सूरजने उनकी आवाज और उनकी आँखों का गुस्सा नजर अंदाज किया और वो पास जाकर उनके पैरोमें बैठ गया, वैसे ही जैसे वो जब छोटा था तब बैठा करता था....! उनके पैरो की छाँव में सूरज को शुकून मिलाता था | वो उसके प्यारे दादाजी पंडित दीनानाथजी थे | सूरजको पैरोमें बैठता हुआ और