भाग – ७
सूरज और दादाजी दोनोंने ऊपर बालकनीमेंसे देखा तो कोलेज के नीचे बगीचेमे कुछ गुंडे लड़कीओ को परेशान कर रहे थे, सूरजने तुरंत ऊपरसे ही छलांग लगाईं और जहा ये लोग खड़े थे उस बिच पहुँच गया |
वो बदमाशोमें से कुछ तो शराबी थे और कुछ अपनी मनमानी कर रहे थे, उनकी बातो से लगता था की वे इस जगह पे पहले भी आ चुके थे और उन्हें किसी का डर नहीं था | वहा से दूर खड़े कोलेज के कई लडके उनको देख रहे थे, सूरज से ये सहा नहीं गया और उसने तुरंत सामनेवाले दो बदमाशो को पीटना शुरू किया | फिर तो बाकी के सारे सूरज को मारने आये मगर वे बदमाश शायद आज पहलीबार मुह की खा रहे थे, उनको अंदाजा नहीं होगा की सूरज अकेला ही उनपर भारी पड़ेगा |
सूरज इतने सालोमे बदल चूका था, उनकी उंगलिया जो केवल सूर जानती थी वे अब सख्त हो चुकी थी, उनकी बाजू पहले से ज्यादा सख्त लगती थी और उसके एक मुक्के से बदमाशो को पीछे हटाना पड़ता था |
जब सारे बदमाशो की पिटाई हो रही थी तभी वहां दूर खड़ी एक लड़की बोली, ‘सूरजभैया, इन लोगो को बहुत पीटना, वे सब हमें ड्रग्स लेने और बेचने मजबूर करते है, दादाजी पुलिस के पास जाते तो पुलिस भी उसे ये कहती की वैसे भी तुम्हारी कोलेज ड्रग्स बेचनेमें बदनाम है, तो भला अब क्या परेशानी है ? वैसा करो आप सब ड्रग्स बेचो, उनसे पैसे मैं दिलवाउंगा | सूरजभैया जो भी हो ये सारे लोग गलत है..... इस कोलेज को बचालो...!’
ये सुनकर सूरज का गुस्सा और बढ़ गया और सबको सबक शिखा रहा हो वैसे मारने लगा और चिल्लाने लगा, ‘ मै मेरी कोलेज को कभी बदनाम नहीं होने दूंगा, उसके लिए मुझे जो भी करना पड़े....!’
वहा खड़े सारे लड़के अब सूरज.... सूरज.... चिल्लाके सूरज को हिम्मत दे रहे थे |
’अच्छा तो तुम सूरज हो ?’ एक बदमाश खड़ा हो गया |
‘हां... मैं ही सूरज हूँ... क्या कर लोगे ?’
‘हमें माफ़ करदो अब दुबारा ऐसी गलती नहीं करेंगे और बोस को बोल देंगे की सूरज आ गया है....’ वे कुछदेर गिडगिडाने लगे और फिर वे सारे वहा से भाग निकले |
सूरज भी नहीं समझ पाया की उसका नाम सुनते ही वे बदमाश अचानक क्यों बदल गए ?
दादाजी ने भी उन बदमाशो की बात सून ली थी, उन्होंने तुरंत कहा, ‘यानी की सूरज ये सब और इनका बोस भी तुम्हे जानते है... पहले से तुम इनके साथ मिलके ही काम करते होंगे...!’
‘नहीं दादाजी, मैं तो उनको जानता भी नही..’
‘तो वे सारे तुम्हारे नाम से क्यों भाग गए ? और तुम भी ऐसा कुछ तो जानते है जो तुम मुझे बताना नहीं चाहोगे... मुझे लगता है की तुम सब एक ही हो... तुम यहाँ से निकल जाओ...वैसे भी हम परेशान है तुम हमारी परेशानी बढाओ मत... ’ दादाजी फिरसे नाराज हो गए |
बदमाश के साथ हुई हाथापाई में सूरज को भी कही जगह से खून नीकल रहा था | सूरज अपने शरीर के घावो को तो शायद झेल पाता मगर दादाजी का ये तिरस्कार वे सहन नहीं कर पता था | दादाजी के ये शब्द सुनते ही उसकी आँखे भर आई |
सूरज अपने आँखों के आंसू और अपना दर्द लेके वहा से चलने लगा | दादाजी भी वहां से अपनी ऑफिसमें चले गए |
दूर खडी सुगमने देखा की दादाजी चले गए है तो वो दौड़ के सूरज के पास आई और कहने लगी, ‘ सूरजअंकल आप बहुत अच्छे हो, आपने यहाँ आके ये पियानो भी ठीक कर दिया, वे सारे बदमाशो को मार के भगाया, फिर भी दादाजी को ये सारी आपकी अच्छाइ क्यों नजर नहीं आई ?’
सूरज सुगम के शब्द सुनकर उनके पास गया और बोला, ‘बेटा, जो हमें बेहद प्यार करते है वो कभी हमें डांटे तो उसका बुरा नहीं लगाना चाहिए...!’
सुगम सूरज की इस बात पे खुश हुई तो बोली, ‘अंकल आप को तो इन घावो का कितना दर्द होता होगा, फिरभी आप कोई शिकायत नहीं कर रहे | अब मेरी मम्मा मुझे कितना भी डांटे तो भी मैं उनके शिकायत नही करुँगी....! वैसे तो वो दो दिन से बहार गई है इसलिए मैं उनसे नाराज थी मगर अब मैं आपकी बात से शिखी हूँ की हमें हरपल अच्छा ही बनाना है | आपको चोट लगी है तो दर्द होता होगा न..... मेरी मम्मा कहती है की ज्यादा दर्द हो तो भगवान को याद करना तो तुम्हारे सारे दर्द चले जायेंगे |’
सुगम की बाते सुनके सुरजने अपने आंसू रोकलिए और उनको अपनी गोदीमे उठाके कहने लगा, ‘तुम अपनी मम्मा को कहना की सूरज आया था और वो तुमसे मिलाना चाहता था... मगर अब शायद नहीं मिल पाएंगे....!’ सूरज बिचमें रुक गया और बोला, ‘ तुम छोटी सी परी जैसी हो इसलिए मेरी तरफ से एक छोटा सा उपहार तुम्हारे लिए...!’ इतना कहकर सुरजने अपनी बेगमें से एक सफ़ेद मोती की माला सुगम को दी और धीरे से कहा, ‘दादाजी को ये मत दिखाना वरना वो नाराज हो जायेंगे... ’
‘पर ये तो मैं अपनी मम्मा को दिखाउंगी, उनको सफ़ेद मोती बेहत पसंद है |’ वो हार को देखती रही और फिर बोली, ‘क्या ये आप मेरे लिए लाये थे ?’
ये सुनकर सूरज को सरगम की आखरी मुलाकात याद आ गई | सरगमने कहा था की तुम जब वापस आओगे तो मेरे लिए एक उपहार लेके आना मैं तुम्हारा इंतज़ार करुंगी, और सरगम को सफ़ेद मोती बेहद पसंद थे | सूरज को वापस आते आते अब सालो बित गए थे, जिस के दिल में जिसने जगह बना ली थी उनके दिल से भी वो उतर चूका था |
‘क्या ये आप मेरे लिए लाये थे ?’ सुगमने फिरसे पूछा तो सूरज अपनी यादो से बहार आया |
‘हा, तुम्हारे लिए ही......’
‘मगर तुम मुझे कैसे पहचानते हो..?... शायद मम्माने कहा होगा...!’ सुगम वो माला को देखती रही |
‘अच्छा अब तुम जाओ, मुझे भी जाना है |’ सूरज अब कोलेज से दूर जाना चाहता था |
‘आपको तो चोट लगी है और दादाजी आपको यहाँ से जाने के लिए क्यों कहते है ? आप तो मुझे बहुत अच्छे लगते हो.... और आप जाओगे कहाँ ?’ सुगम के इस आखरी प्रश्नने सूरज को बैचेन कर दिया |
‘भगवान जहाँ ले जाये वहां...!’ सूरजने मुश्कुराते हुए कहा |
‘मेरी मम्मा कहती है की हम भगवान के दिखाए रास्ते पर चलते है तो वो हमें मदद करता है...!’
‘हां.. तुम्हारी मम्मा ठीक कहती है... तुम अपनी मम्मा से बहुत प्यार करना’ सूरज अब खुद से भी दूर जाना चाहता था, वो कितनी उम्मीदों के साथ कोलेज वापस आया था मगर यहाँ के हालत बदल चुके थे |
कोलेज के बहार कदम रखते ही वो अपना वो अच्छाईवाला प्यारा गीत गुनगुनाने लगा | तभी वहा दूर खडी लड़की आई और सूरज के हाथो में गिटार दे दिया | सूरजने सालो बाद फिरसे अपनी उंगलिया उन तारो पर फिरने लगी और उनके घाव के दर्द कम होने लगे |
‘मैं कुछ दिन ये गिटार अपने पास रख शकता हु ?’ सूरजने उस लड़की से गिटार मांग लिया और वो अब शहर की ओर चलने लगा |
जैसे जैसे सूरज के कदम आगे बढ़ने लगे वैसे वैसे उनकी आँखे और तेज बहने लगी | सूरज को लगा की जैसे छोटा था तब उसका कोई नहीं था आज फिर वो अकेला हो गया |
मगर सूरज को ये पता नहीं था की उनके लिए आगे कई सारे इम्तेहान बाकी थे जो सूरज की जिंदगी को बदल देनेवाले थे...
क्रमश: