अच्छाईयां – ९ Dr Vishnu Prajapati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अच्छाईयां – ९

भाग – ९

गुलाबजामुन का नाम लेते ही छोटू के चहेरे पर अलग सी मुश्कुराहट छा गई थी | वो कुछ कहने ही वाला था तभी सामने रेलवे स्टेशन पर ट्रेन आने की व्हिसल बजी तो उसने अपनी बात बदल दी और वो बोला, ‘अभी मेरे धंधे का वक्त हो गया है.... मैंने तुम्हारा ये तुनतुना बजानेवाला स्टाइल देखा अब तु मेरा स्टाइल देख |’ वो कुछ दिखाने जा रहा था |

छोटूने अपने पायजामे की जेब से एक कोयला निकाला और उसको अपने हाथ पे रगड़कर फिर अपने हाथो को चहेरे पर कही कही जगह पे लगाने लगा, वो खुद अपना मुंह काला कर रहा था, फिर अपने दाहिने हाथ के अंगूठे के पास दूसरी और तीसरी उंगली के बीच दो पत्थर रखकर वो उंगलिया को ऐसे हिलाने लगा की वो पत्थर टकराए और उसमे से आवाज निकले | उसने ऐसे दो तीन बार टेस्ट किया |

उसको किसीने भीख माँगने का यही तरीका शिखाया था और वो उसे अच्छे तरीके से कर भी रहा था | अब सामने से पेसेंजर निकलते दिखने लगे तो वो उनके बिच पहुँच गया और छोटूने गाना शुरू किया ,

‘मैं ये नहीं कहता की प्यार मत करना....

किसी मुसाफिर का मगर एतबार मत करना....

परदेशी परदेशी जाना नही.... मुझे छोड़के ... मुझे छोड़के.....!!’

छोटू की आवाज सुरीली थी और वो अपने हाथो के पथ्थरो को अपनी उंगलियों के इशारों से बढ़िया तरीके से बजा रहा था | कोई मुसाफिर उसको पैसे दे के रहा था तो कोई उसके सामने देखे बिना निकल भी जाता था | छोटू कोई पैसे दे तो भी खुश और ना दे तो भी खुश रहता था | उसकी छोटी छोटी उंगलिया में उस पत्थर की वजह से दरारे हो चुकी थी | कभी कभी वे वहां कोई उसकी उम्र का छोटा लड़का अपने मांबाप के साथ चलता देखता था तो वे उसके पीछे पीछे थोड़ीदेर चलता था और गाता था,

‘ये तो सच है की भगवान है....

है मगर फिर भी अनजान है...!!

धरती पे रूप माबाप का उस विधाता की पहचान है....!!’

वो गा भी रहा था और उनके सूर से लग भी रहा था की वो अन्दर से रो भी रहा था | उसके गाने की असर लोगो पे हो भी रही थी |

सूरज उसको देख रहा था... धीरे धीरे सारे यात्री चले गए | छोटू भीख में मिले अपने पैसे गिनता हुआ सूरज की ओर आया और बोला, ‘ तु मेरे लिए लकी है... देख आज ज्यादा पैसे मिले है....!!’

सूरज उस छोटू के पैसे को नहीं मगर उसकी आँखों के पीछे छीपे दर्द को पढ़ना चाहता था मगर वो कुछ ही पल में अपने आपको बदल शकता था | उसने सूरज को गहरी सोच में देखकर बोला, ‘देख टेन्सन लेने का नही.... आज से हमारी पक्की दोस्ती... और मैं तुम्हे आज गुलाबजामुन के हाथ की चाय पिलाऊंगा |’

वो आगे जाने लगा और सूरज उसके पीछे अपने आप चलने लगा | वो एक छोटी गली से गुजरता हुआ एक खोली के पास रुक गया, वे किसी बड़ी चाय की दुकान का पीछला हिस्सा था | उस खोलीके एक कोने में छोटू की उम्र के तीन लड़के तास खेल रहे थे और वहां से कुछ दूर एक लड़का बीडी पी रहा था | वे सब छोटू के जैसे ही दिखते थे | छोटू और ये सब लडके इस चाय की दूकान के पिछवाड़े हिस्से पर अकसर आते होगे ये लग रहा था | वो सामने रखी एक टूटीफूटी चारपाई पर सूरज को बैठने को कहा और वो अन्दर देखकर बोला, ‘ गुलाबजामुन दो चाय और ब्रेड मख्खन मारके....!’

उसकी आवाज से लगा की वो यहाँ सबको पहचानता था | छोटू की आवाज सुनकर वे तास खेल रहे लडके में से एक लड़का छोटू की तरफ देखकर बोला, ‘ क्या छोटू, किसीका पाकिट मार के आया है ?’ वो छोटू को पहचानता था |

उसकी बात सुनकर छोटू को गुस्सा आया और बोला, ‘ओय चिकने, मैं तेरे जैसा जुआरी और चोर नहीं हूँ, ये तो आज मेरा दोस्त आया है इसलिए...!!’

वो लड़का तो फिर तास खेलनेमें खो गया था और छोटू चाय की दुकान की अन्दर बारबार देख रहा था, ‘ गुलाबजामुन जल्दी करना....!’

‘अच्छा तो यहाँ है तुम्हारी दोस्त गुलाबजामुन...!’ सूरजने छोटू की आँखों को पढ़कर कहा |

ये सुनकर छोटूने अपने होठ और नाक पर अपनी उंगली रखकर सूरज को चुप रहने का ईशारा किया | थोड़ीदेर में अन्दर से एक लड़की आई और वो छोटू से कह रही थी, ‘ छोटू पहले आगे के दो सो रुपये बाकी है वो दे दे फिर बटरवाली ब्रेड मांगना...!’

गुलाबजामुन करीब इक्कीस साल की होगी, वे बेहद सुन्दर और किसी को भी उनके सामने देखने को मजबूर कर दे ऐसी थी | सूरज उसकी और देख ही रहा था तभी छोटू बोला, ‘आज मेरा दोस्त आया है उसके सामने तो मेरी इज्जत रख...!’

ये सुनकर गुलाबजामुनने पहले छोटू के सामने देखा और फिर सूरज के सामने देखने लगी | दोनों की आँखे टकरा गई, वो कुछ देर एक दूसरे को देखने लगे, सूरज समजता था की गुलाबजामुन छोटू की उम्र की होगी मगर ये तो एक हुस्नपरी थी |

तभी छोटूने सूरज को धीरे से कहा, ‘ देखते ही खो गए न......! मगर याद रखना की हमारी शर्त थी तुम गुलाबजामुन से दूर रहोगे...!!’

सूरज की और गुलाबजामुन की आँखे कुछ पल के लिए केवल टकराई नहीं थी मगर एक दूसरे में खो गई थी, सूरज उसकी सुन्दरता में खो गया था मगर गुलाबो तो कुछ ओर सोच रही थी | कुछ पल के बाद वे अन्दर चली गई और उसने खोली का पीछेवाला परदा नीचे कर दिया ताकी कोई बहार से अन्दर देख न ले | सूरज समझ नहीं पाया की उसने ऐसा क्यों किया...?

कुछ देर बाद वो ब्रेड बटर और चाय लेके आई, सूरज भी भूखा था उसको ये चाय और ब्रेड अच्छे लगे | हालाकि उस ब्रेड पर लगा बटर कुछ कुछ जगह पर ही था, इस खोली पर शायद इन लोगो को यैसे ही मख्खन नसीब होता होगा | सूरज आज सुबह से इस शहर में आया था मगर उसको कोलेज से मिले तिरस्कार से टूट चूका था | छोटू के साथ बैठने से सूरज को अच्छा लगा, छोटू अपनी जिन्दगी से परेशान था मगर फिर भी इतनी छोटी उम्रमे खुशियों के साथ अपनी मुश्किल हालत से लड़ रहा था | सूरजने अपनी चाय और ब्रेड ख़तम की और सूरज उसके पैसे देना चाहता था तो छोटूने मना कर लिया और बोला, ‘ मैंने कहा था न... आज मेरी ओर से पार्टी है...!’ वो इतने प्यार से कह रहा था की सूरज के हाथ रुक गए |

छोटू कुछ देर अंदर गया और फिर बहार आके बोला, ‘अब दूसरी एक्सप्रेस ट्रेन का वक्त हो चूका है....मैं निकलता हूँ... मुझे मिलते रहना और हमारी शर्त भूलना मत....’ उसने अन्दर बैठी गुलाबो की तरफ ईशारा भी किया |

छोटूने फिर से अपने पायजामेमें रखे कोयले से अपना मुंह काला किया और दो पत्थर उंगलियोंमें लगा के उसको बजाते हुए चला गया | उसके जाने से सूरज को कोई अपना बिछड़ रहा हो ऐसा महसूस हुआ | सूरज छोटू के जाते हुए देख रहा था, वो धीरे धीरे लोगो की भीड़में खो गया | सूरज फिर भी कुछ्देर उसको पीछे से देखता रहा |

तास खेल रहे थे वो तीनो लडके भी वहां से चले गए | सूरज अब अकेला था, वो खड़ा हुआ और उस दूकान के अन्दर जाने ही वाला था तभी गुलाबजामुन सामने आई, शायद वो सूरज को अन्दर आने से रोकने के लिए ही आई हो ऐसा लगा और उसने सूरज को रोक लिया और बोली, ‘ सूरज तुम्हारे लिए अन्दर जाना ठीक नहीं है...!’

गुलाबजामुन के मुंह से सूरज नाम सुनते ही वे चौंक गया, ‘तुम मुझे कैसे पहचानती हो ?’

‘सूरज बाते बादमे करेंगे, तुम अभी यहाँ से निकल जाओ, और ये छोटू के उस्ताद से भी दूर रहना...!’ वो सूरज के साथ चुपके से बात कर रही थी और बारबार दूकान के अन्दर देख भी रही थी |

सूरजने अपनी जेब से पैसे निकाले और छोटूके बाकी पैसे उसे रखने को कहा और तभी सूरजने देखा की दूकान के अन्दर दूर जो तीन चार आदमी बैठे थे वो वही थे जिसको उसने कोलेज में पिटा था |

सूरज उसके पास जाना चाहता था मगर फिर से गुलाबो बिचमे आई और बोली, ‘ सूरज, देख तुम इतने सालो बाद आये हो... ऐसा मत समझना की तुम ड्रग्स के चक्रव्यूह से नीकल गए हो...! अब तुम्हारी जिंदगी सीधेसादे सात सूरो जैसी नहीं है...!’

‘तुम मुझे कैसे जानती हो और ये सब ड्रग्स, सात सूर ....?’ सूरज को लगा की गुलाबो सारी बाते जानती है |

‘तुम्हे भी तुम्हारी जिंदगी का सच जानना है तो फिर मिलना...अभी नही...!’

‘कहाँ...?’

‘आज रात को हसीनाखाने में....!’

‘तुम हसीनाखानेमें...??’

‘हां... नाचती हु और मर्दों को नचाती हु....!’

सूरज ये सुनते ही गुलाबो से दूर हो गया | उसके दिमागमें कई सारे सवाल खड़े हो गए और उसके जवाब केवल ये गुलाबो ही जानती थी |

वो बोला, ‘ तुम्हारा नाम क्या है ?

‘सब गुलाबजामुन से ही पहचानते है ....’

‘तुम हसीनाखाने में कहाँ मिलोगी...?

‘वहां केवल मेरा नाम ही मेरी पहचान है.....!!’ और वो अन्दर चली गई |

सूरज के लिए उसने पीछे का दरवाजा बंध कर दीया और सूरज के दिमाग में कई सारे सवाल खड़े हो गए | सूरज को लगा को अब मुझे यहाँ से निकलना ही होगा |

‘ये गुलाबजामुनने मुझे कैसे पहचाना ? वे मेरे और ड्रग्स के चक्कर को कैसे जानती है ? वहा बैठे वे सारे बदमाश भी ड्रग्सके कारोबारवाले थे.. यानी ये गुलाबो का भी ड्रग्सवालो के साथ रिश्ता है.... और वो छोटू के उस्ताद से दूर ही रहना ऐसा क्यों कह रही थी ?’ सूरज सोचता हुआ बिना मंजिल भटक रहा था, सूरज को लगा की ये सारे सवालो के जवाब केवल गुलाबजामुन ही दे सकती है... मुझे आज रात उसे मिलना ही होगा.... ‘हां मैं जरुर जाऊँगा आज रात हसीनाखाने में..’ सूरजने तय कर लिया |

मगर सूरज को पता नहीं था की अब आगे उनकी जिंदगी के लिए कई सारे सवाल खड़े होनेवाले थे... सूरज का उन लोगो से सामना होनेवाला था जो लोग हररोज मौत का खेल खेलते थे.....

क्रमश: