अच्छाईयां – १७ Dr Vishnu Prajapati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अच्छाईयां – १७

भाग – १७

सरगम कोलेज गई तो उसके टेबल पर एक लिफाफा आया हुआ था | सरगमने खोला और पढ़ा तो पता चला की इस साल उस ही देश के शहरमें विश्व की सबसे बड़ी संगीत प्रतियोगिता होनी वाली है.... सालो पहले ऐसी ही बात हुई थी और तभी सूरजने उसकी जिम्मेवारी अपने सर पर ले ली थी | सूरज ने सबको साथ रखा था और वो प्रतियोगिता जीतने का सबको सपना दिखाया था |

सरगम उन पुरानी यादो में खोने लगी, ‘पिछले साल इस कोलेज से स्पर्धा के लिए जो स्टूडेंट चुने गए थे जिसमे सूरज, रज्जू, गुंजा, मुस्ताक, पवन, श्रीधर, निहाल और मैं, हम सब सा... रे... ग... म... प... ध... नि... सा... जैसे ही सात सूर थे | उसमे झिलमिल भी थी | वो झिलमिल जो सबसे सुन्दर थी | जब झिलमिल सूरज के पास जाती तो मुझे अच्छा नहीं लगता था | सब जानते थे की झिलमिल सूरज से प्यार करने लगी थी और इसलिए सरगम सूरज को झिलमिल से दूर ही रखती थी | मगर झिलमिल संगीत में सबसे आगे थी, सरगम से भी वो बहेतरीन परफोर्मन्स दे रही थी और सूरज के साथ उनका स्वर भी काफी मिल जाता था | सूरज के सूर और झिलमिल के स्वर के कई लोग दीवाने भी हो गए थे | वो खुद झिलमिल से इर्षा करने लगी थी | और ये बात सूरज को पता चलते ही सूरज झिलमिल के ज्यादा करीब रहता था और सरगम को जलाता था | सूरज ऐसी हरकतों से उसका सूरज के प्रति प्यार और गहरा हो जा रहा था | उस सेमी फाइनल परफोर्मेंसमें झिलमिल और सूरज को सबसे प्यारी संगीत जोड़ी का एवोर्ड भी मिला था और उस दिन रात को ही सरगमने सूरज से बात करना बंध कर दिया था | आखिर सूरजने ही अपने प्यार का इकरार किया था और कहा था की मैं और झिलमिल तो एक अच्छे दोस्त है मेरा प्यार तो कोई ओर है......!!! वो रात दोनों के लिए यादगार रात थी | सूरजने कहा था क्या सरगम तुम मुझसे प्यार करती हो ? तो सरगमने कहा था की तुम फ़ाइनल जीत लो फिर मुझे भी जीत जाओंगे | हां... उस रात सूरजने मुझे और स्पर्धा दोनों जित लिए थे मगर......!!’ सरगम अभी भी पुरानी यादोमे खोयी हुई थी मगर उसकी आँखे जब फिर से उस लिफाफे पर गई तो उसने कुछ तय कर लिया और वो अपने हाथमे लेकर एसेम्बली होल की ओर चली |

सरगमने सोचा की अब मैं फिर से इस कोलेज का गया हुआ सन्मान वापस लाऊँगी | हालाकि पिछले साल भी किसी को यकीन नहीं था की हम अपना अच्छा परफोर्मन्स दे पायेंगे मगर सूरजने सब के साथ मिलकर जी जान से महेनत की थी | हम जीते थे तो उसका सारा श्रेय सूरज को ही जाता है, वो आज यहाँ होता तो शायद.....!!!!’ सरगम फिर कुछ देर खामोश रही | फिर उसने तय किया की सूरज नहीं है तो क्या हुआ मैं तो हूँ... इसबार मैं खुद इस प्रतियोगिता को तैयार करवाउंगी.... दादाजी को और इस कोलेज को फिर से संगीत प्रति सन्मान वापस दिलाउंगी | सरगम एसेम्बली होल में पहुँच गई और वहा कुछ देर बाद सारे छात्र इकठ्ठा हुए | करीबन दो सो छात्र थे | हालाकी पहले तो ये संख्या ज्यादा कम थी मगर फिर भी पंडित दीनानाथजी के नाम से ही ये कोलेज चल रहा था | सरगम माइक के पास आई और उसने वो लिफाफा अपने दाहिने हाथमें रखकर सबको कहना शुरू किया,

‘ मेरे प्रिय संगीत के उपासक छात्र...!

आज फिर सालो बाद इस कोलेज को पूरे विश्वमें सबसे अव्वल बनाने का अवसर आ गया है | सालो पहले हमने जो संगीत प्रतियोगिता जीती थी वही पर अब फिर से हमें अपना परफोर्मन्स दिखाने का अवसर मिला है | हमारे पास तीन महीनो का वक्त है....शायद ये वक्त आपको कम लगे मगर मुझे यकीन है की इन समयमें हम फिर से दिखा देंगे की हमारा संगीत कल भी सबसे अच्छा था और आज भी सर्वश्रेष्ठ है | मुझे पच्चास छात्र की जरुरत है जो खुद में यकीन रखते है, जिसके मन में जितने का हौसला बुलंद हो | आज से ही सबकी कड़ी प्रेक्टिस शुरू होगी, जो भी मेरे साथ है वो अपना हाथ ऊपर करे....!’ सरगम की आवाजमें जोश था और उसका असर भी सब पे हो रहा था | सरगम एक टीम बनाना चाहती थी |

उसमे से एक लड़कीने अपना हाथ ऊपर रखा और सरगम से कुछ कहना चाहा, ‘मेम... क्या हम सूरज को फिर से हमारा लीडर बना शकते है ? वो कुछ दिन पहले कोलेज में आया था और शायद अभी भी इसी शहर में होगा ! उस दिन हमने उनको सूना था | आज भी उनकी उंगलियों में जादू है... हमें तो लगा था की शायद वो हमारे नए टीचर होंगे मगर दादाजी ने कहा तो पता चला की वो सूरज ही था.... हम सबने उसको यहाँ से जाने को कहा था... मगर अब हमें उसकी जरुरत है.... आप फिर से उसे बुलाओ, वो जरुर आयेंगे | ’

तभी उससे थोड़े दूर खड़े एक लड़केने कहा, ‘उसने ही तो हमारी कोलेज को अन्धकारमें धकेला है तो उसे फिर से बुलाकर हमें गलती करने की जरूरत नहीं.. हम खुद शीख लेंगे |’

‘देखो उनका तजुर्बा और उनकी काबेलियत पर हमें भरोसा करना चाहिए | यदि वो गलत होता तो वापस इधर नहीं आता | किसीने उसको फसाया है | उनका इस दुनियामे है ही कौन जो उसे इस हाल में मदद करेगा | उस दिन मैंने उसका संगीत सूना था, उसने हमारी मदद भी की थी | मैंने उनकी आंखोमे सच्चाई और उनकी बातोमे अच्छाई देखी है | उसे हमारी जरुरत है ओर हमें भी उनकी......’ उस लड़कीने सबको समजाते हुए कहा तो मानो सब उसकी बातो में बह गए |

सरगम भी अब दोराहे पर खडी हो गई थी | उसने इन सबकी बात पे इतना ध्यान नहीं दिया मगर सबको जल्द से जल्द एकजूट होने की बात कही | सबको अपनी अपनी एक ट्यून बनाने को कहा और फिर से हम एक अनूठा संगीत पेश करेंगे ऐसी बात रखी | सरगम यकीन नहीं था की सूरजने जो सालो पहले सबको प्रेक्टिस करवाई थी वैसी ही प्रेक्टिस क्या खुद करावा शकती है ? मगर एक बात तो तय थी की सरगमने फिर एकबार सबके अन्दर वर्ल्ड चेम्पियन बनने के ख्वाब बो दिए थे |

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कल्लूने सब बच्चों को काम पे भेजा मगर छोटू को रुकने को कहा | जब सारे बच्चे चले गए तो कल्लूने छोटू को एक स्कूल युनिफोर्म पहनाया |

छोटूने युनिफोर्म पहनते ही कहा, ‘ क्या दादा, अब मुझे स्कूल जाना है ?’

कलूने उसके पीछे स्कूल बेग टांगते हुए कहा, ‘ अरे छोटू हमारे नसीबमें स्कूल कहा ? आज से तुम्हारा नया काम शुरू होनेवाला है | तुम्हे कुछ दिन उस कालिमा मंदिर के पास की स्कूल तक जाना है वहा एक आदमी तुम्हे मिलेगा और बोलेगा ‘एय लाल खरगोश’ तो तुम्हे उसे ये बेग देना है | फिर वो तुम्हे दूसरी बैग देगा वो ले के वापस आ जाना है |’

‘क्या है इसमे ?’ छोटूने पूछा तो कल्लू का चहेरा सख्त हो गया और गुस्से में बोला, ‘ देख तुम्हे जो कहा जाए वो ही काम करना है और ये बैग खोलना भी मत | यदी कही भी दूरसे पुलिस दिखाई दे या कोई तुम्हारे पास आये तो उससे दूर ही रहना | तुम ये काम कर लोगे तो तुम्हे पुरे दिन की छुट्टी और सो रूपए मिलेंगे |’ कल्लूने उसे धमकाते हुए समजाया |

छोटू तो सौ रुपये और एक दिन की छूट्टी दोनों सुनकर खुश हो गया | उसने फिर कल्लू से कोई बात नहीं की और चल पडा कालिमा मंदिर की ओर....! छोटूने देखा की उस कालिमा मंदिर के पीछे ही एक छोटा सा स्कूल था | वहां गोबर बस्ती के बच्चे पढ़ते थे | उस स्कूल का युनिफोर्म और छोटूने पहना युनिफोर्म एक ही था | कोई देखे तो ऐसा ही लगे की ये लड़का उस स्कूलमे जा रहा है |

छोटू कालिमा मंदिर के पास गया तो एक आदमी दूर खड़ा था वो उसके पास आया | वो इधर उधर देख रहा था और बोला, ‘एय लाल खरगोस...!’

छोटूने अपनी बैग उतारकर उसे दे दी | उसने भी वैसी ही बैग छोटू को दी | छोटू को लगा की इस आदमी को कही पर देखा है... ! पर कहाँ ? उस आदमी को बैग मिलते ही वो दूर रखी बाइक पे जो दूसरा आदमी था वो आया और तुरंत वहा से वो दोनों नीकल गए |

छोटू देख रहा था की उसकी उम्र के कई सारे बच्चे उस स्कूलमे जा रहे थे | उनके माता पिता उसे स्कूल तक छोड़ने आ रहे थे | कोई ‘बाय बाय’ तो कोई ‘टाटा टाटा ’ करते हुए अपने प्यार को जता रहे थे | छोटू तो कुछ पल देखता रहा और सोचता रहा की मेरे मम्मी पप्पा होते तो वो भी मुझे ऐसे ही स्कूल छोड़ने आते....! मैं भी खूब पढ़ता...! मगर ये हो नहीं शकता | कल्लूदादा सही कहते थे की हमारे नसीब में स्कूल कहाँ ?

छोटू तो वापस कल्लू के पास गया | कल्लू उसका इंतज़ार कर रहा था | छोटू को वापस आते देखते ही वो खुश हो गया | उसने छोटू के कंधो से उस बैग को ले ली और प्यार से बोला, ‘ छोटू मेरा अच्छावाला बच्चा....!’ हलाकि छोटू पर तो उसका कोई असर नहीं हुआ क्यूँकी कल्लू को वैसे भी बच्चो के प्यार करना नहीं आता था |

कल्लूने उसे सौ रुपये दिये और उसका युनिफोर्म बदल कर कहा, ‘ये ले पैसे और आज मौज कर...!’ छोटू को कुछ दिन पहले किसीने नए कपडे दिए थे वो आज उसने पहने और चला गुलाबो से मिलने |सुबह सुबह छोटू को ऐसे नए कपड़ो में देखकर गुलाबो बोली, ‘ क्यूँ छोटू आज काम पे नहीं जाना है ? और आज नए कपडे....! तेरा हेप्पी बर्थ डे है क्या ?’

‘ये हेप्पी बर्थ डे क्या होता है ?’ छोटूने गुलाबो से पूछा |

गुलाबो से पास छोटू का इस सवाल का कोई जवाब नहीं था | उनको समझ में आया की अनाथ बच्चे का कभी हेप्पी बर्थ डे नहीं होता | उनके लिए तो दिन में भीख मांगना, रात को कल्लू की डांट सुनना यही जिन्दगी थी | इस बिच कोई प्यार से बुलाये, कोई अच्छी चीज दे दे तो हेप्पी डे होता है | गुलाबोने फिर छोटू से पूछा, ‘वो कुछ नहीं... मगर तुम आज हीरो लग रहे हो...!’

छोटू को गुलाबो की तारीफ़ पसंद आयी और बोला, ‘वो मेरे तुनतुनावाले दोस्त से तो अच्छा लगता हूँ ना.....!!! और ये लो सौ रूपए जमा कर देना |’

‘हां... तुम तो सबसे प्यारे हो... ! मगर तुम्हारे पास आज एक साथ सौ रुपये कहाँ से आये ?’ गुलाबोने उसके हाथोमे सो की नै नोट देखके कहा |

‘कल्लूने दिए...’

‘कल्लूने....? ये तो हो ही नहीं शकता |’ गुलाबो को छोटू की बात पर यकीन नहीं था |

‘मैं सच कह रहा हु |’ छोटूने अपने गले को छूकर कहा |

गुलाबो उसके करीब आई और बोली, ‘मैं ये नहीं कह रही की तुम झूठ बोल रहे हो.. मगर कल्लूने तुम्हे सौ रुपये क्यों दिए वो जानना चाहती हूँ |’ वैसे तो छोटू कुछ कहना नहीं चाहता था मगर गुलाबोने जीद की तो छोटूने सारी बात बताई और कहा की कल्लू को ये मत बताना की मैंने तुम्हे मेरे काम के बारे में बताया है | गुलाबो भी उसकी बात सुनकर हैरान हो गई क्यूँकी उसको पता था की कल्लू छोटू से क्या काम करवा रहा है...!

तभी गुलाबो की दुकान पे कुछ लोग आये | छोटू पीछे खड़ा था इसलिए वो लोग इसे देख नहीं पाए मगर छोटूने देखा की उसमे से दो आदमी वही थे जो उन्हें आज सुबह कालिमा मंदिर के पास मिले थे | एक के हाथ में वही स्कूल बैग था जो उसने कुछ देर पहले दिया था | उस आदमी को पहले भी यहाँ ही देखा था | उनको देखकर गुलाबो चुपके से अन्दर चली गई और छोटू को यहाँ से नीकल जाने को कहा |

छोटू वहा से निकल गया मगर उसे पता नहीं था की उसकी और गुलाबो की सारी बाते चंदू चिकनाने चुपके से सुन ली थी...... और ये चंदू चिकनाने तय किया की.....

क्रमश: ........