Achchaaiyan - 34 books and stories free download online pdf in Hindi

अच्छाईयाँ - ३४

भाग – ३४

दुसरे दिन सूरज और निहाल कोलेज के लिए निकले रास्ते में निहाल कई सारे सवाल करने लगा, ‘सूरज तु रात को कहाँ था ? वो इन्स्पेक्टर तुझे कहाँ ले गया था? तुम उस छोटू के खिलौने की क्या बात कर रहे थे ? कल रात तु कोई रिस्क की भी बात कर रहा था, क्या कर रहा है तु ?’ निहालने पूछे कई सवाल के सामने सूरज चुप ही था तो आखिर निहालने गुस्से से उसे रोककर बोला, ‘सूरज तेरी खामोशी से मुझे तो ये भी शक को रहा है की तु क्या फिर से ड्रग्स के चक्कर में तो नहीं है ? कुछ दिन से तुम जैसे खोये खोये लग रहे हो तो मुझे लग रहा है की तुम्हे ड्रग्स के लिए पकड़ा गया था वो सही था क्या ? ’

निहाल की ये बात सुनकर सूरज अपने गुस्से को काबू नहीं कर पाया और उसने निहाल को एक चमचमाता तमाचा ठोक दिया | सूरज के ऐसे रवैये से निहाल काफी नाराज हो गया और चिल्लाया, ‘यदी मैं ये कह रहा हूँ की तुम ड्रग्स बेचते हो वो तुम्हे पसंद नहीं है, तुम सच जानते हो फिर भी सच बताते नहीं हो, तुम क्या चाहते हो वो भी मुझे पता नहीं है | तुमने हमें यहाँ बुलाया क्यूँ ? हम तुम्हे अपना दोस्त मानते है मगर मुझे नहीं लगता की तुम हमें दोस्त समझ रहे हो...!’ निहाल गुस्से में था |

सूरज अपनी इस हरकत पर पछताने लगा और बोला , ‘सोरी निहाल...! यार मुझे माफ़ कर दो.. तुमको सच बताऊंगा मगर अभी मेरी उलझन बढ़ रही है, तुम सबको इसलिए बुलाया है की कुछ दिनमें आप सब उस संगीत प्रतियोगिता के लिए हमारी कोलेज के स्टूडेंट्स के साथ जाओगे, तुम सब ही तो हो जिस पे मैं विश्वास कर सकता हूँ | मेरा विश्वास ये भी है की तुम फिर इस कोलेज का सन्मान वापस लाओगे | एक बात याद रखना निहाल, इस कोलेजने मेरी वजह से सन्मान खोया है और उसको को वापस करना मेरी जिम्मेदारी है, और मैं वही करने जा रहा हूँ | उसमे मुझे तुम्हारी मुझे जरुरत है...!’

‘याने तुम उस कोम्पिटीशन में नहीं आओगे ? और तुम क्या कर रहे हो ?’ निहालने पूछा |

निहाल की जीद के आगे सूरजने अपनी बात कही, ‘मुझे मेरी जिन्दगी के कुछ हिसाब करने बाकी है ! मेरा विश्वास करो निहाल कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा | ये कोम्पिटीशन ही मेरा सपना है और कोलेज फिर से टॉप करेगी | सालो पहले हुई मेरी गिरफ्तारी के बाद कई सारे सच की तलाश को ढूंढता हुआ कल मुझे पता चला है की श्रीधर और गुंजा का खून हुआ था और उसकी सही वजह तक अभी तक मैं पहुंचा नहीं हूँ..!’

‘क्या श्रीधर और गुंजा का खून ?’ निहाल भी ये सुनके चौंक गया |

‘हाँ..! और शायद मेरे पीछे भी कई लोग है, मुझे लगता है की श्रीधर के साथ भी कुछ गलत हुआ था... या वो गलत लोगो का साथ दे रहा था... उसकी सजा मुझे मीली |’ सूरजने न चाहते हुए भी कुछ सच निहाल के सामने रखे |

सूरज की ये बात सुनकर निहालने तुरंत कहा, ‘हां.. सूरज तुम सही कहते हो... जब हमारी कोम्पिटीशन ख़त्म हुई तब श्रीधर और मुस्ताक दोनों खुश थे | मुझे लगा था की वो खुशी शायद हमारी जितने के कारण होगी मगर एक आदमी श्रीधर को मिलने आया था और मैंने उसे देख लिया | वो श्रीधर और मुस्ताक को कुछ चीजे देने आया था | मैंने उसके बारे में पूछा तो श्रीधरने कहा था की दादाजी के रिश्तेदार थे और उनके लिए कुछ सामान आये है और वो तुरंत चले भी गए थे | जब तुम पकडे गए तो मैंने श्रीधर से उसके बारेमें कहा तो उसने मुझसे बात करना तक छोड़ दिया |’

सूरज निहाल को सुन रहा था तभी सामने छोटू दौड़ता हुआ पास आया और बोला, ‘आज तो सुबह सुबह हम मिल गए दोस्त...!’

‘तेरे पास ही आ रहा था !’ सूरजने भी छोटू से प्यार से बात की |’

‘मेरे पास क्यूँ ?’

‘तुम्हे मेरी कोलेज ले जाने के लिए..! तुमने जो वादा किया था वो पूरा करने के लिए और हां, ये है मेरा दोस्त निहाल |’ सूरजने कहा तो निहालने छोटूसे हाथ मिलाया, ‘तो, ये है तुम्हारा छोटू...!’ निहाल को भी उसे देखकर रात की बात याद आ गई |

‘हां..! और ये आज हमारे स्टूडेंट्स को संगीत शिखायेगा |’ सूरज की ये बात सुनके छोटू हैरान हो गया और कहा, ‘ क्या मैं ? अरे ना बाबा ना..! मुझे कहाँ आता है ? मैं नहीं आऊंगा ’

‘तूने मुझे बर्थ डे गिफ्ट में प्रोमिस किया था की तु मेरी कोलेज आएगा..! याद है की भूल गया |’ सूरज ने छोटू को उनका प्रोमिस याद दिलाया | ‘हा.. वो मैंने कहा था, तुम्हारे लिए मैं जरुर आऊंगा | छोटू तुरंत मान भी गया |

सूरज छोटू को ले के कोलेज गया | वहां सरगम, झिलमिल और सारे दोस्त थे | मुस्ताक कही नजर नहीं आ रहा था | सुगम बारबार छोटू की ओर देख रही थी | सूरजने उसका परिचय देते हुआ कहा, ‘ये है मेरा छोटा दोस्त, छोटू...!’ सबने छोटू से हाथ मिलाया |

सरगमने छोटू को देखकर कहा, ‘मैंने उसे तुम्हारे साथ देखा था जब तुम इसे पुलिस से बचा के ले जा रहे थे |’

‘हां वो ही..!’ सूरज ने कहा |

‘मगर मैंने इसे उससे पहले भी देखा है...!’ सरगम याद करने लगी |

‘मैं आपको एक चीठ्ठी भी देने आया था.. कुछ दिन पहले...! आप बहुत अच्छा गाती हो मैंने आपका गाना सुना है |’ छोटूने सरगम से सच बात कह दी |

‘हाँ... वही तुम...! तुमने वो चिठ्ठी किसने दी थी ?’ सरगमने तुरंत सवाल किया मगर सूरजने तुरंत सरगम को वो बात करने को मना किया और कहा, ‘ वो बाते बादमे, आज छोटू यहाँ इसलिए लाया हूँ की उसने मुझे एक बात शिखाई है | वो कोई भी सूर इंस्ट्रूमेंट्स के बिना कोई भी चीज मिले उससे बहेतरीन बजा लेता है | इस साल हमारी थीम है ‘अच्छाइयां’ उसमे हम यही प्रयोग करने वाले है |’

‘वो कैसे ?’ सरगमने बीच में पूछा तो सूरज छोटू और सबको ले के कोलेज के सभी स्टूडेंट्स के पास गया जहाँ सब प्रेक्टिस कर रहे थे | सूरजने छोटू को कहा, ‘तु आज मेरी बर्थ डे गिफ्ट देगा और एक अच्छा गीत इन सबके सामने सुनाएगा |’

छोटू खुश था और वो तैयार था | उसने सबसे पहले कहा, ‘ आज मैं अपने सबसे प्यारे दोस्त सूरजभैया के लिए गीत गाऊंगा | मैंने उनको बर्थ डे पर कोई गिफ्ट नहीं दी थी मगर ये गाना मैंने उनके लिए ही बनाया है...!!’ उसने ये कहकर अपनी दोनों हाथो की उंगलियों में पत्थर रखा और अपनी धून के साथ गाना शुरू किया,

लाला... लल्ल्ल्ला... लाला... लल्ल्ल्ला

ओहोहोहो ओहोहो ओहो... !!

सूरजने जब छोटू के मुंह ये धून सूनी तो वो दंग रह गया | ये धून कई दिन की महेनत के बाद उसने बनाई थी, वो कभी कभी गुनगुनाता भी था और उसी धून पे नन्हे से छोटूने कोई गाना बनाया था..!

कोई पूछे की खुशीयाँ होती है कहाँ ?

तो कहना खिलखिलाते चहेरे होते है वहां...!

गम की परछाई में मुश्कुराना भूल जाते है,

छोटे से दुःख के पास उसे भूल आते है |

अच्छाई है जो अपने साथ, तो डरने की क्या बात ?

सूरज फिर निकल आएगा, छु हो जायेगी घनी रात..|

कोई पूछे की डर होता है कहाँ ?

तो कहना गलत ख़याल होते है वहां...!

सबसे बड़ा डर... होता हैं अन्दर...

याद रख, तु भी पार कर देगा ये समंदर...!

सच्चाई है अपने साथ, तो डरने की क्या बात ?

सूरज फिर निकल आएगा, छु हो जायेगी घनी रात..|

कोई कहे प्यार होता है कहा ?

तो कहना सच्चे दोस्त होते है, वहां...!

दोस्ती दुनिया की बड़ी दौलत है,

जिन्दगी की शान और शौकत है

गहराई है अपने साथ, तो डरने की क्या बात ?

सूरज फिर निकल आएगा, छु हो जायेगी घनी रात..|

कोई कहे अपनापन होता है कहा ?

तो कहना दो दिल एक होते है, वहां...!

परछाई है अपने साथ, तो डरने की क्या बात ?

सूरज आएगा, तो बीत जायेगी वो घनी रात..!!

सूरज, सरगम, सुगम और सब दोस्त भी अब छोटू के इस गीत में खो गए थे | दादाजी भी कोलेज में कई दिन के बाद संगीत की एक बहेतरीन आवाज सुनके चले आये थे | छोटूने ये गीत खुद बनाया था और सूरो से सजाया था | सुगमने भी उसके साथ अपनी बांसुरी बजा के छोटू को साथ दिया |

गाना ख़त्म होते ही सूरजने छोटू को उठाया और बोला, ‘मान गए गुरु, ये तो मेरी जिन्दगी की सबसे अच्छी गिफ्ट है | तुम तो सबके उस्ताद हो...!’

‘सबसे बड़ा उस्ताद तो उपरवाला है दोस्त..!’ छोटू की इस बात पर सब हंस पड़े और कोलेज में मानो फिर से खुशहाली छा गई | बीच में मौका देखकर सूरजने सरगम को पास बुलाया और कहा, ‘तुम्हे श्रीधरने जो बांसुरी दी थी वो मुझे चाहिए |’

‘वो तो तुम्हे मील जायेगी मगर एक शर्त पर...!’ सरगमने भी शरारत करते हुए कहा |

‘कौन सी शर्त ?’

‘रात को तुम्हे मिलने आना होगा..!’ सरगम भी सूरज से अकेले मिलना चाहती थी |

‘मैं आजरात तो झिलमिल से मिलने का वादा करके आया हूँ...!’ सूरजने सरगम को चिढाते हुए कहा |

‘तो वो बांसुरी भी उसीसे ही ले लेना...!’ सरगम को सूरज की ये बात पसंद नहीं आई |

‘अच्छा बाबा, रात को जरुर मिलूँगा मगर वो बांसुरी मुझे अभी ही चाहिए...!’ सूरजने सरगम को वादा किया |

फिर तो सब मील के कोम्पिटीशन की तैयारी में मशगूल हो गए | सरगमने वो बांसूरी सूरज के हाथ में दी जो श्रीधरने सूरज को देने के लिए कहा था | सूरजने वो बांसुरी अपने हाथ में ली और श्रीधर को याद करके उसको बजाने के लिए अपने होठो से लगाईं | मगर क्या ? उसमे से कोई सूर अच्छी तरह से निकल ही नहीं रहे थे | सूरज को भी लगा की श्रीधर ऐसी बेसुरी बांसुरी कभी अपने पास नहीं रखता था और उसने ऐसी क्यों दी होगी ?

सूरज सोचमें डूब गया और उस बांसुरी के अन्दर देखा तो अन्दर कागज़ के कुछ टुकडे फंसे हुए थे | सूरजने वो बहार निकाले और देखा की उसमे श्रीधरने अपने हाथो से कुछ लिखा था | याने उस रात श्रीधर जो कहने आया था वो एक चीठ्ठी में लिखकर लाया था और वो चिठ्ठी बांसुरी के अन्दर रख दी थी |

सूरजने उसे जल्दी खोलकर पढ़ना शुरू किया...

चीठ्ठी के सबसे ऊपर नाम लिखा था,

‘दादाजी, सूरज और सरगम....!’

सूरज आगे पढ़ने लगा...

क्रमशः ...

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