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अच्छाईयां – ३०

भाग – ३०

छोटू और रंगा के लिए ऐसा दिन जिन्दगीमें शायद पहलीबार आया था की बड़ी होटल का बचाकुचा खाना नहीं मगर अन्दर बैठ के खाना मिला हो |

पहले सूप आया | छोटू और रंगा तो देखते रहे की ये क्या है ? सूरजने उसे पीने के लिए ईशारा किया | सूरजने चमच से कैसे पिते है वो बताया मगर छोटू और रंगाने एकसाथ पूरा कटोरा हाथ में उठाया और वो पीने लगे |

सामने के टेबल पे बैठा लड़का ये देखकर हंसने लगा | छोटू को पता नहीं था की वो क्यों हंस रहा था | छोटू और रंगा तो एक के बाद एक परोसे हुए तरह तरह के स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले रहे थे |

तभी मीठे रसीले गुलाबजामुन आते ही सूरजने छोटू से कुछ पूछताछ शुरू की, ‘तुम गुलाबो को कब से जानते हो ?’

‘अच्छा तो तुम्हे भी गुलाबजामुन पसंद है ?’ छोटूने पूछा |

‘मैं ईस गुलाबजामुन की नहीं, तुम्हारी दोस्त गुलाबो के बारे में पूछ रहा हूँ |’ सूरजने गुलाबजामुन की एक प्लेट छोटू की ओर की |

‘अच्छा तो ये गुलाबजामुन की पार्टी गुलाबो के लिए मील रही है ?’ छोटू भी उस्ताद था | इसलिए सूरज को इशारा करते हुए कहा |

‘नहीं... नहीं... ऐसा नहीं है, ये तो यूँ ही उसके बारे में पूछ रहा था | यदी तुम्हे पता नहीं है तो मैं चंदू से पूछ लूँगा....!’ सूरज को लगा की छोटू शायद चंदू चिकना की बात सुनके जरुर कुछ कहेगा |

और हुआ ऐसा ही, चंदू चिकना का नाम सुनते ही रंगा और छोटू दोनों कुछ पल सूरज को देखने लगे | छोटू बोला, ‘उस चंदू चिकना का तो नाम ही न लो...! वो गलत काम करता है... कल्लू दादा की बात भी नहीं मानता | एक बड़ा आदमी उसे मिलने कई बार आता है, मैंने उसे पैसे देते भी देता है | चिकनाने मुझे एकबार एक सफ़ेद रंग का चूरन दिखाया था और कहा था ये इस शहर की सबसे महंगी चीज है.... उसने कहा था की वो ड्रग्स था...! मैंने उसे समझाया था की तु ये छोड़ दे मगर वो किसी की नहीं सुनता |’

सूरज छोटू को देख रहा था, रंगा भी छोटू की बातो में हां में हां मिला रहा था |

‘ये काम में गुलाबो भी साथ देती है, क्या ?’ सूरजने फिर गुलाबो का नाम दिया |

‘नहीं... नहीं... वो ऐसा नहीं करती... मगर वो आदमी जो चंदू चिकना को पैसे देता है उसे मैंने कईबार गुलाबो के साथ देखा है |’ इसबार रंगाने कुछ सच्चाई बताई |

‘ये गुलाबो यहाँ कब से है ?’

‘पांच – छह महीनो से |’ अब सूरज और रंगा बात करने लगे तो छोटू देखता रहा |

‘और तुम क्या जानते हो रंगा ? ये छोटू तो ज्यादा नहीं जानता...!’ सूरज छोटू से भी कुछ जानना चाहता था |

‘मैं भी जनता हूँ...!’ छोटूने कहा |

‘क्या जानते हो?’

‘वो सुबह शाम कुछ वक्त वहां आती है | शाम को जल्दी चली जाती है | वो बच्चू या उसके आदमी आये तो उसे अन्दर के रूम में ले जाके पैसे देती है | मुझे वो अपना दोस्त मानती है | जब तुमने मुझे पुलिस से बचाया था तो उसदिन गुलाबोने मुझे सब पूछा था.. मुझे कुछ पैसे भी दिए थे और कहती थी की तुम ये काम मत करो... कल्लू को मना कर दो...! ’ छोटूने भी कुछ कुछ बाते बताई |

सूरज को लगा की अब उससे ज्यादा वो नहीं जानते होगे इसलिए उसने खाने पे ज्यादा ध्यान दिया | छोटू सब खा रहा था और रंगा को भी खीला रहा था | उससे लगता था की वो उसकी ज्यादा फ़िक्र करता था |

खाना ख़त्म हुआ और फिर फिंगर बाउल आये तो वो दोनों देखते रहे | छोटू को लगा की ये शायद खाने के बाद कुछ पीने के लिए आया होगा इसलिए उसमे रखे निम्बू को बहार रखा और कटोरा हाथ में ले के पीने लगा | रंगाने भी ऐसा किया तो सूरजने दोनों के रोका और समझाया की ये हाथ धोने के लिए है, पीने के लिए नहीं...!

छोटू और रंगा की इस हरकत को देखकर दूर बैठा लड़का हंस रहा था और अपने मम्मी पप्पा को उनकी बेवकूफी बता रहा था |

सूरजने दोनों के हाथ कैसे धोते है वो समझाया और उनको भी ऐसा करने को कहा |

‘हमारे वहां तो ठण्ड में भी नहाने के लिए गरम पानी नहीं होता और यहाँ खाने के बाद हाथ धोने के लिए गरम पानी...??’ रंगाने धीरे से छोटू को कहा तो दोनों हंसने लगे |

फिर आइसक्रीम आया तो दोनोंने मजे से खाया | मगर आखिर में सूरज के सामने देखकर छोटूने कहा, ‘ दोस्त, हमें इतनी बड़ी पार्टी दी, तुम्हारा खर्चा भी बहुत हुआ होगा.. और हमने तुम्हे कोई गिफ्ट भी नहीं दी |’

छोटू की ये बात सुनकर सूरज को हंसी आई मगर रोक दी और कहा, ‘ यदी तुम मुझे गिफ्ट देना चाहते हो तो एक काम करो इस शहर में एक संगीत का बड़ा कोलेज है वहा के स्टूडेंट्स को तुम जो ये पत्थर अपने हाथो से बजाते हो वो शीखाओ...!’

‘ये संगीत कोलेज.... याने सरगम संगीत विद्यालय तो नहीं ???’ छोटूने सूरज की बात सुनते ही तुरंत कहा |

‘हा.. वही... तुम गए हो पहले कभी वहां ?’ सूरजने पूछा |

‘हां... एक दिन मुझे गुलाबजामुनने ही वहां भेजा था..!’ इतना कहकर छोटू कुछ याद करने लगा |

‘गुलाबजामुन ने...?’ सूरज भी चौंक गया |

‘हां.. वहां कोई सरगम मेम है जो संगीत पढ़ाती है उसके पास भेजा था...!’ छोटू की याददास्त अच्छी थी |

‘सरगम के पास क्यों...?’ सूरज अब जानने के लिए बेताब हो गया |

‘मुझे एक चिठ्ठी लेकर भेजा था और कहा था की ये वहां संगीत के टीचर सरगम को देना और बिना कुछ बात किये वापस चले आना | मैं वो देकर वापस आया तब गुलाबजामुनने मुझे कुछ पैसे भी दिए थे |’ छोटूने ये कहा तो सूरज कुछ्देर चुप हो गया और सोचने लगा की शायद गुलाबो बड़ा खेल कल रही थी |

‘कौनसे दिन तुम गए थे वो याद है ?’सूरजने धीरे से पूछा |

छोटू फिर कुछदेर सोचमे डूब गया फिर बोला, ‘ तुम मुझे मिले थे उसके कुछ दिन पहले और हां.. वो टीचर वहुत अच्छा गाती है, मैंने उस दिन उनका गाना सुना था... जैसे तुम अच्छा बजाते हो वैसे वो अच्छा गाती है... तुम दोनों की जोड़ी अच्छी लगेगी...! गुलाबो से भी वो सुन्दर है..!’ छोटूने कुछ ज्यादा इसलिए भी कहा होगा की कोई गुलाबो के पास ज्यादा रहे वो उसे पसंद नहीं था |

सूरज का ध्यान छोटूने जो कहा की उसके शहर में आने से कुछ दिन पहले गुलाबोने सरगम को चिठ्ठी भेजी थी उसमे था | छोटू तो पढ़ नहीं शकता इसलिए उसको पूछना भी बेकार था की तुमने वो चिठ्ठी पढी थी ? मगर ये सच था की गुलाबोने सरगम को कुछ तो मेसेज भेजा था... और वो भी मेरे आने से पहले...!

‘उसी कोलेजमें हमें जाना है?’ छोटूने सोचमें डूबे हुए सूरज से कहा |

‘हाँ...और वही मेरी बर्थ डे गिफ्ट होगी |’ सूरजने मुश्कुराते हुए कहा |

‘हां... ये काम हम जरुर करेंगे... मगर गुलाबजामुन से ये मत बताना की वो चिठ्ठीवाली बात मैंने तुमसे कही है..!’ छोटू को ये बात किसी को नहीं कहने को शायद गुलाबोने कहा होगा इसलिए वो सूरज से कह रहा था |

फिर सूरजने खाने का बिल दिया तो छोटू और रंगा दोनों उन पैसो को देखने लगे | ‘ बापरे इतना ज्यादा पैसा..? और वो भी एकबार खाने के..? इतना पैसा जमा करने में तो हमें कई दिन लग जाते है |’ छोटू की आँखों से और लफ्जो से अपनी सच्चाई और नादानियत झलक रही थी |

बिल देने के बाद सूरज को उस होटल के मेनेजरने सूरज को दूर बुलाया और कहा, ‘ऐसे बच्चों को हम होटल के अन्दर आने नहीं देते मगर लगा की तुम बच्चो के लिए अच्छा कर रहे हो इसलिए बैठने दिया |’

सूरज कुछ कहना चाहता था मगर खामोशी से रंगा और छोटू को ले के होटल की बहार निकल गया....!

क्रमश: .......

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