Asatyam Ashivam Asundaram book and story is written by Yashvant Kothari in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Asatyam Ashivam Asundaram is also popular in हास्य कथाएं in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - उपन्यास
Yashvant Kothari
द्वारा
हिंदी हास्य कथाएं
इस बार महाशिवरात्री और वेलेन्टाइन-डे लगभग साथ-साथ आ गये। युवा लोगों ने वेलेन्टाइन-डे मनाया। कुछ लड़कियों ने मनाने वालों की धज्जियां उड़ा दी और बुजुर्गों व घरेलू महिलाओं ने शिवरात्री का व्रत किया और रात्रि को बच्चों के सो जाने के बाद व्रत खोला।
इधर मौसम में कभी गर्मी, कभी सर्दी, कभी बरसात, कभी ठण्डी हवा, कभी ओस, कभी कोहरा और कभी न जाने क्या-क्या चल पड़ा हैं। राजनीति में तूफान और तूफान की राजनीति चलती हैं। कुछ चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते, भटकते हुए भी कुछ नहीं होता। शिक्षा व कैरियर और प्यार के बीच लटकते लड़के-लड़कियां................।
मोबाइल, बाइक, गर्ल-फ्रेण्ड और बॉयफ्रेण्ड के बीच भटकता समाज..........।
जमाने की हवा ने बड़े-बूढ़ों को नहीं छोड़ा। तीन-तीन बच्चों की मांएं प्रेमियों के साथ भाग रही है और कभी-कभी बूढ़े प्रोफेसर जवान रिसर्च स्कालर को ऐसी रिसर्च करा रहे है कि बच्चे तक शरमा जाते हैं। गठबंधन सरकारों के इस विघटन के युग में पुराने गांवनुमा कस्बे और कस्बेनुमा शहरों की यह दास्तान प्रस्तुत करते हुए दुःख, क्षोभ, संयोग-वियोग सब एक साथ हो रहा हैं।
(व्यंग्य -उपन्यास) समर्पण अपने लाखों पाठकों को, सादर । सस्नेह।। -यशवन्त कोठारी 1 इस बार महाशिवरात्री और वेलेन्टाइन-डे लगभग साथ-साथ आ गये। युवा लोगों ने वेलेन्टाइन-डे मनाया। कुछ लड़कियों ने मनाने वालों की धज्जियां उड़ा दी और बुजुर्गों व ...और पढ़ेमहिलाओं ने शिवरात्री का व्रत किया और रात्रि को बच्चों के सो जाने के बाद व्रत खोला। इधर मौसम में कभी गर्मी, कभी सर्दी, कभी बरसात, कभी ठण्डी हवा, कभी ओस, कभी कोहरा और कभी न जाने क्या-क्या चल पड़ा हैं। राजनीति में तूफान और तूफान की राजनीति चलती हैं। कुछ चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते, भटकते हुए
2 जैसा कि अखबारों की दुनिया में होता रहता है, वैसा ही यशोधरा के साथ भी हुआ। अखबार छोटा था मगर काम बड़ा था। धीरे-धीरे स्थानीय मीडिया में अखबार की पहचान बनने लगी थी। शुरू-शुरू में अखबार एक ऐसी ...और पढ़ेसे छपता था जहां पर कई अखबार एक साथ छपते थे। इन अखबारों में मैटर एक जैसा होता था। शीर्षक, मास्टहेड, अखबार का नाम तथा सम्पादक, प्रकाशक, मुद्रक के नाम बदल जाया करते थे। कुछ अखबार वर्षों से ऐसे ही छप रहे थे। कुछ दैनिक से साप्ताहिक, साप्ताहिक से पाक्षिक एवं पाक्षिक से मासिक होते हुए काल के गाल में
3 झील के घाट पर एक प्राचीन मन्दिर था। क्यांेकि यहां पर, जल, मन्दिर और सुविधाएंे थी सो श्मशान भी यहीं पर था। झील मंे वर्षा का पानी आता है। गर्मियांे मंे झील सूखने के कगार पर होती थी ...और पढ़ेशहर के भू-माफिया की नजर इस लम्बे चौड़े विशाल भू-भाग पर पड़ती थी। उनकी आंखांे मंे एक विशाल मॉल, शापिंग कॉम्पलैक्स या टाऊनशिप का सपना तैरने लगता था। मगर वर्षा के पानी के साथ-साथ आंखांे के सपने भी बह जाते थे। झील मंे मछलियां पकड़ने का धन्धा भी वर्षा के बाद चल पड़ता था। जो पूरी सर्दी-सर्दी चलता रहता था।
4 कस्बे के बाजार के बीचांे-बीच के ढीये पर कल्लू मोची बैठता था। उसके पहले उसका बाप भी इसी जगह पर बैठकर अपनी रोजी कमाता था। कल्लू मोची के पास ही गली का आवारा कुत्ता जबरा बैठता था। दोनांे ...और पढ़ेपक्की दोस्ती थी। जबरा कुत्ता कस्बे के सभी कुत्तांे का नेता था और बिरादरी मंे उसकी बड़ी इज्जत थी। हर प्रकार के झगड़े वो ही निपटाता था। कल्लू मोची सुबह घर से चलते समय अपने लिए जो रोटी लाता था उसका एक हिस्सा नियमित रूप से जबरे कुत्ते को देता था। दिन मंे एक बार कल्लू उसे चाय पिलाता था।
5 हैडमास्टर साहब का काम पूरा हो चुका था। उन्हांेने देखंेगे का भाव चेहरे पर चिपकाया ओर शुक्लाजी ने कक्ष से बाहर आकर पसीना पांेछा। हैडमास्टर साहब शिक्षा के मामले मंे बहुत कोरे थे। वे तो अपने निजि सम्बन्धों ...और पढ़ेसहारे जी रहे थे, मैनेजमंेट, पार्टी पोलिटिक्स ट्रस्ट, अध्यापक, छात्र, छात्राआंे आदि की आपसी राजनीति उनके प्रिय शगल थे। विद्यालय मंे किसी प्रिन्सिपल की नियुक्ति की अफवाहों से वे बड़े विचलित थे। इस विचलन को ठीक करने का एक ही रास्ता था। मैनेजमंेट के मुख्य ट्रस्टी को अपनी ओर मिलाये रखना। मुख्य ट्रस्टी शहर के व्यापारी थे। उनके पास कई