असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 24 Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 24

24

प्रजातन्त्र, राजनीति, कुर्सी, दल, विपक्ष, मत मतपत्र, मतदाता, तानाशाही, राजशाही, लोकशाही, और ऐसे अनेको ष्शब्द हवा में उछलने लग गये । जिसे आम आदमी प्रजातन्त्र समझता था वो अन्त में जाकर सामन्तशाही और तानाशाही ही हो जाता था । हर दल में आन्तरिक अनुशासन के नाम पर तानाशाही थी, लोकतन्त्र के नाम पर सामन्तशाही थी ।

इन्ही विपरीत परिस्थितियों में हमारे कस्बे के नेताजी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे, वे राजनीति के तो माहिर खिलाडी थे मगर इस नई, उभरती हुई युवा पीढी के नये नेता कल्लू - पुत्र से पार पाना आसान नहीं था । उन्हें इन्हीं सब बातों के साथ - साथ पुरानी अपने जमाने की राजनीति की याद आ रही थी । चरखा, सूत, गांधी जी की नौआरवाली यात्रा, नेहरू जी का समाजवाद और पंचशील के सिद्धान्त । ष्शान्ती के कबूतर । चीन का हमला । तब राजनीति ष्शालीन थी । निजि आक्रमण नहीं थे । अब तो बस हर किसी को नीचा दिखाने के लिए कुछ भी किया या कराया जा सकता था । गांव हो या कस्बा या महानगर राजनीति एक क्रूर मजाक बन गई थी ।

नेताजी एकान्त के क्षणो में आत्मावलोकन, आत्म निरीक्षण करते थे । आज भी वे अपने एकान्त कक्ष में यही सब कर रहे थे । राजनीति में जिंदा रहने के लिये कितनो की हत्याऐं की । कितनी बार चाकू, छूरे, गोलियां चलवाई । कितने लोगो को राजनीति से सन्यास दिलवाया । कितने अफसरों को तबादले, निलम्बन, आदि के भय दिखाये । कहीं कोई लेखा - जोखा भी नहीं । लेकिन ष्शायद उपर वाले के, कम्यूटर में सब डेटा, सूचनाएॅं अवश्य होगी । उन्होनें सोचा । एक बार मन किया सब छोड़ छाड़ कर सन्यास ले ले । चले जाये हिमालय ऋपिकेश के किसी बाबा की ष्शरण में । मगर ये सब इतना आसान भी नहीं था । अपने पापों की सोच सोच कर उन्हें स्वयं अपने पर ग्लानि होती । यदि वे स्वयं की आत्मा को अपनी खुद की अदालत में खड़ा करे तो उन्हें ष्शायद कई प्रकार की सजाएं मिलेगी और इन सजाओं की कुल लम्बाई भी शायद कई जन्मों के बराबर होगी । व्यक्ति का सोच उसकी मजबूरियों और मजबूतियों के सहारे चलता है नेताजी ने अपने आप को संभाला । कल्लू -पुत्र से ऐसे हार मानना ठीक नही होगा । उन्हें संधर्प करना होगा । आखिर पूरी उमर उन्होने संघर्प ही तो किया था । फिर आज ये केसे विचार । उन्हें गीता और कृप्ण के उपदेश याद आये । वे स्वयं अर्जुन ओर यह चुनावी महाभारत नजर आने लगा । चुनावों में हार जीत की चिन्ता करना उन्हें अच्छा नहीं लगा । खूब राज किया । खूब ठाठ - बाट से जीवन बिताया । फिर किस बात का गम। किस बात का डर । कल तक जो छुटभैये पांव छूते थे वे ही आज कन्नी काट कर निकल रहे है, निकल जाने दो सालो को । कौन परवाह करता है । नये लड़के आयेंगे । नयी राह बनायेंगे । ये सब सोच साच कर नेताजी ने स्थानीय ब्लाक स्तर के अपने कार्यकर्ताओं को अपने महलनुमा भवन में सांयकालीन भोज हेतु आमन्त्रित किया कुछ अन्य लोगो को भी बुलवा भेजा । कुछ पत्रकार भी आ गये । नेताजी ने भोजन से पूर्व ही मिटींग ले ली । बोले

भाईयों । बहनो । प्रजातन्त्रका उत्सव आ गया है । हमें अपनी स्थिति को मजबूत करना है । विरोधी पक्ष खेल बिगाड़ सकता है । खेल बना नहीं सकता । खेल केवल हमारी पार्टी बना सकती है । मुझे आप सभी का सहयोग चाहिये ।

‘ हम तो वर्पो से आप के साथ है । ’

‘ ‘हां वो तो ठीक है मगर इस बार मामला थेाड़ा गम्भीर है । ’

न्ेाताजी आप तो मीडिया को मैनेज कर लो । जमीन से जुड़ने की चिन्ता छोड़ो । एक मंुह लगे पत्रकार बोल पड़े ।

नेताजी ने कुछ जवाब नहीं दिया । वे बोलते गये । प्रदेश और अपने क्षेत्र के विकास के लिए हमें आला कमान के हाथ मजबूत करने है और उसके लिए इस क्षेत्र की जिमेदारी मेरी है ।

‘ वो तो ठीक है, मगर आपने कभी भी द्वितीय स्तर का नेतृत्व विकसित नहीं होने दिया । - एक युवा नेता बोल पड़ा ।

‘ अरे भाई कौन मना करता है । आओ । काम करो । काम करने से ही नेतृत्व का विकास होगा । इतने वर्पोसे कार्यकर्ता कार्यकर्ता ही रह गया । ’

‘ हां भाई हां । सब को अवसर मिलेगा । ’’

नेताजी ने ठण्डे छीटे दिये ।

धीरे धीरे विरोध ष्शान्त हो गया । भोजन हुआ । अखबारों नेें फोटो छापे । स्थानीय चेनल पर समाचार आये । नेताजी में नया आत्मविश्वास आया । वे पूरे जोश जुनून से काम में लग गये । मगर कल्लू पुत्र भी कमजोर नहीं था । उसने एक नया पांसा फेंका । उसे कहीं से यह जानकारी मिली कि नेताजी के चारो तरफ जो लोग है वे भ्रप्ट, निकम्मे और आलसी है । उन्हें आसानी से बरगलाया जा सकता है । मौका आने पर उन्हें तोड़ा और अपने से जोड़ा जा सकता है । पैसा फेंक तमाशा देख कार्यक्रम ष्शुरू करवाया जा सकता है । अभी चुनाव की आचारसंहिता दूर थी ।कुछ पांसे फेंके सकते थे ं जुआं खेली जा सकती थी और किसी द्रोपदी का चीर हरण करवाया जा सकता था ं कल्लू पुत्र ने अपनी एक विश्वसनीय प्रेस पर नेताजी के चरित्र से सम्बन्धित पोस्टर छपवाये और एक काली रात में, शहर में ये पोस्टर लग गये । एक छुट भैये सम्पादक - प्रकाशक -पत्रकार ने अपने समाचार पत्र में पूरा पोस्टर ओर विवरण, अफवाह या समाचार जो भी आप कहना चाहे छाप दिया । नेताजी सुबह उठे तब तक हाहाकार मच चुका था । धर के बाहर ही जिन्दावाद के स्थान पर मुर्दाबाद के नारे लगाने वाले, थू - थू करने वाले एकत्रित हो कर चिल्ला रहे थे । मगर नेताजी धबराये नहीं उन्हें यह सब एक पडयन्त्र की तरह लग रहा था । सो उन्होने तसल्ली से पूरी बात अपने विश्वस्त मालिसिये की जबानी सुनी और समझी । समझ कर वे मन ही मन मुस्काये और नहाने चले गये । भीड़ धीरे धीरे छंट चुकी थी । कुछ गिने - चुने लोगों को सुरक्षा कर्मियों ने निकाल दिया था ।

न्ेाताजी नहा - धोकर बैठक में आये । पोस्टर को पुनः पूरा पढ़ा । अखबार भी पढ़ा, और चेले से बोले

‘ प्यारे ये सब क्या है ?

सर । ये तो विपक्षी पार्टी का स्थायी खटराग है । इससे पता चलता है कि उन्होने चुनाव से पहले ही हार मान ली है । .....खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे ।

‘ कभी ये कल्लू ओर उसका ये लेाण्डा मेरे चरणों में पड़ा रहता था । दिन भर में तीन बार चरण छूता था । घुटनो के ढोक देता था और आज । ’

‘ जाने दीजिये सर । ये तो सब खानदानी हरामी है जो अब जाकर राजनीति में आये है । ’

‘ मेरे चरित्र पर अंगुली उठाता है । ’ इसे मैं बताउगा । साला कहता है कि चाहो तो डी. एन. ए. टेस्ट करालो । नेताजी की आशिकी की पोल खुल जायेगी । अब उस बेचारी का क्या होगा? मेरा तो क्या है ?

‘सर । सुना है कोई सी. डी. भी बनवाली है ।

‘ सीडी - वीडी से क्या होना है । नेताजी ने कहां मगर मन ही मन डर गये थे नेताजी । कहीं सीडी आलाकमान तक पहुॅच गई तो क्या होगा ?

न्ेाताजी सोच में पड़ गये । काफी सोच विचार के बाद उन्होनें एक जबावी पासा फेंकने का तय किया । उन्होने एक प्रेसकान्फ्रेस बुलाई और कल्लू पुत्र के विश्कविधालय के दिनों का कच्चा चिठ्ठा खोला । इस कच्चे चिठ्ठे में लड़की की हत्या का आरोप भी नेताजी ने स्वयं ही लगाया हालाकि वे जानते थे कि इस आरोप से कल्लू पुत्र बरी हो चुका था । मगर पूरी पत्रावली और केस को पुनः खुलवाने की धोपणा उन्होने कर दी । अखबारों में सुर्खियां लग गई कल्लू पुत्र के हाथ - पावं फूल गये । दोनो पक्षों ने एक दूसरे की कमजोर नस पकड़ ली थी ।

कल्लू पुत्र ने नेता पुत्र के सहारे तथा अपने बाप की मदद से नेताजी के पास संदेसा भिजवाया ।

हजूर । माई बाप । गलती हुई । भविप्य में ध्यान रखूगां ।

इधर नेताजी ने कल्लू को कहा ‘ उसे समझा देना मेरे चरित्र पर कीचड़ नहीं उछाले । चुपचाप चुनाव लड़े । जो जीतेगा वो ही सिकन्दर कहलायेगा ।’ बस शालीनता से प्रजातन्त्र के नियमों की पालना करें ।

बेचारा कल्लू न तीन में न तेरह में, कल्लू पुत्र का जोश पार्टी के कारण बरकरार था । दोनों पक्षों ने व्यक्तिगत छीटाकंशी से किनारा कर लिया । चुनावों की माया अभी दूर थी ।

पार्टियों को जनाधार - धनाधार, तथा बाहुबली आधार की तलाश थी । कल्लू पुत्र ने इस घटनाक्रम से सबक सीखा कि राजनीति में कोई सगा नहीं और नेताजी ने सबक सीखा आस्तीन का सॉंप कब डस जाये कुछ पता नहीं ।

 

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राजनीति हो या अफसरशाही सब ज्योतिप, ज्योतिपियों,ग्रह, नक्षत्रों, के चक्कर में पड़ते रहते है । शुभ मुहूर्त शुभ फल, शुभ नग, शुभ ग्रह, शुभ समय कब और कैसे आयेगा, इसे हर कोई जानना चाहता है । बुध पुप्य नक्षत्र आ गया है । चले, बाजार । सोमवती अमावस्या चलो नहाने । सोम पुप्य चले सेवा करने । ज्योतिप का जंजाल धीरे धीरे फैलता ही जा रहा है । कभी केवल जन्म और ष्शदी के समय ग्रह, कुण्डली, दशा, महादशा, आदि पर विचार होता था । आजकल हर काम में ज्योतिपी की सलाह काम आती है । नेस्त्रेदेम्स ने जो अमर भविप्य वाणियां कर रखी है उससे आगे क्या है ? कीरो ने जो हस्तरेखा विज्ञान लिख दिया वो सबको नचाता है । हर बस, टेन, मोहल्ले में ऐसे स्वनामधन्य ज्योतिपी मिल जाते है जो आप को भवसागर की सैर करा सकते है । इधर मीडिया ने भी बहती गंगा में हाथ धोने के बहाने सभी प्रकार के ज्योतिपियों को छोटे पर्दे और मुद्रित माध्यम में उतार दिया है । दैनिक भविप्य फल, साप्ताहिक भविप्यफल, मासिक भविप्य, वार्पिक भविप्य, राशि के अनुसार भविप्य, टेरो कार्ड के अनुसार भविप्य, अंक ज्योतिप के अनुसार भविप्य, हस्तरेखा के अनुसार भविप्य । रत्नों, उपरत्नों, महारत्नों, अंगुठियों पर टिका है स्वयं ज्योतिपियों का भविप्य । ऐसे ही एक स्वनामधन्य पण्डित जी को नेताजी ने अपने आवास पर बुलाया ‘ पण्डित जी चुनाव का ज्योतिप क्या कहता है ?

‘ महाराज समय बडा़ बलवान है । आप अपने जीवन के स्वर्णिम काल का उपभोग कर चुके है ? ’’

‘ तो क्या मैं चुनाव हार जाउगा । ’’

‘ ऐसा तो मैंने नहीं कहां सर । ’

‘ तो फिर ........। ’

‘ फिर ये महाराज की इस बार आपके बड़े क्रूर ग्रह है और सामने एक नये जमाने का नया लड़का । ’

‘ तो क्या मेरा अनुभव कुछ नहीं .......।’

‘ सवाल अनुभव का नहीं ’ सवाल ये है कि उस कल्लू पुत्र के ग्रह उच्च के है ? हो न हो वह किसी सवर्ण की सन्तान है ..... । ’

‘ ये तुम्हे कैसे पता । नेताजी की जुगुप्सा जागी । ’

‘ अब सूर्य की गति को कौन टार सकता है । कल्लू की बीबी तो चली गयी यह संसार छोड़ कर । ल्ेकिन ऐसा उन्नत उर्वरा मस्तिप्क, विशाल अजान बाहू, गौर वर्ण क्या कभी किसी नीची जात में देखा है ।’

‘ नेताजी गम्भीर हो गये । ’

‘ तो पण्डित जी कोई उपाय । ’

है महाराज एक उपाय है, आप चुनाव में अपने कपूत बेटे को खड़ा कर दो ।

‘ मगर वह तो पहले से ही मेरे खिलाफ है । कल्लू पुत्र के गलबहि़यां डाल कर घूमता है। ’

‘ अब ये आप जानो महाराज । आप बुढा गये है । आपके ग्रह भी बूढ़ा गये है और आप का चुनाव जीतना भी मुश्किल है । आप चाहे तो अपने अनुभव का लाभ बच्चे को दे । आलाकमान भी ष्शायद आपको यहीं सलाह देगी । वैसे भी आप अस्सी पार कर चुके है । ’

‘ ये सब मुझे मत समझाओ पण्ड़ित । नेताजी क्रोध में भर गये । ’

पण्डित जी ने अपना पोथी, पथरा समेटा और बाहर आ गये । दक्षिणा में मिले नाश्ते की डकार आई मगर यह खट्टी ड़कार थी ।

नेताजी सोच -विचार में डूब उतर गये । चारों तरफ अन्धकार । पुत्र तक साथ छोड़गया । निराशा में उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था । राजनीति की ष्शतरंज पर वे हार मानने को तैयार न थे ।

ज्योतिपी यहां से निपट कर सीधा कल्लू पुत्र के आवास पर गया । वहां उसने कल्लू पुत्र के विजय तिलक किया । आशीर्वाद दिया । और बोला ..........

 

बेटे आज मैं भगवान शिव, गणेशजी और हनुमानज सभी की आराधना कर आया हूॅ और नेताजी को स्पप्ट कह आया हूॅ कि आप की जीत संभव नही है ।

हे कल्लू पुत्र विजयी भव ।

कल्लू ने आशीर्वाद लिया । पण्डितजी को भेंट चढ़ाई और बोला ।

‘ पण्डित जी अगर मैं जीत गया तो आपको किसी राजनीतिक कुर्सी पर बिठा दूगां ।

‘ वेा क्या होती है ? ’

‘ पार्टी अपने कार्यर्कताओं, दानदाताओं को छोटी - छोटी कुर्सियां बांटती है, एक आपकेा भी दिला दूगां । ’

‘ पण्डित जी ने तथास्तु कहा ओर चल दिये ।

कल्लू पुत्र ने नेता पुत्र को फोन लगाया । मगर नेतापुत्र अभी प्रातः कालीन क्रिया कलापो में व्यस्त थे । कल्लू पुत्र ने लम्बी सांस ली और चुनाव चकलस हेतु चेनलो की उलट - फेर ष्शुरू की । हर चेनल पर चुनावी विज्ञापन, नीचे भी उम्मीदवार का प्रचार । विशेपज्ञों की बकबक । नेताओ प्रवक्ताओं की झांय झांय । बीच बीच में विज्ञापन । या फिर अन्य कार्यक्रमों के प्रोमो । राखीसावन्त, और इस प्रकार की सैकड़ो अन्य कन्याओं के नृत्य, अभिनय, संवाद । कल्लू पुत्र ने सोचा चैनलो के मामले में हमने विदेशियों को भी पीछे छोड़ दिया ।

कल्लू पुत्र स्वयं के बारे में सोचने लगा । उसे सम्पूर्ण भारत में अपने जैसे करोड़ो किरदार दिखने लगे । भारत मेे रेलवे स्टेशन, बस स्टेएड, झूगी झाोपड़ियों में हर रहने वाला हर चेहरा उसका अपना चेहरा है । मजदूर, किसान, गरीब का चेहरा उसका चेहरा है । ज्योतिपी कुछ भी कहे संक्रमण के इस काल में भारतीय समाज खासकर निम्न मध्यवर्गीय भारतीय समाज की कहानी एक जैसी है । प्रत्येक समाज ओर प्रत्येक वक्यित आपस में जुड़कर सच्चाई का सामना करे तभी जीत हो सकती है । इस श्रेणीके लोगो में आदर्श, उत्साह, उमंग का मिश्रण है । धर्म, अध्यात्म, जाति, सम्प्रदाय सभी मिलकर ही जीवन की समस्याओं को हल कर सकते है । आम आदमी की इच्छा उसे बेहतर जीवन की ओर ले जा सकती है ।

वर्तमान युग की त्रासदी ही ये है कि जीवन विसंगतियों, विद्रूपताओं, कशमकश, कदाचार, रहस्य, रोंमाच से भरा हुआ है । हर व्यक्ति इस व्यवस्था से इस अराजकता से लाचार है । अराजक अव्यवस्था कहीं सब को लील न ले । चुनाव तो एक बहाना है प्रजातन्त्र को सही दिशा में ले जाने का । मगर कदम बहक क्यों जाते है कल्लू ने फिर नेता पुत्र को फोन मिलाया ।

कल्लू पुत्र ने नेता पुत्र की टेलीफोन की धंटी क्या बजाई, जैसे खुदकी घंटी बज गई । कल तक जो नेतापुत्र अपने पिता को गाली देकर उसकी गोद में बैठा रहता था वो ही आज कड़क आवाज में बोल पड़ा

‘ क्या है यार । सोने भी नहीं देता । सुबह से तू तीन बार धंटी बजा चुका है । और कोई काम - धाम नहीं है क्या ? नेता पुत्र उवाच ‘ काम का क्या है प्यारे । चुनाव के दिन है । काम ही काम है । बिनाहाथ - पैर - लाठी, बंदूक चलाये बिना बूथ छापे कोई काम होता है क्या ?तेरा भेजा कैसे फ्राई हो रहा है ? कल्लू पुत्र उवाच ।

‘ भेजा फ्राई नहीं अब ध्यान से सुन । डेड का टिकट केंसिल । अब मेरा नाम चल रहा है ।’

तो अब तू लड़ेगा मेरे से तू । मच्छर .............। जो मेरे टुकड़ो पर पल रहा है और मेरी राजनैतिक सीढ़ी के सहारे चढ़ रहा है । मैंने तेरे से वादा किया था तुझे कहीं किसी छोटी कुर्सी पर चिपका दूगां ।

‘ अब तू क्या चिपकायेगा । मुझे यदि टिकट मिल गया तो तेरी तो जमानत भी गयी । ’

‘ ये मुहं और मसूर की दाल ।

त्ूा भी अपना मुंह अच्छे साबुन से धो कर रखना तभी विधान सभा का मुंह देख पायेगा ।

क्यो मजाक करता है ? तेरी पार्टी में यदि तेरे बाप को टिकट नहीं भी मिलता है तो ओर पच्चासों है क्या पूरे गांव के सारे मर गये जो तेरा नम्बर आ रहा है । ....

मरे नहीं है, मगर बापू भी कम नहीं है मैं नही ंतो मेरा बेटा और बेटा नही ंतो कोई नही ।

 

‘ ये कैसी राजनीति है भाई ।

ये राजनीति - कूटनीति नहीं । राजनैतिक प्रपन्च है, गुण्ड़ा गर्दी है ।

‘ तो क्या तू वास्तव में मेरे खिलाफ लडेगा । ’

‘ अब ये तो विचारधारा पार्टी और प्रजातन्त्र की लड़ाई है । इसमें मित्रता - भाई बन्दी के लिए जगह नही होती । वैसे तुम मेरे विरोधी पार्टी में मित्र हो और मैं तुम्हारे हितों की रक्षा मेरी पार्टी में करूगां । ’

‘ ठीक है । ’

‘ हां ठीक है, मगर एक बात ओर चुनाव प्रचार में व्यक्तिगत या चारित्रिक आक्षेप नहीं लगायेगें।’

‘ ओ . के . डन. प्रोमिस । ’ ये कह कर उसने फोन रख दिया ।

राजनीति के इस परिदृश्य को आप क्या कहेगें श्री मान् ।

 

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चुनाव होगे तो चुनाव प्रचार भी होगा । चुनाव प्रचार होगा तो प्रचार में नित नये नये तरीके भी होगे । इस बार चुनाव प्रचार के लिए पार्टी के केन्द्रीय बोर्ड ने एक विज्ञापन एजेन्सी को अनुबंधित कर उसे चुनाव प्रचार की बागडोर सौंप दी । आश्चर्य की बात ये कि इसी विज्ञापन एजेन्सी ने पिछले चुनाव में विरोधी पार्टी का प्रचार किया था और उसे सत्ता में पहुॅंचा दिया था । एक अन्य राज्य में यहीं विज्ञापन एजेन्सी एक अन्य विरोधी पार्टी का प्रचार कर रही थी । पिछले चुनाव में इस विज्ञापन एजेन्सी ने उस राज्य में भी ऐसा धुआधांर प्रचार किया था कि सत्ता - धारी पार्टी की लुटिया डूब गई थी ।

वास्तव में विज्ञापन एजेन्सी को तो अपने व्यापार से मतलब है । पार्टी, विचार धारा, सिद्धान्त, समीकरण, गठबन्धन आदि से उसे क्या करना धरना है ।

एक विज्ञापन गुरू इस प्रकार के कार्यो में बहुत सिद्धहस्त थे उनहोने पार्टी की आलाकमान को प्रस्तुतिकरण देकर विज्ञापन का ठेका प्राप्त कर लिया । कभी एड गुरू के पिता एक धार्मिक पत्रिका चलाते थे, लेकिन पिता के जाने के बाद अब वे एक बडी विज्ञापन एजेन्सी चलाते है ।

विज्ञापन गुरू अक्सर सांय काल इधर उधर मिल जाते थे । प्रेसक्लब में दिन भर की थकान उतारते हुए बोले

‘ यार पूरी जिन्दगी गुजर गई । विज्ञापनो से तेल - साबुन बेचते बेचते। लोगो की संवेदनाओं से खेलते हुए । ’

‘ मगर एक बार मैं एक कैंसर पीड़ित बच्ची की संवेदना नहीं बेच सका । ’

‘ क्यों ? ’

मैंने पूरा प्रयास किया कि इस बीमार लड़की की मदद करूं । पैसा जुटा के मैंने विज्ञापन बनाया । दूरदर्शन, मुद्रित माध्यम में दिखाया मगर लोगों की संवेदनाओं को नहीं उभार सका । मुझे इस का दुख ताजिन्दगी रहेगा ।

‘ लेकिन आप जेसा महान विज्ञापन बाज असफल कैसे हो गया । ’

बस हो गया । पप्पू पास हो गया । कुछ मीठा हो जाये जैसे विज्ञापन बेचना आसान है एक बीमार, विकलांग को बचाने का विज्ञापन बेचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ।

लाइफबाय है जहां तन्दुरूस्ती है वहां क ेलेखक को कौन जानता है । ’ ’

सब विज्ञापनों की आंधी में उड़ जाता है । एड गुरू ने ष्शून्य में देखा । चश्मा साफ किया । दाढी़ पर हाथ फेरा। गिलास में पानी मिलाया । गटक गये ।

विज्ञापन की इस रंगीन, खूबसूरत, जवां दुनिया का अन्धेरा और दुख उनके चेहरे पर साफ साफ पढ़ा जा सकता है ।

चमचा पत्रकार विज्ञापन गुरू के पैसे से पी रहा था । पूछ बैठा

‘ इस बार का कैम्पेन कैसा होगा । ’

‘ कैम्पेन तो ष्शानदार ही होगा । ’ ष्शानदार फिल्मी सितारे । ष्शानदार विज्ञापन । जानदार भाव । आक्रामक तेवर । साम्प्रदायिक उन्माद । सब कुछ । ........कुल मिला कर हमारा ग्राहक ही जीतेगां ।

‘ च्ुानाव में केवल प्रचार के बल से नहीं जीत सकते सर । ’

‘ च्ुाप रहो । चुनावों में एक दो प्रतिशत वोटो को इधर - उधर करवा देना ही प्रचार का खेल है और इसी से सीटो में दस - पन्द्रह प्रतिशत का फरक पड़ जाता है । ’

‘और वैसे भी चुनावी सर्वेक्षणों पर रोक लगा दी गई है । ’

‘ हां ये तो है । ’

‘ तभी तो हमारा महत्व ओर बढ़ गया है । ’

‘ सर । विपक्षी ग्राहक ने भी कोई बड़ी विज्ञापन एजेन्सी पकड़ी है। ’

‘ हर एक को प्रयास करने का अधिकार है । अपन तो व्यापारी है । वे भी व्यापारी है । व्यापारी, व्यापारी आपस में लड़ते नहीं है । ’’

‘ हां आप ठीक कहते है । ’

‘ ओर सुनाओं पत्रकारजी जनताकी नब्ज क्या कहती है ।

‘ सोलिड ओर फिप्टी - फिप्टी । ’

‘ क्या मतलब ? ’

‘ सर । कुछ जगहो पर हमारी पोजीशन सोलिड है और बाकी स्थानों पर फिप्टी, फिप्टी ।

‘ ये फिप्टी फिप्टी क्या बला है ?

सीधा सा मतलब है इन स्थानों पर कांटे का मुकाबला है ।

बस इन्ही स्थानों पर चुनावी - प्रचार से स्थिति हमारे ग्राहक के पक्ष में हो जायेगी ।

यदि पार्टी सत्ता में आई तो आप को क्या लाभ मिलेगा ?

‘ हमें लाभ तो पहले ही मिल जायेगा । इस विज्ञापन - प्रचार का ठेका करोड़ो का है । ’

म्ुद्रित माध्यम और दृश्य - श्रव्यमाध्यम में सब पैसा हमें ही बांटना है ।

‘ वाह गुरू वाह ।

अबे साले चुप । चुपचाप पी ......खा और जा ।

पत्रकार ने मन ही मन एड- एजेन्सी के मालिक और एड गुरू को एक भद्दी गाली दी । अपनी दुकान समेटी और चला गया । विज्ञापन गुरू पीछे से चिल्लाया ’ ईश्वर इसे सद्बुद्धि दे या सद्गति । ’

 

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