असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 21 Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 21

21

पुस्तके जीवन है । पुस्तके मशाल है । हर पुस्तक कुछ कहती है । हर पुस्तक जीवन जीने की कला सिखाती है । पुस्तक प्रेम जीवन से प्रेम है । जैसे नारे जो सैकड़ो वर्पों से हवा में पुस्तक मेले में तैरते रहते थ्ेा वे सब हवा हो गये । उूपर से चैनल,टी. वी. इन्टरनेट कम्यूटर आदि ने पाठको का समय छीन लिया । चैन छीन लिया ।

पुस्तको में समोसे,दहीबड़े,और पानी पुरी घुस गई । साहित्य के बजाय कुकरी,फिटनेस,कताई - बुनाई साहित्य, सेक्स,हिन्सा,आदि की पुस्तकेा ने बाजार को ढ़क लिया ।

सब कुछ बदल गया । पुस्तक क्रान्ति एक भ्रान्ति बन गई । सरकारी खरीद के कारण पुस्तक प्रकाशको के गौदाम से निकल कर सरकार के गौदामों में बंद हो गई और पाठक तरसते रहे ।

 

ष्शहर को आंतकवादियों ने अपनी हिट सूची में ष्शामिल कर लिया था । समाचार पत्रों, ईमेल आदि के द्वारा आंतकवादियों ने खुले आम धमकियां देना ष्शुरू कर दिया गया था । पुस्तक मेले में भी एक लावारिस बेग एक साइकल पर पड़ा मिला था । जिसे पुलिस ने कब्जे में कर लिया था ।

पिछले दिनों जयपुर, बेंगलौर, हैदराबाद, अहमदाबाद, सूरत, बड़ौदा में भी आंतकी कार्यवाहियां हुई थी । पुलिस, प्रशासन, सी. बी. आई. आई. बी. आदि सरकारी एजेन्सियां नाकारा साबित हो रही थी । सरकार के रटे रटाये वक्तव्य जारी हो रहे थे । दोपियों को बख्शा नहीं जायेगा । दोपियों को पकड़ा जायेगा । मीडिया सरकार की जबरदस्त खिचांई करता,दूसरे दिन जीवन वापस उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ता । मीड़िया जनता की सहनशीलता की तारीफ करता मगर इस तारीफ से क्या हो ? जिस परिवार ने अपना खोया है उससे पूछेा दर्द क्या होता है ? आंतक क्या होता है?खून क्या होता है ? कुछ दिनो में सरकार चेक बांट देती । चेक बांटते नेताओं के समाचार -चित्र चैनलों,समाचार पत्रों में छप जाते और बस हो गया आंतकवाद से मुकाबला । फिर वहीं सरकार की,नौकरशाही की राजनीति की बेढगी चाल । एक तरफ चुनाव में टिकटों की मारामारी और दूसरी तरफ आंतक की निशाने बाजी ।

- बेचारेष्शुक्लाजी की कार ऐसे ही माहोल में चौराहे पर खड़ी थी,वे पास में खड़े थे कि एक भयकंर विस्फोट हुआ । रजिस्टार साहब और उनकी कार के परखचे उड़ गये । दूर दूर तक खून केवल लाल खून ....। एक के बाद एक ष्शहर में धमाके ........। चीख पुकार .....। घायल .....। अफवाहे .....। समाचार .........। ष्शहर कांप उठा । सरकारी कर्मकाण्ड । पुलिस की घेरा बन्दी । मृतकों को मुआवजा । घायलों का ईलाज । स्वयंसेवी सस्थाओं का योगदान ......। ष्शुक्लाजी के नाम पर विश्वविधालय में ष्शोक । ष्शोकसभा । वक्ताओं ने अपनी अपनी बात कहीं । दर्द की सबसे बड़ी चट्टान ष्शुक्लाईन की छाती पर आई । लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी । आंतक के साये में जीना क्या और मरना क्या ? हर तरफ एक अपना वीराना । कल तक जो चाटुकार थे । धर के बाहर हाथ बांधे खड़े रहते थे,वे ही नजरे फेर गये । अविश्वास का अन्धेरा छा गया । मगर आशा की डोर नहीं छोड़ी । ष्शुक्लाईन कर्मकाण्ड़ से निपट कर कार्यालय जाने लग गई । बेटा अलग फंसा हुआ था । लेकिन जीवन तो जीना था । जीवन है तो परेशानियां भी है । उसने सोचा विधवा जीवन की यहीं कहानी,सूनी कोख और आंखो में पानी । ’

ऐसे ही दुरूह समय में ष्शुक्लाईन को ड़ाक से एक पुस्तक मिली । जिसे पढ़कर उन्हें अच्छा लगा । पुस्तक आनन्द का सागर थी । पुस्तक एक विधवा की इच्छाओं पर आधारित वृहद उपन्यास की शक्ल में थी ।

श्री मती ष्शुक्ला ने सोचा ईश्वर क्या हैं ? भगवान कौन हैं ? साधु - सन्त,सन्यासी,ऋपि,मुनि,महाराज,कथा- वाचक,प्रवचनकार,र्कीतनकार सब कौन है और क्या चाहते है । सब ष्शायद अपनी अधूरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए धर्म - अध्यात्म का मार्ग ढूढते है । यह मार्ग भी भौतिकता से भरा पड़ा है । इसमें भी कुकर्मी है और सब कुछ छोड़ - छाड़ कर सन्त - महात्मा बनने वालों में भी धन -ऐपणा,यश - ऐपणा और पुत्र -ऐपणा किसी न किसी रूप में जीवित है । इन्ही ’ ऐपणाओं की पूर्ति के लिए वे जगत में नाना छल,प्रपन्च करते है । करते रहेंगे । करते थे ।

श्री मती ष्शुक्ला ने फिर सोचा छोटी छोटी इच्छाएं,छोटी छोटी कामनाएं,छोटी छोटी बाते मगर जीवन को ये कितना बड़ा बना देती है ।

साझ उदास थी । श्री मती ष्शुक्ला उदास थी । बेटा सांयकाल चला जाता । रात को तीन - चार बजे खा पीकर या पी खाकर आता और बाहर वाले कमरे में सो जाता । नौकरी वे छोड़ चुकी थी । अकेला पन । उदासी । और एकान्त में पुराने दिनों की यादों को ताजा करना । वे खिड़की से उठकर अपनी टेबल पर आ गई । अचानक ख्याल आया जीवन के बचे हुए समय में मुझे क्या करना चाहिये । यही सब सोचकर उन्होने एक कागज पर अपनी छोटी छोटी अपूर्ण इच्छाओं को लिखना ष्शुरू किया । प्रारभिक जीवन में जो कुछ छूट गया था उसे पकड़ने की कोशिश की । उसे पूरा करने की एक जिद श्री मती ष्शुक्ला में दिखाई दी । उन्होने लिखा -

1 . एक ष्शानदार जूतों की जोड़ी खरीदनी हैं ।

2 . कढ़ाई,बुनाई,सिलाई जो बचपन में नही सीख सकी उसे ष्शीघ्र सीखने की कोशिश करूंगी ।

3 . किसी स्वयं सेवी सस्ंथा,स्कूल के बच्चों के साथ दोपहर का भोज और बच्चों की भोज में सहायता करना चाहूॅगी ।

4 . जीवन के बारे में एक अच्छी बात को खोज करने का प्रयास करूगी ।

5 . जीवन में हॅंसने के क्षणों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करूगीं ।

6 . गाना गाने का प्रयास फिर से करूगीं एक नृत्य सीखने का प्रयास भी करूगीं ।

7. एक पियानो खरीद कर गाने - नाचने का अभ्यास करूगीं ।

8. बहुत अधिक यात्राएं करूगीं मगर धार्मिक यात्राओं से बचने का प्रयास करूगीं ।

9. किसी पार्क में जाकर ढ़लते हुए सांयकालीन सूर्य को तब तक निहारूगीं जब तक वो अस्त नहीं हो जाता ।

10. प्रेमचन्द का सम्पूर्ण साहित्य पुनः पढूंगी ।

11. जूड़ो - कराटे सिखूगीं । योगाभ्यास करूगीं अपना वजन नहीं बढ़ने दूगी ।

12. शेप भौतिक जीवन आनन्द से गुजारूगी ।

श्री मती ष्शुक्ला ने ये इच्छाएं कागज पर उतार ली । उन्हें बार बार पढ़ने लगी । उन्हें लगा कि जीवन कितना ही छोटा हो, व्यक्ति उससे बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है । हर दिन किसी कोने में छुपा बैठा अन्तर्मन उसे कोई न कोई प्रेरणा अवश्य देता रहता है । उन्हें बेटे की कोई फिकर नहीं थी । जवान है । पैसा है । कुछ भी करो । वैसे भी नई पीढी को क्या चाहिये । ऐश । उन्होनें फिर मन में कहा बेटे डू ऐश बट डुनोट विकम ऐश .............। श्री मती ष्श्ुाक्ला ने विचारो को मोड़ा । साझ गहरा गई थी । सर्दी बढ़ने लग गई थी । वे कमरे में आ गई । तभी टेलीफोन की घंटी बजी

‘ हेलो ।’

‘ हेलो । मैं अस्पताल से बोल रहा हूॅ । आपक बेटा दुर्धटना में घायल हो गया है । हालत नाजुक है । आप जल्दी आये ।

श्री मती ष्शुक्ला के हाथ - पांव फूल गये । वे अस्पताल भागी । लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी,शुक्ला जी की तरह उनका बेटा भी उन्हें अकेला छोड़ कर चला गया था । वो रोई । पीटी । लेकिन सब सामाजिक दायित्व निभाये ।

श्री मती ष्शुक्ला इस दोहरे दुख से अन्दर तक टूट गई थी । मगर हिम्मत रखी । वे फिर उसी खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई ।

उदास संाझ । उदासी से भरपूर बादल । सूर्य अस्त हो रहा था । क्षितिज पर उदासी थी । श्री मती ष्शुक्ला ने आंखों में घिर आये आंसूओं को पोंछा ओर टेबल पर फड़ फड़ते कागज को पुनः पढ़ा । उनकी अधूरी इच्छाओं का कागज लगातार फड़फड़ा रहा था ।

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विशाल का प्रापर्टी बेचने - खरीदने का दफतर । दफतर में कर्मचारी । सब खुश । मानव संसाधन विभाग ने एक ई -चिठृठी भेजी,कल कार्यालय में आधा दिन का अवकाश । लंच के बाद पार्टी । पार्टी में सब का आना-होना आवश्यक । सब लंच यहीं करेगें । ई चिठ्ठी ने सब को खुश कर दिया । मस्ती का माहौल हो गया । लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है,सब यह जानने को बैचेन थे, मानव संसाधन विभाग भी बेताब था ।

आखिर में विशाल की निजि सचिव ने रहस्य खोला - अपनी कम्पनी के दस वर्प पूरे हो गये है । पिछली बार आयकर विभाग ने जो सर्वे किया था उसमें भी कम्पनी को क्लीन -चिट मिल गई है ।

‘ मेडम क्लीन चिट दिलाने में लेखाधिकारी का भी तो योगदान रहा होगा ।

‘ हां हां बिलकुल ’ सब की मेहनत से सब ठीक ठाक हो गया है । विशाल सर ने वित्त मंत्रालय,दिल्ली तथा कम्पनी मंत्रालय के उच्च अधिकारियों से बात की । ’

‘ अच्छा फिर ’

‘ फिर क्या । मंत्रालय के उच्च अधिकारियों के सामने स्थानीय आयकर वाला क्या बोलते । बेचारे चुप लगा गये । ’

‘ लेकिन इस चमत्कार में कम्पनी का काफी पैसा खरच हो गया होगा ।

‘ हां हां क्यों नहीं । पैसा कम्पनी के हाथ का मेल है । ’

‘ मैडम इस ष्शुभ समाचार में क्या ‘ कम्पनी अपने कर्मचारियों के लिए भी कुछ करेंगी । ’

‘ क्यों नहीं कम्पनी अपने वफादार कर्मचारियों को कैसे भूल सकती है । ’ कर्मचारियों को अतिरिक्त कृपा - राशि का भुगतान किया जायेगा ।

‘ और । ’

‘ ओर । और जिन लोगो ने कम्पनी के खाते बनाये । लेखा,आडिट सीए. आदि को अतिरिक्त वेतन व वृद्धि दी जायगी । हर -एक को कुछ न कुछ मिलेगा । विशाल सर पार्टी में घोपणा करेंगे ।

पार्टी का दिन आ गया । सब सजे - धजे दफतर में पहुॅच गये । लंच के पहले भी कोई काम- धाम नहीं हुआ । बादमें तो पार्टी थी ही । कर्मचारी विशेप कर महिला कर्मचारी बहुत खुश थी, कुछ तो अपने लाड़ले बच्चों को भी पार्टी में ले आई थी । पार्टी ष्शुरू होने के ऐन पहले विशाल सर ष्शानदार सूट में अवतरित हुए । कर्मचारियों ने तालिया बजाकर उनका स्वागत किया । स्वागत भापण में विशाल ने कहा -

मित्रों ’ आज से ठीक दस वर्प पहले मैं गांव से यहां आया था । छोटी - मोटी दलाली का काम करता था । ईश्वर पर मुझे अटूट विश्वास था । मैंने जमीनो के धन्धे में हाथ डा़ला । भगवान ने मेरा हाथ पकड़ा । मैंने स्थानीय नेताओं की मदद से पहली टाउन शिप बनाई । बेची । विकास प्राधिकरण, ष्शहरी विकास विभाग, नगर निगम सभी को यथा योग्य नेगचार दिया । भेंट पूजा चढ़ाई,प्रसाद बांटा । हर पत्रावली पर,पेपर वेट रखा । चान्दी के पहिये लगवाये और आज इस कम्पनी का यह स्वरूप आप देख रहे है ।

एक ओर खुशखबरी आप सभी को देना चाहता हूॅ ’ सेज का जो प्रोजेक्ट हमने भेजा था उसे पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिल गया है । ष्शीघ्र ही आगे की कार्यवाही होगी । सभी ने फिर तालियां बजाई । विशाल ने फिर घोपणा की

‘ कम्पनी के सभी व्यक्तियो को अतिरिक्त बोनस के रूप में राशि मिलेगी । सब अपने चेक ले । पार्टी का आनन्द ले ।

पार्टी की बहार हो गई । कर्मचारियों की मौज हो गई ऐसे में कर्मचारियों में खुसर - पुसर शुरू हुई ।

‘ अरे इस विशाल से क्या होता जाता हैं? सब ससुराल वालो की कृपा है ।

‘ पूरा घर जमाई है । ’

ल्ेकिन खूब पैसा बना रहा है ।

ब्ेाचारे कर्मचारियों को मामूली बोनस। क्या करे । अपनी अपनी किस्मत लेकिन दस वर्प में फर्श से अर्श तक सफर तय करना आसान नहीं ।

‘ सर पर नेता और अफसर हो तो सब कुछ आसान हो जाता है ।

ल्ेकिन देखो कम्पनी की जनसम्पर्क अधिकारी को कितनी लिफट दे रखी है ।

‘ बेचारी चारों तरफ सम्बन्ध बनाये रखती है । सुना है आयकर वाले मामले में भी बड़ी दौड़ भाग की थी ।

‘ हां हमने तो ये भी सुना हैकि सारा लेन - देन इसी ने किया । ’

‘ तो बीच में .......।

अब थोड़ा बहुत तो हर जगह चलता है । कम्पनी को करोड़ों की बचत -लाखों का खरचा । सब ठीक ही है । ’

‘ और फिर हमें क्या ? हम कम्पनी के मामूली कर्मचारी है । समय से काम समय से दाम । लेकिन सेज तो दस हजार करोड़ का प्रोजेक्ट होगा ।

‘ हां इतना तो होगा हीं ।

फिर तो कम्पनी स्टाक मार्केट में जायेगी ।

‘ और भी अच्छी बात है ।

चलो पार्टी में खाते है ।

कर्मचारियो की चकचक चलती रहती है । पार्टी भी चलती रहती है।

‘ ये लड़कियां काम तो कुछ करती नही ंहैं ।

‘ खूब काम करती है भाई,लेकिन दफतर में चहकती रहती है । अच्छे कपड़े पहन कर आती है,इस कारण हम सभी भी स्मार्ट बन कर आते है । ये काम क्या कम है? और महिलाएं .............पार्टी में उन से ही रौनक होती है । एक अन्य कौने वे भी खिलखिला रही है । बतियां रही है । फैशन,माडल, फिल्म,ज्वेलरी,कपडों,सिरियलो पर अत्यन्त गम्भीर चर्चा कर रही है । म्यूजिक बजा । पांव थिरके । डा़स हुए । पार्टी देर रात तक चलती रही ।

विशाल जल्दी चला गया था मगर उसका दिल बैचेन था । ये सफलताएं किस कीमत पर ? ये सब क्यों ? ष्शीर्प पर रह कर अकेलापन । उदासी । वह सोचता सोचता कब सो गया उसे खुद पता नहीं ।

 

कस्बे के छोटे अखबार कभी कभी बड़ा काम कर देते थे ।इन अखबारों को सामान्यतौर पर लीथडे - चीथड़े पेम्फलेट,दुपन्नीया,चौपन्नीया कहने वाले पाठक भी जब कभी कुछ अच्छा पढ़ लेते तो कृताथर््ा हो जाते । पत्रकार - सम्पादक स्वयं को दैनिक,साप्ताहिक,पाक्षिक या मासिक का मालिक सम्पादक बनाते और सफेद झक्क कपड़ेा में रहते । डनहिल सिगरेट पीते,महंगे होटलों में महगी ष्शराब और महंगे डीनर करते । गम उनको भी बहुत होते थे मगर आराम के साथ । प्रजातन्त्र व अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का असली मजा तो कस्बाई अखबार ही लेते थे ।

एक ही प्रेस से छपते पच्चीसों दैनिक,साप्ताहिक,पाक्षिक एक - दो पन्नों के ये अखबार स्थानीय नेताओं,अफसरों,व्यापारियों,उधोगपतियों आदि का भविप्य,भूत,वर्तमान बनाने - बिगाड़ने - संवारने का महता काम करते थे । एक मित्र सम्पादक ने राज की बात खोली ।

‘ यार मेरा तो साप्ताहिक पत्र है। कस्बे के बावन बड़े, प्रतिप्ठित,इज्जतदार लोगों की सूची बना रखी है, रविवार सुबह किसी एक को फोन करता हूॅ,और कहता हूॅ, मेरा खरचा इतना है और अखबार का इतना । सोमवार सुबह या अधिक से अधिक ष्शाम तक सारी राशी मुझे मिल जाती है । अखबार और घर का काम चलता रहता है । मैं सोमवार का व्रत रखता हूॅ । पीने - खाने,शबाब से परहेज करता हूॅ,मगर व्रत पानी से तोड़ता हूॅ । सब ठीक - चलता रहता है । सम्पादकजी ने आगे कहा ’-यार साल में एक व्यक्ति का नम्बर एक बार आता है,कोई मना नहीे करता । इस प्रकार मै काली लक्ष्मी का सदुपयोग कर लेता हूॅ । वैसे भी मीडिया इज कम्पलीटली मैनेजेबल । कह कर सम्पादक जी ने अपना गिलास खाली कर दिया ।

इस सप्ताह के लिए सम्पादकजी ने विशाल को फोन किया था,मगर किसी कारण वश या अहंकार वश या इमानदारी के चलते विशाल सोमवार ष्शाम तक सम्पादकजी की सेवा करने में असमर्थ रहा । अगला अंक जो छपा वो विशाल के सेज प्रोजक्ट के कारण किसानो में आक्रोश पर केन्द्रित था । वैसे किसानों में आन्दोलन,आक्रोश नहीं था, मगर सम्पादक जी ने अपने तथा अन्य पत्रों में इस समस्या को इतना बढ़ा -चढ़ाकर बताया कि सेज में निवेश को आतुर उधोगपति पीछे हट गये । एक कम्पनी ने तो अपना उधोग अन्यत्र लगाने की घोपणा कर दी ।

एक किसान ने अपनी जमीन जबरन ग्रहण करने पर आत्महत्या की धमकी दी । छुट भैया नेता अपनी फसल काटने लगे । ़ ं मीडिया ने मामला स्थानीय,से प्रादेशिक और प्रादेशिक से राप्टीय कर दिया ।विशालको अपनी गलती का अहसास हुआ । मगर अब क्या हो सकता था ।

ऐसी पवित्र स्थिति में कुछ अपवित्र कार्य करने पड़ते है । विशाल पत्नी के साथ नेताजी के बंगले पर हाजरी बजाने पहुॅचा । नेताजी ने मिलने से मना कर दिया, विशाल के पांव तले की जमीन खिसक गई । इधर निवेशकों के भाग जाने से विशाल की हालत खराब हो गई । विशाल ने राजधानी के अपने तारों को हिलाया । परखा । जांचा । कुछ ने आश्वासन दिया । कुछने वायदे किये । कुछ ने अपनी कीमते बताई । कीमंत सुन कर विशाल फिर गच्चा खा गया । स्थ्तिियां इतनी बिगड़ जायेगी ऐसा विशाल को पता न था । उसने फिर माधुरी की सेवा में हाजरी दी । माधुरी ने भी आश्वासन ही दिये । उसे भी जो जमीन मिली थी वो वादे के अनुरूप नहीं थी । लेकिन मुसीबत में पड़े विशाल के प्रति कुछ दया भाव कुछ ममता और कुछ भविप्य को ध्यान में रखकर वे विशाल को लेकर नेताजी की कोठी पर हाजिर हुई ।

न्ेाताजी मिले । मगर विशाल की तरफ नहीं देखा । विशाल ने चरण छू लिये । नेताजी का दिल पसीजा ।

‘ सर मुझे इस मुसीबत से बचाईये ।

‘ ये तुम्हारा खुदका किया - धरा है । अरे तुम्हारी कम्पनी इतना कमा करी रही है । कुछ दान,पुण्य,भेंट,नेग -चार,प्रसाद बांटा करो । बेकार में तुमने एक बुजुर्ग, वयोवृद्ध सम्पादक को नाराज कर दिया । मुझे सब पता है । तुम ने गलती की है ।

विशाल ने चुप रहने में ही बहादुरी समझी ।

माधुरी ने भी उसे चुप रहने का ही संकेत किया ।

‘ अब क्या होगा ! ‘ सर ?’

‘ हेागा मेरा सिर ! ’

‘ किसी छोटे किसान से यह वक्तव्य दिलाओं कि सेज में मेरे दो लड़को को नौकरी मिली थी, यदि सेज चला गया तो मैं ओर मेरे जैसे सैंकउ़ो लोग बर्बाद हो जायेंगे । भूखे मर जायेंगे । मुआवजा कितने दिन चलेगा । ’ ’

और ! ......

और क्या ऐसे सौ -पचास लोगो को एकत्रित करके जुलुस निकलवाओ,धरना दो, प्रदर्शन करो । मीडिया - अखबारो में अपनी बात पहुॅचाओं । ’ ’

धीरे धीरे समाज की समझ में आना चाहिये की सेज आवश्यक है, यदि ये बात समझ में आ गयी तो सेज को सरकार भी पुनः समर्थन पर विचार करेगी ।

हां ये कोशिश मैं कर लूंगा । विशाल बोला,मगर माधुरी ने कहा ’

‘ ये सब आसान नहीं है सर ।’

ये बात भी फैलाओं कि सेज से एक लाख रोजगार मिलेंगे । सड़क,भवन,गार्डन,माल,मल्टीपलेक्स बनेगे । जीवन स्तर उूंचा उठेगा । ’’

ल्ेकिन ये राजनैतिक पार्टियों के वक्तव्य ?

‘ ये सब ऐसे ही चलता रहेगा ।

तुम पार्टी फण्ड में पैसा जमा करा कर मुझसे बाद में मिलना । तब तक मेरे बताये अनुसार काम करते रहना । ’

ये कहकर नेता जी चले गये । माधुरी और विशाल बाहर आये ।

कार में माधुरी ने भी अपनी कीमत मांग ली सेज के आ.ई टी. सेक्टर में एक विकसित क्षेत्र । विशाल ने हां भरी ।

विशाल ने माधुरी को छोड़ा । कम्पनी आया और छोटे किसानो को मीडिया के सामने पेश किया ।

मीडिया के दोनों हाथें में लड्डू हो गये ।

 

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