Kabhi Alvida Naa Kehna book and story is written by Dr. Vandana Gupta in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Kabhi Alvida Naa Kehna is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता सारांश प्रस्तुत उपन्यास मुख्यतः प्रेम के धरातल पर लिखा गया है। संयुक्त परिवार में रह रही नायिका जब नौकरी करने दूसरे शहर में जाती है, तब बदलते परिवेश में किस तरह खुद ...और पढ़ेसमंजित करती है। विभिन्न पात्रों के माध्यम से अलग अलग
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 2 सुबह जिस उत्साह से निकली थी नौकरी जॉइन करने, शाम को घर पहुँचने तक वह थकान की भेंट चढ़ चुका था। पतझड़ का मौसम शुरू हो चुका था। मेरा मिजाज शुरू ...और पढ़ेही कॉम्प्लिकेटेड रहा है। मसलन लोगों को बहार पसन्द है और मुझे हमेशा से पतझड़ आकर्षित करता रहा है। शायद लोगों की सोच से परे हटकर सोचना ही इसकी वजह हो सकती है। सभी अपने आज में जीते थे और मैं जो पास है उसे खोने के डर से आज को एन्जॉय ही नहीं कर पाती। एक असुरक्षा की भावना
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 3 रोते रोते हिचकियाँ बन्ध गयीं। दम घुटने लगा और मैं अचकचा कर उठ बैठी। माँ नहीं थीं मेरे आसपास... "ओह! यह एक सपना था... थैंक गॉड..." घड़ी पर नज़र पड़ते ही ...और पढ़ेबेड से कूद पड़ी... "अंशु! मुझे जगाया क्यों नहीं, बस निकल जाएगी और मैं लेट हो जाऊँगी.." चिल्लाती हुई मैं बाथरूम में घुस गयी। ब्रश करके आयी तब तक अंशु चाय लेकर आ गयी थी। "रिलैक्स माय डिअर दीदी... संडे को छुट्टी होती है।" इतना रिलैक्स तो मैंने परीक्षा के बाद भी फील नहीं किया था। साड़ी नहीं पहननी है,
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 4 "अरे वैशाली! तुम यहाँ कैसे...?" उस स्मार्ट बंदे के पीछे से राजेश नमूदार हुआ और मैं सपनों की दुनिया से बाहर आ गयी। राजेश, मेरा बैचमेट था, पर कभी ज्यादा बात ...और पढ़ेहुई, दोस्ती भी नहीं थी, बस एक बैचमेट से कम से कम होने वाला परिचय मात्र। मुझे उसकी अक्ल और शक्ल दोनों ही नापसंद थे। उसे देख मेरे दिल को गुस्सा आया किन्तु दिमाग ने समझाया कि अनजान जगह अपरिचितों के बीच एक न्यूनतम परिचय भी काफी राहत देता है। पहली बार घर से बाहर और शहर से दूर, अनजाने सफर पर
कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 5 उस एक पल मेरे मन में पता नहीं कितने भाव आए और गए... इंतज़ार खत्म होने की खुशी, बूढ़े अंकल को सीट देने पर खुद पर ही गुस्सा और सुनील के ...और पढ़ेआने की वजह जानने की उत्सुकता…. हाँ जल्दी आने की क्योंकि बैंक का वर्किंग टाइम अभी चल रहा था। "सॉरी विशु! लेट हो गया, माफ कर दो.." उसने मेरे सामने होंठों को तिरछा कर एक आँख झपकायी और कान पकड़ लिए। एक पल को मैं भी भूल गयी कि हम बस में हैं, मैंने गुस्सा होने की एक्टिंग करते हुए खिड़की की