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कुबेर - उपन्यास
Hansa Deep
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
“कुबेर का ख़जाना नहीं है मेरे पास जो हर वक़्त पैसे माँगते रहते हो।”
माँ की इस डाँट से चुप हो गया वह, कह नहीं पाया कि वह क्यों पैसे माँग रहा है। उसे तो कॉपी-पेंसिल के लिए कुछ पैसे चाहिए थे। जानता है कि माँ के पास कुछ है नहीं, घर में राशन भी नहीं है, इसीलिए नाराज़ होकर कह रही हैं। माँ की फटकार को सुनना और चुप रहना इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। बालक धन्नू समझ ही नहीं पाया कि दस-बीस रुपयों में ख़जाना कैसे आ जाता है बीच में, यह ख़जाना कहाँ है और क्या इसमें पैसे ही पैसे हैं, कभी ख़त्म न होने वाले। अगर यह सच है तो - “माँ के लिए एक दिन यह ख़जाना हासिल करके रहूँगा मैं।”
नन्हीं सोच को विस्तार मिलता ताकि माँ फिर कभी यह दोहरा नहीं पाए।
कुबेर डॉ. हंसा दीप 1 “कुबेर का ख़जाना नहीं है मेरे पास जो हर वक़्त पैसे माँगते रहते हो।” माँ की इस डाँट से चुप हो गया वह, कह नहीं पाया कि वह क्यों पैसे माँग रहा है। उसे ...और पढ़ेकॉपी-पेंसिल के लिए कुछ पैसे चाहिए थे। जानता है कि माँ के पास कुछ है नहीं, घर में राशन भी नहीं है, इसीलिए नाराज़ होकर कह रही हैं। माँ की फटकार को सुनना और चुप रहना इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। बालक धन्नू समझ ही नहीं पाया कि दस-बीस रुपयों में ख़जाना कैसे आ जाता है बीच
कुबेर डॉ. हंसा दीप 2 धन्नू के जवाबों से साफ़ ज़ाहिर था कि गाँव की सरकारी शाला में क्या हो रहा है। उसके पकड़मपाटी के खेल में किसी ने किसी को पकड़ लिया था। जाँच के आदेश भी दिए ...और पढ़ेथे कि – “आख़िर क्यों स्कूल में खाना नहीं दिया जा रहा है जबकि ‘मिड-डे मील’ के नाम पर एक बड़ी राशि वहाँ जा रही है। जाते-जाते बीच में कितने जंक्शन स्टेशन हैं जहाँ पर यह राशि टौल टैक्स भरती जा रही है कि स्कूल तक पहुँचते-पहुँचते कुछ भी नहीं बचता।” “खाना भी नहीं, पढ़ाना भी नहीं तो आख़िर यह
कुबेर डॉ. हंसा दीप 3 नींद की राह तकते अनींदे बच्चे को बहुत याद आती माँ की और सोचता रहता माँ के बारे में, लेकिन साथ ही साथ वह पीठ पर पड़ी मार भी याद आती थी जिसकी चोट ...और पढ़ेबच्चे के ज़ेहन से जा नहीं पाती। बहुत गुस्सा था। इतना गुस्सा न जाने किस पर था, ख़ुद पर था, नेताजी पर था, बहन जी पर था या फिर माँ-बाबू पर था मगर था तो सही और बहुत गहरा था। घर से भागे किसी भी भूखे बच्चे के लिए रास्ते के ढाबे शरणगाह बनते हैं। ऐसे होटल में काम करना
कुबेर डॉ. हंसा दीप 4 और सचमुच इस तरह दूसरों का काम भी धन्नू अपने ऊपर ले लेता ताकि कोई भी किसी तकलीफ़ में न रहे। एक बार जब बीरू की उँगली कट गयी थी तब उसका सारा काम ...और पढ़ेने ही सम्हाला था। तब से आज तक बीरू उसे भाई कहता था और उसने कभी अपने भाई को किसी शिकायत का मौका नहीं दिया था। धीरे-धीरे बीरू और छोटू भी धन्नू का ध्यान रखने लगे जिसके बोए नेह के बीज धीरे-धीरे अंकुरित हो रहे थे। यूँ अपनी सहृदयता से सबके मन में उसके लिए जगह बनने लगी थी। यदा-कदा
कुबेर डॉ. हंसा दीप 5 वह वहीं बैठ गया पत्थरों के टीले पर। एकटक ताकता रहा शून्य में। स्तब्ध आँखें झपकना भी भूल गयी थीं। उसके जाने के चार महीने के अंतराल से माँ-बाबूजी दोनों चले गए थे। धन्नू ...और पढ़ेव्यथित हुआ कि आँखों से दो आँसू भी नहीं बहे लेकिन भीतर बहुत कुछ बहता रहा। दु:ख की चरम सीमा क्रोध को जन्म दे ही देती है, वही हुआ धन्नू के साथ। इतना दु:खी था कि अपनी पीड़ा को सम्हाल नहीं पाया। ख़ुद पर गुस्सा था, बहुत ज़्यादा। एक पत्थर हाथ में और दूसरा ज़मीन पर। उस पत्थर को कूटता