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कंचन मृग - उपन्यास
Dr. Suryapal Singh
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
स्कन्द पुराण में बुन्देलखण्ड का नाम राज्य के रूप में जुझौती उपलब्घ होता है। इसमें 42000 गाँव सम्मिलित थे। हेन सांग ने इसे चि-चि-टो कहा है। कनिंघम का मत है कि चि-चि-टो जुझौती ही है। इस क्षेत्र में जुझौतिया ब्राह्माणों की बहुलता है। जुझौती का उल्लेख अबू रिहाँ ने भी किया है जिसकी राजधानी खजुराहो थी।
चन्देलों के समय में चन्देल शासक जयशक्ति के नाम पर यह क्षेत्र जेजाक भुक्ति के नाम से अभिहित किया जाता था। महाभारत काल में यह क्षेत्र चेदि देश के अन्तर्गत था जिसका शासक शिशुपाल था । बुन्देलखण्ड का पश्चिमी भाग दशार्ण (धसान) नदी के कारण दशार्ण कहलाता था। चन्देलों का इतिहास नन्नुक (831-850ई0) से प्रारम्भ होता है। विभिन्न शासकों ने खजुराहो (खर्जूरवाहक), महोबा (महोत्सव), कालिंजर को अपनी राजधानी बनाया। परमर्दिदेव (1165-1203ई0) के काल में महोत्सव वैभवपूर्ण नगर था। कीर्ति सागर, मदन सागर,विजय सागर, कल्याण सागर, राहिल सागर द्वारा जल की आपूर्ति की जाती थी।
बारहवीं शती के उत्तरार्द्ध में चाहमान, गहड़वाल, चन्देल मध्यदेश के प्रमुख राज्य थे। इनके आपसी द्वन्द्व ने इतिहास की दिशा ही बदल दी। विक्रम संवत्1236 में चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय ने महोत्सव पर आक्रमण किया जिसका उल्लेख उनके मदनपुर शिलालेख में किया गया है- अरुण राजस्य पौत्रेण श्री सोमेश्वर सूनुना।
उपोद्घात कंचन मृग (उपन्यास) स्कन्द पुराण में बुन्देलखण्ड का नाम राज्य के रूप में जुझौती उपलब्घ होता है। इसमें 42000 गाँव सम्मिलित थे। हेन सांग ने इसे चि-चि-टो कहा है। कनिंघम का मत है कि चि-चि-टो जुझौती ही है। ...और पढ़ेक्षेत्र में जुझौतिया ब्राह्माणों की बहुलता है। जुझौती का उल्लेख अबू रिहाँ ने भी किया है जिसकी राजधानी खजुराहो थी। चन्देलों के समय में चन्देल शासक जयशक्ति के नाम पर यह क्षेत्र जेजाक भुक्ति के नाम से अभिहित किया जाता था। महाभारत काल में यह क्षेत्र चेदि देश के अन्तर्गत था जिसका शासक शिशुपाल था । बुन्देलखण्ड का पश्चिमी भाग
1. अपराध हुआ रानी जू ‘चित्ररेखा’ , चित्ररेखा दौड़ती हुई चन्द्रावलि के सामने अपराधी की भाँति आकर खड़ी हो गई। उसकी खड़े होने की मुद्रा से चन्द्रा को हँसी आ गई। उसने पूछा ‘आज इतने श्रृंगार की आवश्यकता कैसे ...और पढ़ेचित्रे?’ चित्रा की आँखें ऊपर न उठ सकीं। चित्रा चन्द्रा की मुँहबोली सेविका होने के साथ ही अभिन्न सहेली भी थी। चित्रा के मन की बातें चन्द्रा पढ़ लेती थी और चित्रा से भी चन्द्रा के अन्तर्मन की बात छिपती न थी। सावन का महीना लग चुका था। विवाहिताएं मैके आकर किलोल करने लगीं थीं। चित्रा के माता-पिता का देहान्त
2. जइहँइ वीर जू- बालक उदास था। आँखें भरी हुई थीं। माँ से कहा कि उसे सैन्य बल में नहीं लिया गया। माँ घर की देहरी पर बैठी पत्तल बना रही थी। ‘पतरी तव हइ पेट पालइ का, काहे ...और पढ़ेहव’ ‘म्वहिं का कुछ करै का है। तैं दिन भर लगी रहति ह्या तबहुन पेट न भरत। म्वहिं यहइ काम करैं-क है का? ‘हाथ पांव चलइहव तौ रोटी मिलइ ! ये ही मा सुख मिलइ।’ ‘काम मा म्वहिं लाज नाहीं आवइ। घ्वरसवार बनै क मन रहइ। घ्वर सवार कइ कमाई ज्यादा हवै। का त्वार मन नाहीं कि म्वहिं कुछ ज्यादा
3. उड़ि जा रे कागा रूपन को घर छोड़े पूरे बारह महीने बीत गए। पुनिका प्रायः आकर रूपन की माँ को ढाढ़स बँधाती, पत्तल बनाने में उसकी सहायता करती । रूपन को दम मारने की फुर्सत नहीं थी। वह ...और पढ़ेका विश्वास पात्र सैनिक था। उदयसिंह हर कहीं उसे साथ रखते। रूपन भी अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। ‘न’ करना उसने सीखा नहीं था। संकटपूर्ण स्थितियों का सामना करने में वह दक्ष हो गया था। पर घर छूट गया था। माँ घर पर थी। कुछ ड्रम्म और संदेशा मिल जाता पर उसके मन की साध धरी की
4. माई साउन आए- बारहवीं शती का उत्तरार्द्ध। महोत्सव वास्तव में उत्सवों का नगर था। नर-नारी उल्लासमय वातावरण का सृजन करने में संलग्न रहते। ऋतुओं के परिवर्तन के साथ ही नगर का परिवेश बदल जाता । सावन में घर-घर ...और पढ़ेपड़ जाते। नीम या इमली की डाल पर बड़े-बड़े रस्से लगाकर लकड़ी के मोटे पटरे बाँध दिये जाते। नवयुवतियाँ साँझ ढलते ही झूलों पर झूलतीं और कोमल कंठों से सावन गातीं। उन गीतों को सुनकर हर व्यक्ति जीवन की कटुता भूल जाता। अभावों और आकांक्षाओ की अनापूर्ति के मध्य भी जीवन की सरसता छलक उठती। रस बरसने लगता। चन्द्रा के