Pahle kadam ka Ujala book and story is written by सीमा जैन 'भारत' in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Pahle kadam ka Ujala is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
पहले कदम का उजाला - उपन्यास
सीमा जैन 'भारत'
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
रामायण और महाभारत के काल से शुरू करें तो हमारे पास अमर, सम्रद्ध साहित्य है। हमारा जीवन कहीं न कहीं इन्हीं दोनों महाकाव्यों से जुड़ा है। या यूँ कहें कि जीवन में इन दोनों से अलग कोई कथा हो सकती है क्या?
इन दोनों ग्रन्थों ने जीवन के हर रंग को समेटा है। शायद ही जीवन की कोई मिठास या कड़वाहट हो जो इनमें समाने से छूट गई हो।
‘पहले कदम का उजाला’ एक नारी के अपने आप को ऊपर उठाने की दास्तां है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए पहला कदम उठाने के लिए उजाले अपने अंदर ही जगाने पड़ते हैं।
उसके लिए बाहर कोई उजाला नहीं मिल सकता है। या यूँ कहें कि बाहर के अंधेरों से लड़ने के लिए पहला उजाला भीतर ही लाना पड़ता है।
वक़्त जीवन के कईं रंगों को दिखाता है। सीता हो या गांधारी सबने जीवन में अनन्त उतार चढ़ाव देखे। वक़्त ने सबको अपनी आँच पर तपाया है। वक्त निर्विकार भाव से सिर्फ़ हमारे मन की शक्ति को देखता है।
पहले कदम का उजाला रामायण और महाभारत के काल से शुरू करें तो हमारे पास अमर, सम्रद्ध साहित्य है। हमारा जीवन कहीं न कहीं इन्हीं दोनों महाकाव्यों से जुड़ा है। या यूँ कहें कि जीवन में इन दोनों से ...और पढ़ेकोई कथा हो सकती है क्या? इन दोनों ग्रन्थों ने जीवन के हर रंग को समेटा है। शायद ही जीवन की कोई मिठास या कड़वाहट हो जो इनमें समाने से छूट गई हो। ‘पहले कदम का उजाला’ एक नारी के अपने आप को ऊपर उठाने की दास्तां है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए पहला कदम उठाने के लिए उजाले
जिंदगी की असलियत*** माइक से पीछे की तरफ़ मुड़ी तो पति ख़ड़े दिख गए। कमल, एक बहुत ग़ुस्से वाला इंसान जो अपनी पत्नी से कभी प्रेम से बात कर ही नहीं पाया। जिसे मुझसे बात करते ही ग़ुस्सा आने ...और पढ़ेहै। ये भी नसीब ही है कि पति-पत्नी के ग्रह कैसे मिलते हैं! हमारे ग्रह कभी शांति ला ही नहीं सके। एक बार सासू माँ ने बहू की कमी क्या निकाली वह दिन इस श्रवण कुमार के लिये काफ़ी था। उस दिन से आजतक मैं इनके लायक़ बन ही नहीं पाई। आज जो शब्द मुँह से निकले हैं उनका लावा
हमारा घर*** एक तीन कमरों वाला किराए का छोटा सा घर। जिसमें एक ड्राइंगरूम, अंदर का कमरा वह हमारा बेडरूम और आखिरी वाला छोटा सा किचन है। बाहर का कमरा सासु माँ का कमरा भी है। जिसमें टी.वी. रखा ...और पढ़ेजो लगभग पूरे दिन चलता रहता है। कैसा और क्या प्रोग्राम आ रहे हैं इससे उन्हें कोई मतलब नहीं! रोली की पढ़ाई, बचपन में उसकी नींद ख़राब हो या कोई और परेशानी हो, टीवी/TV को अपने पूरे शोर के साथ ही चलना है। ये मां - बेटे दोनों अपना पूरा ख़ाली समय वहीं बिताते हैं। वहीं टीवी/TV के सामने खाना
मेरा बचपन *** हम तीन भाई – बहनों में बड़ा भाई, जो दादा – दादी का लाडला था। जिसे दादी हमेशा गोदी में लिए घूमती थी। उससे बचपन में दादा – दादी से बहुत प्यार मिला। छोटे वाले को ...और पढ़ेके घर में छुटकू की तरह बहुत प्यार मिलता था। बचपन में जब मैं दोनों जगह जाती तो ऐसा लगता था कि मैं अपनी जगह नहीं बना पा रही हूं। दादी के घर में दादा – दादी के साथ मुझे लगता था मुझे वह प्यार नहीं मिल रहा है जो मेरे बड़े भाई को मिलता है। साथ ही बुआ और
मैं, रोली की नजर से*** रोली, मेरे जीवन की सबसे बड़ी ताकत है। उसने यह शब्द कई बार मुझसे कहे हैं। कभी छू कर तो कभी बोलकर उसने मेरा मन सुख और शांति से भर दिया है। वह कुछ ...और पढ़ेही कहती आई है... ‘जबसे याद करूँ माँ मुझे तुम्हारी ही छवि दिखाई देती है। स्कूल के लिए तैयार करती, बस तक छोड़ने आती, पेरेंट्स टीचर मीट में अधिकतर अकेली आती, मुझे होमवर्क करवाती, मेरी पसन्द का खाना बनाती, मुझे सस्ता पर अच्छा सामान दिलवाती और भी न जाने कितने काम करती। इन सब कामों को तो आप बड़े आराम