Jivan unt pataanga book and story is written by Neelam Kulshreshtha in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Jivan unt pataanga is also popular in लघुकथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
जीवन ऊट पटाँगा - उपन्यास
Neelam Kulshreshtha
द्वारा
हिंदी लघुकथा
ज़िंदगी होती है बेतरतीब, बड़ी ऊट पटाँग, थोड़ी सी बेढब, थोड़ी सी खट्टी मीठी, हंसी और आँसुओं की पोटली, अकल्पनीय बातें आपके रास्ते में फेंकती आपको बौखलाती हुई, ठगती हुई --अपनी तरह से भूल भुलैया सी दौड़ती हुई. आप कितना भी ऐंठे कि हम अपने जीवन के मालिक हैं। ये बात सही है, आप मेहनत से, अच्छे कर्मों से अपनी ज़िंदगी संवार सकते हैं लेकिन प्रेम, शादी व साम्प्रदायकिता, शिक्षा से हटकर बहुत सी ऊट पटाँग घटनाएं ज़िंदगी को बौखलाए रहतीं हैं। आप चैन से जी नहीं सकते जब तक अचानक सामने आई समस्या को हल न कर लें।
एपिसोड -1 डाकुओं के चंगुल से नीलम कुलश्रेष्ठ ज़िंदगी होती है बेतरतीब, बड़ी ऊट पटाँग, थोड़ी सी बेढब, थोड़ी सी खट्टी मीठी, हंसी और आँसुओं की पोटली, अकल्पनीय बातें आपके रास्ते में फेंकती आपको बौखलाती हुई, ठगती हुई --अपनी ...और पढ़ेसे भूल भुलैया सी दौड़ती हुई. आप कितना भी ऐंठे कि हम अपने जीवन के मालिक हैं। ये बात सही है, आप मेहनत से, अच्छे कर्मों से अपनी ज़िंदगी संवार सकते हैं लेकिन प्रेम, शादी व साम्प्रदायकिता, शिक्षा से हटकर बहुत सी ऊट पटाँग घटनाएं ज़िंदगी को बौखलाए रहतीं हैं। आप चैन से जी नहीं सकते जब तक अचानक सामने
एपीसोड -२ ऐसे भी [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] “उठ कम्मो उठ ।” कम्मो ने अपना हाथ छुड़ाते हुए दूसरी तरफ़ करवट ले ली, बिछौने से कच्ची ज़मीन पर उतर आई थी । “उठती है साली की नहीं ।” अब ...और पढ़ेबार रग्घू को गुस्सा आ गया । उसने उसकी दोनों बांहे पकड़कर उसे उठा दिया । “उठ तो रही हूँ, काहे को गला फाड़ रिया है ?” उसने अपने को छुड़ाकर एक भरपूर अंगड़ाई ली, “क्या टैम हो रहा है?” “आठ बज रहे होंगे और मेम साब अभी खर्राटे ही ले रही हैं । ले चाय पी ले ।” उसने
तुम चोर पकड़ने क्यों गये ? नीलम कुलश्रेष्ठ “आ...आ..- आ.” तुम बिलकुल गलत समझे...यह कोई शास्त्रीय राग का आलाप नहीं है, न कोई गाना गाने से पहले अपना सुर साध रहा है, यह तो मेरी कराह है । मेरा ...और पढ़ेहुआ बायाँ हाथ करवट लेने से दब गया है, इसीलिए मेरे मुँह से कराह निकल गई । तुम तो मुझे पहचानते नहीं हो....अब पूछोगे कि मैं कौन हूँ..मैं हूँ सिद्धार्थ....प्यार से लोग मुझे सिद्धू कहते हैं, तुम ने मुझे अपनी कॉलोनी में पहले नहीं देखा न ? देखते भी कैसे, मैं यहाँ गरमी की छुट्टियों में आया हूँ। किस के
नीलम कुलश्रेष्ठ उस दिन को कितने वर्ष हो गए होंगे ---चालीस के लगभग ? एक दो साल इधर या उधर --तब उसे विवाह के बाद यू पी से आये कुछ वर्ष ही हुए थे, पश्चिमी भारत, बम्बई या गोआ ...और पढ़ेरौब उस पर कम नहीं हुआ था। तब कहाँ थी ये ग्लोबलाइज़्ड दुनियाँ ? आज बच्चे विश्व की जानकारी का दम्भ भरते हैं, तब प्रदेशों के विषय में बहुत कम जानकारी होती थी। जब तेतीस साल बाद वड़ोदरा छोड़ने से पहले ख़बर मिल गई थी कि अनिल के कलीग मिस्टर शाबास, रिटायरमेंट के बाद गोआ लौट जाने वाले, वे नहीं
नीलम कुलश्रेष्ठ “सांप...सांप..” मलय चिल्लाता हुआ उठ कर बैठ गया और कांपने लगा । “कहाँ है?” प्रीति घबरा कर उठ बैठी । बिजली चली गई थी । छोटी बत्ती नहीं जल रही थी । “म...म...मेरे गले पर लिपटा है ...और पढ़ेमलय भयभीत स्वर में बोला । “क्या ?” घबराहट में सिरहाने के नीचे रखी टार्च नहीं मिल रही थी । बड़ी मुश्किल से उस ने टार्च जलाई । देखा, मलय अपनी गरदन पर हाथ फेर रहा था । “क्या हुआ?” शैलेश ने उनींदे स्वर में करवट बदले हुए पूछा । उस की हथेली अनजाने ही प्रीति की खुली पीठ पर