"बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो ? तुम उसे पकड़ लेना, वो मेरे पास गांधीवादी झोला लटकाये आता रहता है. तुमने मेरे ऑफ़िस में उसे देखा तो है। "
"कौन सा आदमी ?"
"वही मरियल सी शक्ल वाला, काली सफ़ेद दाढ़ी वाला। खादी के पायजामे कुर्ते पर खादी की जैकेट पहने रहता है। "
"अरे---- वो नैनसुख भाई, वो क्या कर सकते हैं इस कॉन्ट्रेक्ट के लिये ?"
"वही एक बन्दा है जो चमत्कार कर सकता है। "
उन्हें उसकी नहीं अपनी अक्ल पर तरस आ रहा है ख़ामखाँ इस मेहता को होशियार समझते रहे, इसे मुंह लगाए रहे। उद्योग मंत्री विराट सिंह इस्पात जैसा सख्त भावनाशून्य है। अपने सूत्रों से उसकी टोह ले चुके हैं। वह कोई भी योजना पास करने के लिए क्या लेता है ? भरा हुआ ब्रीफ़केस ----या कुछ सेंट में भीगा हुआ ? अच्छा हुआ इस खोजबीन के दौरान उन्होंने अपनी पहचान गुप्त रक्खी थी नहीं तो उनका इण्डस्ट्रियल लाइसेन्स छिन जाता। बाद में उन्होंने मेहता को इस काम पर लगा दिया था कि मंत्री के कार्यालय के लोगों के बीच बैठकर कोई सुराग खोजे।
"तुम्हें क्यों लगता है कि नैनसुख भाई कोई चमत्कार कर लेंगे ?"
"मंत्री विराट सिंह असली खद्दरधारी गांधीवादी है। उसे गांधी जी की आड़ लेकर ही शीशे में उतारा जा सकता है। "
यदि कोई केंद्रीय बिंदु उनकी पकड़ में आ जाए तो वे उसके इर्द गिर्द छोटे बड़े व्रत्त खींचने में माहिर हैं। उनका तेज़ दिमाग चाहे तो ग्लोबलाइज़ेशन जैसा बड़ा वृत्त बनाकर रख दे। मेहता जिसे वे बेवकूफ समझने लगे थे, उसी ने ये केंद्रीय बिंदु थमाया था। ख़ूब ख़ूब सोचते रहे थे कि क्या होगा, कहाँ से सहायता लेनी होगी। वैसे शौकीन मंत्रियों को शीशे में उतारना उनके बांये हाथ का खेल है। कोई भी बड़ा होटल या नगरग्रह, फ़ैशन परेड या ग्लैमरस पार्टी या सांस्कृतिक कार्यक्रम। पीछे के दरवाज़े से उपहार, बस काम हो जाता है। हाँ, नैनसुख भाई को केंद्र में रखकर, जो कि एक विश्वसनीय नाम है के इर्द गिर्द वृत्त खींचे जाना मुश्किल लग रहा है। इन वृत्तों में उन्हीं के मिजाज़ के नाम समेट पाना मुश्किल लग रहा है।कुछ मित्र जो कुछ कर गुज़र सकते हैं उनके नामों को जोड़ते हुये, अपने कुछ अन्य सूत्रों को जोड़कर उन्होंने अपने दूसरे मकान के बाहर एक बोर्ड लगवा दिया -`गांधी स्मृति मंच `.रजिस्ट्रेशन तो जब होता रहेगा। प्रथम तीन नाम तो उनके दिमाग़ में तय थे। वे लोग उन्हें कैसे सहयोग नहीं करेंगे ?नहीं तो उनके कच्चे माल को कौन ख़रीदेगा। उन्होंने अपनी पी ए से एक नंबर डायल करने को कहा।
उसने फ़ोन पर अपनी मधुर आवाज़ में पूछा, "भूपति एसोशियेट्स ? पटेल आयरन्स के एम डी भूपति जी से बात करना चाहतें हैं ."
उधर से आवाज़ आई, "प्लीज़ होल्ड ऑन । "और मधुर संगीत बजने लगा।
कुछ देर संगीत की तरंगें मचलती रहीं। थोड़ी देर बाद आवाज़ सुनाई दी, "हैलो। "
"मैं परेश बोल रहा हूँ। "
"यार !कौन सी दुनियाँ में रहता है, कभी फ़ोन पर नहीं मिलता।?"
"यही सवाल तो मैं तुमसे करना चाहता हूँ। "
"ख़ैर छोड़, ये बता कि फ़ोन कैसे किया ?"
"अपनी ज़िंदगी तेरा मेरा करने में निकल गई अब सोच रहा हूँ गांधी जी के नाम कुछ सोशल वर्क हो जाए। साथ देगा ?"
"नोट देगा ?"
"साले !तुझे फ़ोन करने से पहले ही पता था कि बिना नोट तू एक इंच भी नहीं चलता। थोड़ा धीरज रख, नोट ही नोट बरसेंगे। "
राना और वर्मा इसी तरह के नोट पर मरने वाले दो और मित्रों को फ़ोन करने के बाद मेहता से पूछा, "अब नैनसुख भाई को फोन करुं ?"
"इतनी जल्दी ऐसी बेवकूफ़ी मत करना। जब पूरी कार्यकारिणी समिति बन जाएगी या शुद्ध भाषा में कहें कि गठित हो जाएगी तब उन्हें अध्यक्ष पद पर आसीन करने बुला लेंगे। "
" तो जीवाजी राव व जैन ब्रदर्स को फ़ोन कर दूँ ?`
"तुम क्या कर रहे हो ?ये सौ प्रतिशत शाकाहारी जीव हैं। इन्हें ज़रा भी भनक पड़ गई कि मंच कैसे और क्यों बनाया जा रहा है तुम्हारी फ़ाउँड्री काग़ज़ों पर रक्खी रह जाएगी। "
मंच की प्रथम मीटिंग में मेज़ के चारों तरफ़ बैठे ये सिर्फ़ पांच लोग हैं -वे, मेहता और तीन मेहमान। पीछे की दीवार पर गांधी जी की एक बड़ी तस्वीर बहुत गहराई से मुस्करा रही थी। उन्होंने धीरे धीरे मंच के उदेश्य गिनाने आरम्भ किये, "फ़्रेंड्स ! मंच का सबसे पहला प्रमुख उदेश्य है गांधीजी के विचारों का प्रचार व प्रसार, दूसरा में कुछ छात्रवृत्तियां, तीसरे स्थानीय प्रतिभाओं का सम्मान। "
वे तीनों गम्भीर शक्ल बनाकर उनकी बात सुन रहे रहे थे। अचनाक भूपति ज़ोर से हंस पड़ा, "यार ! अब तू मतलब की बात पर आ जा गांधी बनने का नाटक छोड़। आज की मीटिंग में अपने ही लोग हैं। "
उसकी बात पर सब हंस पड़े।
"अब तुमसे क्या छिपाना ? ये उद्द्योग मंत्री ज़रा अड़ियल आया है। पूरा गाँधीवादी है। न ब्रीफ़केस लेता है और न वो ---."कहते हुए उसने एक आँख दबाई। "फ़ंक्शन में जाने से बचता रहता है। गांधीजी का पक्का भक्त है। उसे शीशे में उतारने के लिए गांधीजी को तो ऊपर से नीचे ला सकते हैं। "
" इसलिए पृथ्वी के गांधी जी के भक्त नैनसुख भाई को सामने ला रहे हैं। "मेहता ने बात जोड़ी।
राना ने अब जुबां खोली, "तो इसलिए बाहर `गांधी स्मृति मंच `का बोर्ड लगा है ? "
"हाँ, सबसे पहले तुम तीनों को ही बुलाया है। "
"बोलो हमें क्या करना है ?"वर्मा ने पूछा।
" पहले हमें फ़ंड इकठ्ठा करना है। "
जब तक पिओन बोन चाइना की क्रॉकरी में चार पांच प्लेट्स में नाश्ता लगाता रहा, कप्स में चाय ढालता रहा, वे चुप रहे। अपना प्याला हाथ में लेते हुए उन्होंने कहा, "फिलहाल तो पचास हज़ार रुपया दे दो। बाकी मैं डाल ही रहा हूँ। कुछ और फ़ंड मिल जाएगा। दो महीने में शहर में इस मंच की इतनी धूम हो जानी चाहिए कि लोग असली गांधी को भूल जाएँ, उन्हें बस ये मंच याद रहे ----हा ---हा ---हा---."
दूसरी मीटिंग में उन्होंने छोटे मोटे व्यवसाइयों को ही शामिल कर धन इकठ्ठा किया जिस संस्य्था के पास इतना धन हो तो उसके रजिस्ट्रेशन के रास्ते मेहता जानता ही था। तीसरी मीटिंग में पहली दो मीटिंग के मेहमान नहीं हैं। उस मेज़ के केन्द्र में एक विशाल कुर्सी पर एक प्रोफ़ेसरनुमा चेहरा है बकौल मेहता इस तरह के प्रोफ़ेसर मंच को अच्छी तरह सम्भाल लेते हैं। एक बैंक मेनेजर, एक वकील मेज़ के चारों तरफ़ उत्साही युवक -युवतियां बैठे हुए हैं। इनमें एक दो बच्चों के पिता व मम्मियां भी हैं। इन सबके चेहरे पर कुछ कर गुज़रने की तड़प है। इनमें से कुछ छोटी मोटी संस्थाओं में जुड़े हुए हैं। इनमें से कुछ ऐसे हैं जिन्हें छिपलीमीटर कहा जा सकता है, जो इस संस्था से जुड़कर अपनी छवि बनाना चाहतें हैं।
मेहता और वे खादी का कुर्ता पायजमा पहनकर आये हैं। मेहता गंभीर चेहरा लिए अपनी बात आरम्भ करता है।, "साथियो !जैसा कि आप देख रहे हैं। हम मूल्यों के विघटन में जी रहे हैं। "
कुछ युवाओं का चेहरा इस बात का अर्थ समझने के लिए कसमसाया तो मेहता ने अपनी बात स्पष्ट की, " वी आर लिविंग इन इममॉरल सोसायिटी। ये समय हमें व हमारे युवावर्ग को क्या दे रहा है -अविश्वास, भ्रष्टाचार, घूसखोरी, कालाबाज़ारी। आज के समय की मांग है कि गांधीजी को, उनके मूल्यों को पुनर्जीवित किया जाए इसलिए हम लोगों ने नैनसुख भाई के नेतृत्व में गांधी स्मृति मंच की स्थापना की है। अगले महीने हम सादा लेकिन बड़ा कार्यक्रम आयोजित करेंगे जिससे इस मंच परिचय सबको मिले, इसके उदेश्य सब लोग जानें।क्या आप साथ देने को तैयार हैं ? "
"ज़रूर। "
"श्योर। "
"अवश्य। "
कुछ लोग सिर्फ़ सिर हिलाकर स्वीकृति देते रहे।
"आप लोग जो भी कार्यक्रम के लिए भाग दौड़ करेंगे उसके लिए पेट्रोल का ख़र्च मंच देगा और जो भी आपका इस आयोजन में रुपया ख़र्च होगा वह आपको मंच देगा। "वे धीमी आवाज़ में अपनी बात को आगे बढ़ाते हैं, "हमें अगली मीटिंग में अपने अपने क्षेत्र के टेलेंटेड लोगों के नाम दीजिये। हमारी कार्यकारिणी समिति इक्कीस नाम चुनेगी। मंच अपने कार्यक्रम में उन्हें सम्मानित करेगा। "
कुछ को आश्चर्य हुआ, "इतने अधिक लोगों को सम्मान मिलेगा ?"
उन्होंने गर्दन अकड़ाकर कहा, "ये शहर तो प्रतिभाओं का भण्डार है। भगवान ने चाहा तो अगले वर्ष पचास प्रतिभाओं का सम्मान करेंगे। जो प्रतिभाशाली लोग समाज के लिए कष्ट उठाकर कुछ अलग करते हैं, उनका सम्मान करना ऐसा है जैसे गांधीजी के चरणों में फूल चढ़ा रहे हों। "
"वाह --वाह। `सभी ताली बजा उठे। उनके व मेहता जी के गंभीर चेहरे को देखकर व उनके वक्तव्य सुनकर सभी नतमस्तक हो उठे। बाद में चाय के साथ गर्म समोसे से पुलकित।
मीटिंग बर्खास्त होने के बाद, सबके चले जाने के बाद भावविभोर नैनसुखभाई ने मेज़ पर रक्खा अपना थैला कंधे पर डाला और कहा, "अब मैं भी चलता हूँ। "
वे व मेहता उनके चरणों पर झुक आये, "हमें आशीर्वाद दीजिये। हमारा लक्ष्य पूरा हो। "
नैनसुख भाई गदगद होते हुए उन्हें बीच में रोककर बोले, "जो गांधीजी के आदर्शों केलिए कुछ करना चाहता है। उसके लिए हमारा साथ व आशीर्वाद रहेगा ही। "
उनके जाने के बाद चपरासी मेज़ पर से झूठे कप्स प्लेट्स उठाने में लग गया। मेहता ने चैन से सिगरेट सुलगाकर पूछा, " तो अगले महीने के लिए नगरगृह को बुक करवा लेते हैं। "
वे अपनी सिगरेट को उसकी सिगरेट से सुलगाना चाह रहे थे, एकदम अपनी सिगरेट हाथ में लेकर हक्के बक्के से पूछने लगे, "पांच सौ कुर्सियों वाले हॉल का क्या होगा ?"
"वह भी काम पड़ जाएगा, तुम देखते जाओ। "
उद्द्योग मंत्री से राजधानी में मिलने का समय लिया गया। वे गंभीर थे, "शायद आपको पता नहीं होगा कि मैं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नहीं जाता। "
"जी ये सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है, ये गांधीजी के मूल्यों प्रचार प्रसार है। "कहते हुए उन्होंने मंच का एक कागज़ उनके जिसमें कार्यकारिणी समिति व सदस्यों की लम्बी लिस्ट थी। ऊपर बड़ा बड़ा टाइप हुआ था -अध्यक्ष -नैनसुख भाई, "देखिये इतने गांधी जी के मूल्यों पर विश्वास करने वाले लोग तो हमारे साथ हैं।
"अरे इस मंच के अध्यक्ष नैनसुख भाईं हैं ? "
उन्होंने भोलेपन से आँखें फडफ़ड़ाईं, "क्या आप इन्हें जानते हैं ?"
"बिल्कुल। "
"मैं गांधीजी के आदर्शों पर चलता इनकी स्थापना के लिए समाज के लिए कुछ करना चाहता था। इन भाई ने ये रास्ता दिखाया है। उन्हीं के मार्गदर्शन से, उन्हीं के आदर्शों के अनुरूप ये संस्था गठित हुई है। "
मेज़ के नीचे से मेहता उनके जूते को अपने जूते की टो से हल्का धक्का मारता शाबासी देने लगा।
"हूँ --तो आप लोग मंच द्वारा क्या करना चाहतें हैं ?" मंत्री जी ने अपना चश्मा मेज़ पर रखते हुए कुछ मुलायम स्वर में पूछा।
" जी, जिस समाज ने हमें इतना कुछ दिया है उसी के लिए कुछ करना चाहते हैं। "
"आजकल तो लोग समाज सेवा के नाम पर क्या क्या गुल खिला रहे हैं। "
"जी, आप सही कह रहे हैं लेकिन जहाँ नैनसुख भाई जैसे लोग होंगे वहां कोई गुल खिलाने की सोच भी है ?"
"`आप मुझसे क्या चाहते हैं ?"
"सर हमारे लिए यही बहुत है कि आप कार्यक्रम में पधारें तो आपके चरणों से `गांधी स्मृति मंच `धन्य हो जाए। "मेहता ने अब ज़ुबान खोली।
उन्होंने अपना चश्मा पहनकर अपनी डायरी के पन्ने पलटे व बोले, "आपके शहर अगले महीने बीस तारीख को एक मीटिंग के लिए आपके शहर आ रहा हूँ, उसी दिन शाम को कार्यक्रम रख लें तो मैं आ सकता हूँ। बाहर मेरे सचिव को ये तारीख व कार्यक्रम रूपरेखा नोट करवा दीजिये। "
दोनों ने खड़े होकर गर्मजोशी से हाथ मिलाया। अब आगे की कार्यवाही आरम्भ करनी थी। शहर लौटकर तुरंत ही नगरग्रह आरक्षित करवा लिया गया। कार्यक्रम की रूपरेखा तो बनती रहेगी। अब तो सारे महत्वपूर्ण व्यक्ति मंत्री जी की दी हुई तारीख के अनुरूप ही अपने कार्यक्रम को आगे पीछे खिसकाकर झख मारकर समय देंगे।
वे पूछते हैं,”कलेक्टर और मेयर को तो इनवाइट करना ही है। और किस वी आई पी को इन्वाइट करना है ?"
"गांधीजी का बार बार जाप करने वाले एम एल ए मंगलीप्रसाद, म्युनिसपिल कॉर्पोरेटर जयन्तीलाल। "
"बस पांच अतिथि बहुत हैं। `
" अरे !शहर के संसद सदस्य को भूल गए ? तेरा बिज़नेस फूला फला और कोई देल्ही में काम अटक गया तो यही काम आएंगे। "मेहता ने अतिथियों को कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि बंनने के लिए फ़ोन घुमाने आरम्भ किये। सबने मंत्री जी का नाम सुनते ही तुरंत अनुमति दे दी। जो शहर से बाहर थे उन्होंने भी दो चार दिन में वापिस आकर स्वीकृति दे दी। नैनसुख भाई सहित सभी मीटिंग में आमंत्रित हैं। वे यानि की उपाध्यक्ष, मेहता यानि कि महासचिव उनके आजु बाजु कुर्सियों पर बैठे हैं। उन्होंने धीमे स्वर में बात आरम्भ की।, "साथियों हॉल की बुकिंग व अतिथियों का प्रबंध मैंने कर लिया है। अब नैनसुख भाई मार्गदर्शन करें कि कार्यक्रम का आरम्भ कैसे किया जाये ?"
"गांधी जी की तस्वीर के सामने दीप प्रज्वलन के साथ। "
किसी कार्यकर्ता ने सुझाव दिया, "मेरी वाइफ़ म्युज़िक क्लास चलाती है। वह व उसके स्टूडेंट `गांधीजी का प्रिय भजन `वैष्णव जान तो तेने कहिये पीर पराई जानिये। `गा देंगे। "
"अच्छा सुझाव है। `ये फ़ेमस भजन किसका लिखा है ?"
"जूनागढ़ ने कवि नर्मद ने एटलो सुन्दर भजन लिखो छे। "कोई सामने से बोला .
"सर !हम दोनों के बच्चे भजन के दौरान गांधीजी व कस्तूरबा बने मंच पर दो चक्कर मारते हुए निकल जाएंगे। "दो अन्य कार्यकर्ताओं ने सुझाव दिया।
" ख़ूब सुन्दर । "नैनसुख भाई गदगद हो गए। "
कृपया आप सभी अपने इलाके की प्रतिभाओं के नाम बताएं। "
वहां बैठा हर कोई व्यक्ति अपने इलाके की प्रतिभा का नाम ले कर उपस्थित है, कोई पड़ौसी स्वयंसेवक, कोई स्वतंत्रता सेनानी अपने पिताश्री का, कोई कज़िन पत्रकार का, कोई कवयित्री भाभी का, कोई अपने विभाग के बेसुरे कवि अपने बॉस का, कोई किसी एन जी ओ के संस्थापक का, कोई राज्य स्तर के खिलाड़ी का.बाद में उन दोनों ने प्रोफ़ेसर के साथ बैठकर इक्कीस नाम चुन लिए, ये देखकर नहीं कि उनमें कितनी प्रतिभा है बल्कि ये देखकर कि सुझाव देने वाला कार्यकर्ता कितना काम आने वाला है। उन्होंने बाद में मेहता से पूछा, "इन प्रतिभाओं को देने के लिए कितनी बड़ी ट्रॉफ़ी बनवाई जाएगी ? "
"यार !काहे को खर्च करने को तुले हो ?एक एक मानपत्र प्रिंट करवा लेंगे। अपने एक कार्यकर्ता की प्रिंटिंग प्रेस है। वही जिसने अपनी कवयित्री भाभी का नाम दिया है "
"क्या वह अच्छी कवयित्री है ?"
"इधर उधर की गुजराती कवितायें मारकर सुरीले स्वर में गा देती है। "
"तुम उसे चुने जाने पर क्यों ज़ोर दे रहे थे ?"
"वह कार्यकर्ता बहुत सस्ते में संस्था के निमंत्रण पत्र व मानपत्र प्रिंट कर देगा। उन्हीं को फ़्रेम करवाकर लाल पीले फ़ीतों से सजाकर दे देंगे। आजकल सेलिब्रिटी व सम्मानित होने के चक्कर में प्रतिभाएं मारी मारी घूम रहीं हैं। मंत्री जी के हाथों यही पाकर निहाल हो जाएंगी। "
"और इतने बड़े हॉल बड़े हॉल का क्या होगा ?"
"देखो डी एम ऑफिस व म्युनिस्पल ऑफ़िस में दस दस कार्ड्स भिजवा देंगे। अपने बॉस का नाम देखकर लोग झख मारकर चले आएंगे। कार्यकर्ताओं से कह दिया है वे अपने रिश्तेदार दोस्तों को मय परिवार आमंत्रित करें। "
"ऐसे शुष्क फंक्शन में कौन बैठना पसंद करेगा ?"वे सच झुंझला गए।
"यार ! तुम मुझे क्या समझ रहे हो ?होटल ` सात्विक `वालों से बात कर ली है। आधे मूल्य पर खाना देगा। उसका` स्पांसर्स ` में नाम डाल देंगे। मैंने निमंत्रण पत्र में लिखवा दिया है -अंतिम कार्यक्रम -सहभोज। होटल सात्विक के खाने को खाने लोग बाल बच्चों सहित लपके चले आएंगे और हॉल भर जाएगा । `
"एटला बधा मानस भेगा थई जाए ?[ इतने सारे लोग इक्कठ्ठे हो जाएंगे ]?"किसी ने पूछा।
"क्यों नहीं ?मैं मिडिल क्लास व लोअर मिडिल क्लास की साईकॉलॉजी समझता हूँ। जहाँ मुफ़्त खाना मिल रहा हो वे दो तीन घंटे कैसा भी कार्यक्रम देख सकते हैं। "
वे भौंचक्के मेहता का मुंह देखते रह गए। कार्यक्रम के दिन हॉल को साँस लेने की फ़ुर्सत नहीं थी। कुछ लोग खड़े भी थे। मंच पर महान विभूतियाँ विराजमान थीं इसलिए लोकल टी .वी. चेनल्स के कैमरे हॉल के बीच में स्टेण्ड पर लगे हुए थे। प्रेस दीर्घा खचाखच भरी हुई थी। युवा कार्यकर्ता बाएं कंधे पर मंच का बैज लगाए इठलाये हुए हॉल की व्यवस्था देख रहे थे। हर आने वाले सम्मानित होने वाले व्यक्ति को मुख्य द्वार से लाकर सम्मान के साथ आगे के सोफ़ों पर बिठा रहे थे . वे मंच पर पहली बार इतने भव्य समारोह में मंच पर बैठे थे, उनके हल्के हल्के पसीने छूट रहे थे। अतिथियों द्वारा मंच पर दीप प्रज्ज्वलन के बाद आरम्भ हुआ भजन` वैष्णव जन तो तेने कहिये---` .एक बच्चा व बच्ची गांधी जी व कस्तूरबा बने मंच पर टहलते रहे।
मंच पर जब अतिथि बैठ गए तो प्रथम बुके नैनसुख भाई ने मंत्री जी को दिया। मंत्री जी उनके चरणों में झुक आये। बाद के अतिथियों को प्रथम तीन बुके उन्हीं से दिलवाये जिन्होंने सबसे तगड़ा दान दिया था। इसके बाद का बुके देने का क्रम दान देने वालों की सामजिक प्रतिष्ठा या उनके दान देने की रकम के अनुसार था। हॉल को देखकर मंत्री जी अभिभूत थे कि अभी भी गांधीजी को चाहने वाले इतने लोग मौज़ूद हैं। इक्कीस प्रतिभाओं के सम्मान के बाद आरम्भ हुआ भाषणों का सिलसिला। कुछ बच्चे मम्मी पापा के कान में फुसफुसा उठे `डिनर कब मिलेगा ?`वे उन्हें आँख दिखा देते। बच्चे पानी पीने के बहाने बाहर भाग जाते। अक्सर ऐसे कार्यक्रमों में लोग एक घण्टे के बाद खिसकने आरम्भ हो जाते हैं लेकिन सब शालीन मुद्रा में बैठे प्रोफ़ेसर के संयोजन में कार्यक्रम देख रहे थे।
मंच पर मेहता उनका हाथ दबाकर फुसफुसाया, "प्रोफ़ेसर किस आत्मविश्वास से गांधी जी पर बोल रहा है। कोई सोच नहीं सकता है इसने ज़िंदगी भर गांधी जी पर कोई किताब नहीं पढ़ी। दो दिन पहले ही नैनसुख भाई से कुछ किताबें ले गया था। "
उन्होंने आँख से उसे मौन रहने के लिए कहा। कार्यक्रम समाप्त होने पर मंत्री जी को याद आया कि उन्होंने कम समय बैठने की अनुमति दी थी। वह चलने को उतावले हो उठे। उन्होंने व मेहता ने दीन हीन होते हुए हाथ जोड़े, "सर !सिर्फ़ दस पंद्रह मिनट की और बात है, प्लीज़ !खाने को ठुकरा कर मत जाइये। "
"मैं पहले ही ---- ."
नैनसुख भाई भी इस सम्मान व मंत्री जी के साथ के कारण नख से शिख तक पुलकित थे, " "अत्यारे एटला बधा मानस विनती कर रिया छे तो तमे मानी जाओ [जब इतने सारे लोग आपसे आग्रह कररहे हैं तो मान जाइये ] 1"
मंत्री जी की आवभगत के लिए लड़कियों की ड्यूटी लगा दी थी। उनकी प्लेट में कोई कोफ़्ता डालने लगी, कोई रायता, कोई रसमलाई। इस युवा आवभगत से व आग्रह से उन शुष्क गांधी वादी चेहरे पर भी जैसे] व्यंजनों से अधिक युवा लड़कियों की चिकनाई चढ़ी जा रही थी। तभी एक कार्यकर्ता ने उनके पास आकर कहा, "सर !आपसे कुछ लोग मिलना चाहतें हैं। "
"पहले मंत्री जी खाना खा लें फिर उनसे फिर मिलता हूँ। "
थोड़ी देर बाद कोई और उनके पास आकर बोला, "सर! आपसे शास्त्रीय संगीत की गायिका मिलना चाह रहीं हैं। ."
"बस मैं अभी आया। "मंत्री जी के जाने के बाद और भी विशिष्ट अतिथि थे जिन्हें उन्हें आत्मीयता से खाना खिलाना था। सम्मानित व्यक्तियों में सिर्फ़ दो तीन ही थे जिन्हें सोचने की बुरी आदत थी। इन्होने कार्यक्रम के आरम्भ में ही भाँप लिया था की गांधीजी की आत्मा उस विशाल तस्वीर से निकल प्रज्ज्वलित दीपशिखा व अगरबत्ती के धुंए को लांघती कब की हॉल से बाहर निकल कर बाहर अंधेरे में विलीन हो गई है। ऐसे लोग भी लजीज़ खाने से गम को ग़लत करने में लग गए।
कार्यक्रम के एक सप्ताह बाद ही उन्होंने बेचैनी से कहा, "मंत्री जी से फ़ाउंड्री की बात करने दिल्ली चलें ? "
मेहता ने कहा, "ज़रा धीरज रक्खो। कार्यक्रम को एक डेढ़ महीना तो होने दो यार ! "
डेढ़ महीने बाद वे व मेहता डेल्ही से प्रसन्नचित होकर लौट रहे थे।
इसके कुछ दिनों बाद ही मेहता उनके ऑफ़िस में फ़ाउंड्री के प्लान्स डिस्कस कर रहा था। चपरासी एक विज़िटिंग स्लिप रख गया जिस पर नाम लिखा था `नैनसुख भाई `.वे बड़बड़ाये, "ये तो चिपक गया। "उन्होंने चपरासी से कहा, "कह दो मैं एक मीटिंग में बिज़ी हूँ, समय नहीं दे पाउँगा। "
चपरासी बाहर जाकर तुरंत आ गया, "वो कह रहे हैं कि वे गांधी स्मृति मंच के अध्यक्ष हैं। वो इस मंच के आगे के कार्यक्रमों की रूपरेखा लेकर आये हैं। "
"तो मैं क्या करूँ ?मंच से अब मेरा क्या काम ?"
"कूल डाउन यार !एक बार मिल तो लो। "
"मुझे उस फटीचर आदमी की सूरत भी नहीं देखनी, ."
"क्या पता अगले इलेक्शन में फिर कोई गांधीवादी नेता जीत जाए ?"
" लंगोटी पहनकर घूमने वाले गांधीजी को मानने वाले ऐसे ही लोगों के कारण अपना देश नहीं सुधर रहा। अपने देश से गरीबी नहीं जा रही। मैं सच ही अब उसकी सूरत नहीं देखना चाहता। तुम ही उसे दस पंद्रह हज़ार रुपया देकर किसी गांधीवादी सेमीनार या शिविर आयोजन में व्यस्त कर दो। "कहते हुए वे अपनी तिजोरी खोलने लगे।
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