Pariksha-Guru book and story is written by Lala Shrinivas Das in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Pariksha-Guru is also popular in लघुकथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
परीक्षा-गुरु - उपन्यास
Lala Shrinivas Das
द्वारा
हिंदी लघुकथा
लाला मदनमोहन एक अंग्रेजी सौदागर की दुकानमैं नई, नई फाशन का अंग्रेजी अस्बाब देख रहे हैं. लाला ब्रजकिशोर, मुन्शी चुन्नीलाल और मास्टर शिंभूदयाल उन्के साथ हैं.
मिस्टर ब्राइट ! यह बड़ी काच की जोड़ी हमको पसंद है. इस्की क़ीमत क्या है ? लाला मदनमोहन नें सौदागर सै पूछा.
इस साथकी जोड़ी अभी तीन हजार रुपे मैं हमनें एक हिन्दुस्थानी रईस को दी है लेकिन आप हमारे दोस्त हैं आपको हम चारसौ रुपे कम कर दैंगे.
निस्सन्देह ये काच आपके कमरेके लायक है इन्के लगनें सै उस्की शोभा दुगुनी हो जायगी. शिंभूदयाल बोले.
लाला मदनमोहन एक अंग्रेजी सौदागर की दुकानमैं नई, नई फाशन का अंग्रेजी अस्बाब देख रहे हैं. लाला ब्रजकिशोर, मुन्शी चुन्नीलाल और मास्टर शिंभूदयाल उन्के साथ हैं.
मिस्टर ब्राइट ! यह बड़ी काच की जोड़ी हमको पसंद है. इस्की क़ीमत ...और पढ़ेहै ? लाला मदनमोहन नें सौदागर सै पूछा.
इस साथकी जोड़ी अभी तीन हजार रुपे मैं हमनें एक हिन्दुस्थानी रईस को दी है लेकिन आप हमारे दोस्त हैं आपको हम चारसौ रुपे कम कर दैंगे.
निस्सन्देह ये काच आपके कमरेके लायक है इन्के लगनें सै उस्की शोभा दुगुनी हो जायगी. शिंभूदयाल बोले.
हैं अभी तो यहां के घन्टे मैं पौनें नौ ही बजे हैं तो क्या मेरी घड़ी आध घन्टे आगे थी ? मुन्शीचुन्नीलालनें मकान पर पहुँचते ही बड़े घन्टे की तरफ़ देखकर कहा. परन्तु ये उस्की चालाकी थी उसनें ...और पढ़ेसै पीछा छुड़ानें के लिये अपनी घड़ी चाबी देनें के बहानें सै आध घन्टे आगे कर दी थी !
कदाचित् ये घन्टा आध घन्टे पीछे हो मास्टर शिंभूदयाल नें बात साध कर कहा।
नहीं, नहीं ये घन्टा तोप सै मिला हुआ है लाला मदनमोहन बोले.
तो लाला ब्रजकिशोर साहब की लच्छेदार बातैं नाहक़ अधूरी रह गईं ? मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा.
लाला मदनमोहन भोजन करके आए उस्समय सब मुसाहब कमरे में मौजूद थे. मदनमोहन कुर्सी पर बैठ कर पान खानें लगे और इन् लोगों नें अपनी, अपनी बात छेड़ी.
हरगोविंद (पन्सारी के लड़के) नें अपनी बगल सै लखनऊ की बनी टोपियें ...और पढ़ेकर कहा हजूर ये टोपियें अभी लखनऊसै एक बजाज के यहां आई हैं सोगात मैं भेजनें के लिये अच्छी हैं. पसंद हों तो दो, चार ले आऊं ?
कीमत क्या है ?
वह तो पच्चीस, पच्चीस रुपे कहता है परन्तु मैं वाजबी ठैरा लूंगा
लाला मदनमोहन को हरदयाल सै मिलनें की लालसा मैं दिन पूरा करना कठिन होगया वह घड़ी, घड़ी घन्टे की तरह देखते थे और उखताते थे, जब ठीक चार बजे अपनें मकान सै सवार होकर मिस्तरीखानें मैं पहुँचै यहां तीन ...और पढ़ेलाला मदनमोहन की फर्मायश सै नई चाल की बन रही थीं उन्के लिये बहुतसा सामान वलायत सै मंगवाया गया था और मुंबई के दो कारीगरों की राह सै वह बनाई जाती थीं.
लाला मदनमोहन बाग सै आए पीछे ब्यालू करके अपनें कमरे मैं आए उस्समय लाला ब्रजकिशोर, मुन्शी चुन्नीलाल, मास्टर शिंभूदयाल, बाबू बैजनाथ, पंडित पुरुषोत्तमदास, हकीम अहमदहुसैन वगैरे सब दरबारी लोग मौजूद थे. लाला साहब के आते ही ग्वालियर के गवैयों ...और पढ़ेगाना होनें लगा.
मैं जान्ता हूँ कि आप इस निर्दोष दिल्लगी को तो अवश्य पसंद करते होंगे. देखिये इस्सै दिन भर की थकान उतर जाती है और चित्त प्रसन्न हो जाता है लाला मदनमोहन नें थोडी देर पीछै ब्रजकिशोर सै कहा.