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खण्ड काव्य रत्ना वली - उपन्यास
ramgopal bhavuk
द्वारा
हिंदी कविता
‘’रत्नावली’’ पर एक दृष्टि बद्री नारायण तिवारी आज वातानुकूलित कमरों में बैठ कर जो लिखा जा रहा है उसका क्षणिक प्रचार तो मिल जायेगा किन्तु वह रचनायें कालजयी नहीं हो पातीं। भक्तवत्सल श्रीराम पर एक ओर जहॉं जनभाषा में विश्वकवि तुलसी ‘’रामचरित मानस’’ की रचना करके घर घर पहुँच गये – वहीं दूसरी ओर पांडित्य प्रदर्शन में केशव की ‘’रामचन्द्रिका’’ पुस्तकालयों की अलमारी में ही सीमित हो गई। महापुरूषों के जीवन की कुछ घटनायें इतनी हृदय स्पर्शी होती हैं जो उनकी जीवन धारा को एक नया मोड़ दे देती हैं। आज कालज
खण्डकाव्य रत्नावली 1 रामगोपालभावुक की कृति ‘’रत्नावली’’ का भावानुवाद रचयिता :- अनन्त राम गुप्त बल्ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्वालियर (म.प्र.) 475110 ‘’रत्नावली’’ पर एक दृष्टि बद्री नारायण तिवारी आज वातानुकूलित कमरों में बैठ ...और पढ़ेजो लिखा जा रहा है उसका क्षणिक प्रचार तो मिल जायेगा किन्तु वह रचनायें कालजयी नहीं हो पातीं। भक्तवत्सल श्रीराम पर एक ओर जहॉं जनभाषा में विश्वकवि तुलसी ‘’रामचरित मानस’’ की रचना करके घर घर पहुँच गये – वहीं दूसरी ओर पांडित्य प्रदर्शन म
खण्डकाव्य रत्नावली 2 खण्डकाव्य रामगोपाल भावुक की कृति ‘’रत्नावली’’ का भावानुवाद रचयिता :- अनन्त राम गुप्त बल्ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्वालियर (म.प्र.) 475110 द्वितीय अध्याय – ...और पढ़ेदोहा – कितने दिन के गये तुम, सुधि नहिं लीनी नाथ। मेरी तो जैसी रही, तारा की भी साथ।। 1 ।। नहिं तुमसा निर्मोही पेखा। बच्चे का भी सुख नहिं देखा।। नारी जीवन – बेल समाना। बिना सहारे नहिं चढ़ पाना।। जीवन दुरलभ प्रकृति बनाया। कहैं विचित्र दैव की माया।। बचपन मात पिता की छ
खण्डकाव्य रत्नावली 3 श्री रामगोपाल के उपन्यास ‘’रत्नावली’’ का भावानुवाद रचयिता :- अनन्त राम गुप्त बल्ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्वालियर (म.प्र.) 475110 तृतीय – अध्याय – कबीर मण्डल दोहा – ...और पढ़ेजभी दामाद ने, लीना पूर्ण विराग। पाठक हू वैरागि बन, रहे भक्ति में पाग।। 1 ।। पतनी पहले स्वर्ग सिधारी। पुत्र नहीं था थी लाचारी।। फिर भी पांच सदस थे घर में। केसर-सुत-वधु बिटिया स्वयं में।। भार नहीं था कम सिर इनके। पंडिताई फिर पीछे जिनके।। घर छोड़े से बात न बनती। रतना इसे ठीक नहिं गिनती।। तर्क वितर्कन
खण्डकाव्य रत्नावली 4 रामगोपाल भावुुक की कृति ‘’रत्नावली’’ का भावानुवाद रचयिता :- अनन्त राम गुप्त बल्ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्वालियर (म.प्र.) 475110 चतुर्थ अध्याय – पण्डित सीताराम दोहा – पझित सीताराम जी, ...और पढ़ेजी कहलायँ। धोती वाले पंडित हू, कह कर उन्हैं बुलायँ।। 1 ।। धोती ढंग विचित्र पहनते। आधी होढ़ें आधी कछते।। शकर जी के पूरे भक्ता। जजमानन में जिनकी सत्ता।। आस पास के सब जजमाना। कुसुवन प्रोहित कर जिन माना।। अधिक लालची रहे सुभाऊ। जजमानी से करै निभाऊ।। इनकी
खण्डकाव्य रत्नावली 5 रामगोपालभावुक के उपन्यास ‘’रत्नावली’’ का भावानुवाद रचयिता :- अनन्त राम गुप्त बल्ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्वालियर (म.प्र.) 475110 पंचम अध्याय – गंगेश्वर दोहा – नित प्रति की है ...और पढ़ेव्यथा, सहत सहत सह जाय। आत्म शक्ति विश्वास की, आस्था त्योंहि बढ़ाय।। 1 ।। त्यों पाठक परिवारहिं जानो। सबही चिन्ता रहै भुलानो।। रतनहु दुख परिवर्तन कीना। पुत्र प्रेम में अब मन दीना।। केशरकाकी सुत व्यवहारा। रहती क्षुब्ध सु करत विचारा।। बहुत दि