Apne sath mera safar book and story is written by Prabodh Kumar Govil in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Apne sath mera safar is also popular in प्रेरक कथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अपने साथ मेरा सफ़र - उपन्यास
Prabodh Kumar Govil
द्वारा
हिंदी प्रेरक कथा
मुझे अपने आरंभिक दिनों से ही ऐसा लगता था कि समाज के कुछ लोग मेरे मन पर बहुत असर डालते हैं। मैं ये कभी समझ नहीं पाता था कि किसी - किसी व्यक्ति से मैं इतना क्यों प्रभावित हो रहा हूं? मुझे उसने ऐसा क्या दे दिया है कि मैं मन ही मन उसके प्रति सम्मान से नतमस्तक हूं। क्या वह बहुत अमीर है? क्या वह बहुत बड़ा ओहदेदार है? क्या वह बहुत शक्तिशाली है? क्या वह बहुत खूबसूरत है? क्या वह बहुत बुजुर्ग या उम्रदराज़ है?
आख़िर क्या वजह है कि उसने मुझ पर अपने व्यक्तित्व की छाप अनजाने ही छोड़ दी है।
अपनी टीनएज में आते- आते अपनी नव विकसित बुद्धि के चलते धीरे - धीरे मुझे ये समझ में आने लगा कि मैं जिन लोगों से प्रभावित हो रहा हूं वो वस्तुतः "लेखक" हैं। उन्हें समाज में प्रतिष्ठित साहित्यकारों के रूप में पहचाना जाता है। वो चाहे किसी भी देश के हों, किसी भी जाति- समाज के हों, किसी भी धर्म के हों, किसी भी हैसियत के हों मेरे आकर्षण का केंद्र होते हैं।
मुझे आहिस्ता आहिस्ता ये भी समझ में आने लगा कि ऐसा क्यों होता है!
मुझे अपने आरंभिक दिनों से ही ऐसा लगता था कि समाज के कुछ लोग मेरे मन पर बहुत असर डालते हैं। मैं ये कभी समझ नहीं पाता था कि किसी - किसी व्यक्ति से मैं इतना क्यों प्रभावित हो ...और पढ़ेहूं? मुझे उसने ऐसा क्या दे दिया है कि मैं मन ही मन उसके प्रति सम्मान से नतमस्तक हूं। क्या वह बहुत अमीर है? क्या वह बहुत बड़ा ओहदेदार है? क्या वह बहुत शक्तिशाली है? क्या वह बहुत खूबसूरत है? क्या वह बहुत बुजुर्ग या उम्रदराज़ है? आख़िर क्या वजह है कि उसने मुझ पर अपने व्यक्तित्व की छाप अनजाने
दो. टीनएज बीतते ही ज़िंदगी की अपने पैरों पर चलने वाली दौड़ शुरू हो गई। एक आम इंसान की तरह मैं भी रोटी, कपड़ा, मकान के लिए नौकरी, शादी और परिवार की जद्दोजहद में खो गया। अपनी रफ़्तार से ...और पढ़ेसमय में दुआओं और श्रापों के हिसाब पीछे छूट गए और केवल इतना याद रहा कि अपनी जिम्मेदारियां पूरी की जाएं। अब आप मुझे एक लंबी कूद की अनुमति दीजिए। मैं समझाता हूं कि मेरा मतलब क्या है? दरअसल मैं अब आपसे 2014 की बात करना चाहता हूं। बीच का समय छोड़ दीजिए। यदि इस समय की किसी बात का
तीन. अपनी ऐसी समझ के चलते ही साहित्यकारों के प्रति एक आंतरिक अनुभूति मुझे भीतर से प्रेरित करती कि किसी लेखक या साहित्यकार के प्रति हमें लगभग वही भाव रखना चाहिए जो प्रायः किसी बच्चे के लिए रखा जाता ...और पढ़ेक्योंकि अबोध बालक केवल तभी भूखा होता है जब वो भूखा होता है। जिस समय कोई भूखा बच्चा हमें दिखता है तो पहले हम यही सोचते हैं कि इसका पेट भरे। कहीं से कुछ ऐसा मिले जो इसे खिलाया जा सके। उस समय हमारी प्राथमिकता में ऐसी बातें नहीं आतीं कि इस बच्चे के भोजन की कीमत कौन देगा? इस
चार. इस पृष्ठभूमि के साथ ही आपको एक और बात बताना भी ज़रूरी है। ये साहित्य को लेकर की जाने वाली रिसर्च या शोध से संबंधित है। शैक्षणिक दायरों में मैं ये देखा करता था कि साहित्यकारों का काम ...और पढ़ेव्यक्ति जैसा है जो अपने परिवार के लिए राशन पानी, अर्थात रोटी कपड़ा और मकान की व्यवस्था करता है। बस फ़र्क इतना सा ही है कि एक सामान्य आदमी जो काम केवल अपने परिवार के लिए करता है वही काम साहित्यकार या लेखक पूरे समाज के लिए कर रहे हैं। उनका जुटाया हुआ सामान सार्वजनिक होता है जो उसके लिए
पांच. इसका एकमात्र हल यही है कि जो कुछ लेखकों द्वारा लिखा जाए उसे पहले कुछ समय तक पाठकों के लिए बाज़ार में छोड़ दिया जाए। लोग उसे पढ़ें। कुछ वर्ष के बाद या तो वो स्वतः ही लुप्त ...और पढ़ेजायेगा अथवा उस पर चर्चा - प्रशंसाओं के माध्यम से वह और उभर कर साहित्य जगत में आ जायेगा। उस पर समीक्षा या आलोचनाएं लिखी जाएंगी, वो कहीं न कहीं पुरस्कृत होता दिखाई देगा अथवा अन्य किसी माध्यम से उभर कर आयेगा। तब ये देखा जाना चाहिए कि कौन से तत्व हैं जो उसे निरंतर बाज़ार में बनाए हुए हैं,