अपने साथ मेरा सफ़र - 2 Prabodh Kumar Govil द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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अपने साथ मेरा सफ़र - 2


दो.
टीनएज बीतते ही ज़िंदगी की अपने पैरों पर चलने वाली दौड़ शुरू हो गई। एक आम इंसान की तरह मैं भी रोटी, कपड़ा, मकान के लिए नौकरी, शादी और परिवार की जद्दोजहद में खो गया।
अपनी रफ़्तार से चलते समय में दुआओं और श्रापों के हिसाब पीछे छूट गए और केवल इतना याद रहा कि अपनी जिम्मेदारियां पूरी की जाएं।
अब आप मुझे एक लंबी कूद की अनुमति दीजिए।
मैं समझाता हूं कि मेरा मतलब क्या है?
दरअसल मैं अब आपसे 2014 की बात करना चाहता हूं। बीच का समय छोड़ दीजिए। यदि इस समय की किसी बात का उल्लेख करना ज़रूरी हुआ तो मैं आपसे अनुमति लेकर कर लूंगा लेकिन फ़िलहाल हम उस समय की बात करते हैं जब सरकारी नियमों के तहत मैं सेवानिवृत्त हो गया।
इस समय मेरी उम्र साठ साल को पार कर चुकी थी। मुझे ज़िंदगी में जो भी करना था वो मैं कर चुका था। जो खोना था वो खो चुका था और जो पाना था वो पा चुका था।
मैं थोड़े में आपको बता दूं कि मैंने ज़िंदगी में क्या सीखा और क्या समझा।
मैंने पहली बात तो यही जानी कि ये दुनिया करोड़ों अरबों न जाने कितने वर्षों से है और आगे भी न जाने कितने वर्षों तक रहेगी। इसमें एक आदमी के रूप में हम कुछ समय के लिए ही आते हैं। फिर न उसके बाद का कुछ पता है और न उसके पहले का।
यहां आने के बाद हमने जो कुछ देखा, पढ़ा या जाना, ये सब उन लोगों का बताया हुआ है जो हमारी ही तरह न मौत के बाद की दुनिया देख पाए हैं और न जन्म के पहले की।
यहां जो कुछ सामने है उसी पर विश्वास करना पड़ता है। लेकिन जो कुछ हमारे होने से पहले का है वो उन लोगों द्वारा ही पेश किया गया है जो उस समय थे और एक "लेखक" या कलाकार के रूप में अपने समय की बातें हमारे लिए छोड़ गए। यदि कोई वैज्ञानिक भी था, या नर्तक, या योद्धा, या व्यापारी अथवा खिलाड़ी तो उसकी गुजारी हुई ज़िंदगी आज हमारे सामने तत्कालीन किसी लेखक ने ही लिख कर छोड़ी है। यदि कोई प्रतापी राजा था तो उसने कैसे राज किया ये हमें उस समय और उसके बाद के इतिहास लेखक ही बता गए।
यदि कोई ईश्वर था तो वो कैसे जन्मा, कहां रहा, क्या करता रहा, कैसे उसने दुनिया से महाप्रयाण किया, ये सब हमें उसके समय या उसके बाद के लेखकों ने ही बताया है।
अब चाहे हम किसी की बात को सही ठहराएं या गलत लेकिन वो बात हमारे लिए कोई न कोई लिखने वाला ही छोड़ गया है। चाहे उसने किसी भाषा में लिखा हो, कैसी भी लिपि में लिखा हो, उसे पढ़ा जा सके या नहीं, ये सब सवाल अपनी जगह हैं किंतु यदि तब वहां कोई लेखक या कलाकार नहीं होता तो उस काल का सब कुछ एक अदृश्य विगत में दफ़न ही था। किसी को पता न चलता।
हम संक्षेप में रामायण- महाभारत की बात ही करें। तुलसी, वाल्मीकि, वेदव्यास और बाद में निरंतर कोई न कोई कलम या कूंची थामा हाथ ही कथानकों को साल दर साल हम तक लाता रहा। यदि कोई लिखने बताने वाला न होता तो न तो शबरी में ये कौशल था कि वो अपनी कहानी हमें बता दे और न मंथरा के ही बस की बात थी कि सदियों बाद भी हम उसके बाबत सब कुछ जान लें।
ये बात अलग है कि कौन सी बात सत्य है, कौन सी काल्पनिक। लेकिन सत्य कहने का ज़ुनून या कल्पना करने का कौशल किसी न किसी कलमकार का ही है।
कलमकार आंखों देखी उतार दे, या कानों सुनी पिरो दे। ये उसका अपना कार्यक्षेत्र है।